गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

एक परीक्षा और एक इंटरव्यू, मिलेगी बैंक की नौकरी

बैंकों में नौकरी की तैयारी कर रहे युवाओं के लिये खुशखबरी है. अब बैंक में नौकरी के लिए सिर्फ एक ऑनलाइन परीक्षा और एक इंटरव्यू ही पास करना होगा. इसके अलावा जिन छात्रों के स्नातक में ६० प्रतिशत अंक नहीं हैं, वे भी बैंक में क्लर्क की नौकरी के लिए आवेदन कर सकेंगे.

हालांकि स्नातक में ६० फीसदी से कम अंक पाने वाले अभ्यर्थी सार्वजनिक बैंकों में अधिकारी नहीं बन पाएंगे. वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक बैंकों में अधिकारी और क्लर्क की भर्ती की नई योजना को मंजूरी दे दी है. जिसके तहत इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सनल सेलेक्शन (आईबीपीएस) द्वारा प्रस्तावित नई भर्ती योजना को वित्त मंत्रालय ने स्वीकार कर लिया है.

देश के सभी सार्वजनिक बैंकों के लिए योग्यता के मानक क्लर्क और अधिकारी के लिए एक समान होंगे. नई योजना में अधिकारी और क्लर्क दोनों की भर्ती के लिए आयु सीमा २०-२८ वर्ष तय की गई है. शैक्षणिक योग्यता क्लर्क कैडर के लिए किसी भी विषय में स्नातक या उसके समान और अधिकारी के लिए स्नातक में कम से कम ६० फीसदी अंक निर्धारित की गई है. उल्लेखनीय है कि अभी तक कई सार्वजनिक बैंकों की भर्ती परीक्षाएं और मानक अलग-अलग थे.

वित्त मंत्रालय के निर्देश के अनुसार सभी सार्वजनिक बैंकों के लिए कॉमन इंटरव्यू होगा, जिसे आईबीपीएस आयोजित करेगा. लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के अंकों को ८० और २० फीसदी के अनुपात में महत्व देते हुए मेरिट लिस्ट बनेगी. इसके अलावा वित्त मंत्रालय ने परीक्षा का शुल्क ४०० रुपये सभी सार्वजनिक बैंकों के लिए तय कर दिया है. वित्त मंत्रालय ने यह दिशा निर्देश सभी सार्वजनिक बैंकों के एचआर प्रमुखों और आईबीपीएस के साथ योजना की मंजूरी के बाद जारी किया है.
टॉप  स्कूलों पर पड़ सकती है मंदी की छाया

जिंदगी के अनुभव से मिले सबक अक्सर क्लासरूम के ज्ञान से बेहतर होते हैं। देश के बेस्ट बिजनेस स्कूल भी इसका अपवाद नहीं हो सकते। दुनिया भर में इकनॉमी की लड़खड़ाती हालत की वजह से आईआईएम और इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) से इस साल ग्रैजुएट होने वाले छात्रों को अपना करियर संभालने की बड़ी चुनौती सामने होगी। ऐसे में, इन छात्रों के लिए जिंदगी के अनुभव जैसे जुमले शायद ही खास राहत दे सकें। भर्तियों की हालत को लेकर आईआईएम के चार डायरेक्टरों, प्लेसमेंट सेल के दो स्टूडेंट हेड और रिक्रूटमेंट मैनेजरों से बात की। इन सभी का मानना है कि जब अगले महीने प्लेसमेंट सीजन शुरू होगा तो पहले के मुकाबले कम भर्तियां होगी और वेतन भी कम ऑफर किए जाएंगे। ऐसे में, टॉप बिजनेस स्कूल के छात्र खुद को बदतर हालात के लिए तैयार कर रहे हैं। कभी ड्रीम जॉब की हसरत रखने वाले ये छात्र अब अपनी आकांक्षाओं को थोड़ा कम कर रहे हैं।
आईआईएम कोलकाता के प्लेसमेंट चेयरमैन अमित धीमान को भी यह स्वीकार करने से परहेज नहीं है कि फाइनल प्लेसमेंट के लिए ३५० छात्रों को एक साथ बैठाना एक बड़ी चुनौती होगी। आईआईएम अहमदाबाद में अंतिम साल के २४ वर्षीय छात्र विशाल शर्मा कहते हैं, 'मैं यह जानना चाहता हूं कि आर्थिक सुस्ती का कितना असर हमारी प्लेसमेंट पर पड़ेगा।' इसी तरह, उनके सहपाठी आर श्रीधर भर्ती करने वाली कंपनियों का हाल जानने के लिए अपने संस्थान के पूर्व छात्रों से लगातार संपर्क बनाए हुए हैं। साल २०१२ में पास होने वाले छात्रों पर वैश्विक मंदी की गहरी छाया है। जब २००९ के आखिर में ये छात्र प्रबंधन संस्थानों की प्रवेश परीक्षा में बैठे थे, तो उस वक्त भी पूरी दुनिया एक साल पहले आई मंदी के प्रकोप से उबरने में जुटी थी। जब इन छात्रों ने जून २०१० में संस्थानों में कदम रखा तो भारत में उस वक्त रिकवरी की आहट आ चुकी थी। विडंबना यह है कि जब ये छात्र कुछ महीनों में अपनी पढ़ाई पूरी कर बाहर निकलेंगे, तो उनकी आशाओं पर पानी फिरता नजर आएगा। श्रीधर कहते हैं, 'जब हमने साल २०१० में आईआईएम अहमदाबाद में प्रवेश किया था तो यह साल २००८ की मंदी से उबरकर रिकवरी की रफ्तार पर था। लेकिन अब हम लोग कॉरपोरेट जगत में घुसने को तैयार हैं, लेकिन डबल डिप मंदी की आशंकाएं गहरा चुकी हैं। प्रो धीमान ने बताया, 'फाइनेंस से जुड़ी जॉब्स में खासी गिरावट देखने को मिल सकती है। हालांकि, हर सेक्टर में ऐसी हालत नहीं है। कंसल्टिंग कंपनियों के पास काफी ऑफर हैं। इसके अलावा आईटी, टेक्नोलॉजी में रोजगार के पर्याप्त अवसर हैं।'

आईआईएम कोझीकोड के डायरेक्टर देवाशीष चटर्जी भी इस बार जॉब ऑफरों को लेकर काफी सशंकित हैं। वह कहते हैं, 'हलांकि, एफएमसीजी कंपनियों ने कैंपस आने से हाथ नहीं खींचा है, लेकिन यह बात तय है कि वे भी पिछले साल के मुकाबले कम लोगों को लेंगे।' धीमान का तो यहां तक कहना है कि अगर कुछ लोगों की मानें तो ये कंपनियां सिर्फ कैंपस से अपना रिश्ता बेहतर बनाए रखने के लिए आएंगी।
प्लेसमेंट में पुराने आईआईटी पर भारी पड़े नए

आईआईटी के नए इंस्टीट्यूट पुराने पर भारी पड़ रहे हैं। इन नए संस्थानों में अभी प्लेसमेंट शुरू हुए कुछ साल ही हुए हैं, लेकिन रिक्रूटमेंट कंपनियां यहां से मोटे पैकेज पर ताबड़तोड़ हायरिंग कर रही हैं। रोपड़, पटना, हैदराबाद, भुवनेश्वर और गांधीनगर आईटीआईटी ने हायरिंग के मामले में पुराने इंस्टीट्यूट्स को पीछे छोड़ दिया है। माइक्रोसॉफ्ट, एमेजॉन और गूगल जैसी कंपनियां टैलेंट की तलाश में नए आईआईटी में जा रही हैं। यहां इस साल जो एवरेज सैलरी ऑफर की गई है, उसमें १५-२० फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहीं, मद्रास, रुड़की, खड़गपुर, बॉम्बे, दिल्ली और गुवाहाटी जैसे पुराने आईआईटी में फाइनल प्लेसमेंट ऑफर में सैलरी ५-१० फीसदी ही बढ़ी है। इस साल नए आईआईटी में ज्यादा कंपनियों की एंट्री हुई। यहां प्री-प्लेसमेंट ऑफर (पीपीओ) भी बढ़ा। इन संस्थानों में टॉप पैकेज में भी इजाफा हुआ है। मिसाल के लिए आईटी सर्विसेज कंपनी एपिक सिस्टम्स ने आईटीआईटी रोपड़ के दो स्टू़डेंट्स को १,०५,००० डॉलर (तकरीबन ५७ लाख रुपए) का पैकेज ऑफर किया है। पिछले साल इस इंस्टीट्यूट में सबसे ज्यादा ऑफर ८०,००० डॉलर ( तकरीबन ४३.६ लाख रुपए) का था।

नई आईआईटी की सफलता में पीपीओ पर काफी जोर दिया जाता है। इसी का असर रिक्रूटमेंट पर दिख रहा है। समर इंटर्नशिप में स्टूडेंट्स को बेस्ट परफॉर्मेंस देने के लिए बढ़ावा दिया जाता है। इससे यहां पीपीओ में शानदार बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल जहां आईआईटी रोपड़ और आईआईटी पटना में पीपीओ की संख्या १ थी, वहीं इस बार यह बढ़कर क्रमश: १० और ३ हो गया। 'पहले आओ, पहले पाओ' की रणनीति के तहत आईआईटी भुवनेश्वर, गांधीनगर, पटना और रोपड़ ने सितंबर के आखिर में ही अपना प्लेसमेंट शुरू कर दिया। आईआईटी रोपड़ में ट्रेनिंग और प्लेसमेंट ऑफिसर पी एस सिंह ने बताया, 'हमने काफी पहले से कंपनियों से संपर्क करना शुरू कर दिया था। लिहाजा, इस बार कैंपस में आने वाली कंपनियों की संख्या पिछले साल से ज्यादा रही।

पिछले साल जहां कैंपस में कुल २१ कंपनियां आई थीं, वहीं इस बार अब तक यह आंकड़ा ३० के पार पहुंच चुका है और इसमें और बढ़ोतरी की संभावना है।' आईआईटी गांधीनगर के स्टूडेंट कोऑर्डिनेटर्स ने कंपनियों के एचआर हेड से लगातार संपर्क बनाए रखा, ताकि कंपनियां इंस्टीट्यूट को नजरअंदाज न करें। इंस्टीट्यूट की यह कोशिश रंग लाई और इस बार कॉग्निजेंट और टीसीएस जैसी कंपनियां यहां आईं।

आईटी रोपड़ के स्टूडेंट्स को ११-१६ लाख का ऑफर मिला है। वहीं, आईटीआईटी गांधीनगर के स्टूडेंट्स को ९.५-९.९ लाख की रेंज में ऑफर मिले हैं। पिछले साल आईआईटी रोपड़ की एवरेज सैलरी ८.३२ लाख थी। इसी तरह, माइक्रोसॉफ्ट ने आईआईटी जोधपुर के ७ स्टूडेंट्स को १७ लाख का पैकेज ऑफर किया है। आईटीआईटी हैदराबाद के स्टूडेंट्स को एमेजॉन, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, क्वालकॉम जैसी कंपनियों से ऑफर मिले हैं।

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

स्नातक नहीं पैदल सिपाहियों की फौज होगी

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले आठ वर्षों में भारत में स्नातकों की संख्या अमरीकी स्नातकों से ज्यादा होगी ये बात उत्साहवर्धक लगती है लेकिन शिक्षाविद इस रुझान से इत्तेफाक नहीं रखते हैं ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनोमिक कोऑपरेशन एंड डेवेलपमेंट यानी ओईसीडी का कहना है कि साल 2020 तक स्नातकों की संख्या के हिसाब से चीन पहले भारत दूसरे और अमरीका तीसरे स्थान पर होगालेकिन भारत के मामले में विशेषज्ञ इसे महज संख्या बताते हैं जिसमें उनके मुताबिक गुणवत्ता नहीं होगी
आबादी का पहलू
जानेमाने शिक्षाविद अनिल सदगोपाल कहते हैं कि पूरी दुनिया की आबादी में अमरीका की आबादी का प्रतिशत लगभग साढ़े चार है जबकि भारत की आबादी सत्रह फीसद है इसलिए जाहिर है कि भारत में शिक्षा की स्थिति बेहतर होती है तो वो अमरीका से आगे निकल जाएगावे कहते हैं इस रिपोर्ट में संख्या की बात की गई है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता पर कुछ नहीं कहा गया है सदगोपाल सवाल उठाते हैंउच्च शिक्षा का मकसद क्या बेहतर समाज का निर्माण करना है या आप केवल वैश्विक बाजार और पूंजी के लिए पैदल सिपाहियों की फौज खड़ी कर रहे हैं पश्चिम के मुकाबले हम फिर पिछड़ेंगे संख्या हमारी ज्यादा हो सकती है लेकिन पश्चिम में जो शोध होगा वो हमसे कहीं आगे होगाभारत में स्नातकों की संख्या बढ़ने की वजह के बारे में पूछे जाने पर अनिल सदगोपाल कहते हैंश्श्गांव में खेती आधारित रोजगार को बड़ी तेजी से खत्म किया गया है वहां की आबादी लाचार होकर शहरों की ओर आई तो उनके बच्चों को भी कुछ करना होगा श्श्यही वजह है कि वो कैसी भी घटिया डिग्री क्यों न होए लेने की कोशिश करेंगेण् इंजीनियरिंग और मेडिकल के क्षेत्र में भी यही हाल हैण् इन लोगों के लिए तो नौकरी भी नहीं है
निजी कॉलेजों की दशा बताते हुए अनिल सदगोपाल कहते हैं कि यहां अब कोई कंपनी प्लेसमेंट के लिए भी नहीं आती है बच्चों से प्लेसमेंट के नाम पर फीस ली जाती है और कंपनियों से कहा जाता है कि वे आकर प्लेसमेंट का नाटक करें
एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक डॉक्टर जगमोहन सिंह राजपूत का कहना है कि भारत में सिर्फ स्नातकों की संख्या बढ़ने से बात नहीं बनने वाली हैवे कहते हैंए श्श्मेरे लिए इस बात का कोई महत्व नहीं होगा कि हम नंबर एक पर होंगे या नंबर दो परए हमें ये देखना होगा कि हमारे शोध की गुणवत्ता कैसी है हमारे कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का स्तर कैसा हैवे कहते हैं कि भारत में अब सब अपने लड़केलड़कियों को पढ़ा रहे हैं लेकिन बहुत से बच्चे थोड़ाबहुत पढ़लिखकर बैठ जाते हैं क्योंकि इस शिक्षा के साथ कौशल नहीं जुड़ा होता है जब तक शिक्षा के साथ कौशल नहीं होगा तब तक स्थिति सुधरने वाली नहीं है
शिक्षा.संबंधी नीति और इस नीति को बनाने वालों पर सवालिया निशान लगाते हुए वे कहते हैंश्श्जो लोग शिक्षा नीति बनाते हैं उनके बच्चे तो सरकारी स्कूल में कभी गए नहीं होते इन लोगों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़े होते तो सरकारी स्कूलों की हालत इतनी खराब नहीं होती
वे कहते हैं कि भारत के 70 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं जिन्हें अपेक्षित शिक्षा नहीं मिलती हैए अभी सिर्फ 30 प्रतिशत बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल रही है और यही बच्चे दुनियाभर में भारत का नाम रौशन कर रहे हैंवे कहते हैंए श्श्यदि भारत के 80 प्रतिशत बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाते तो देश की ज्ञान.सम्पदा दुनिया में सबसे ज्यादा होती

३५ हजार नौ·रियां

३५ हजार नौ·रियां
- आईटी ·ंपनी इन्फोसिस नई भर्तियां ·रने ·े लिए प्रतिबद्ध

देश ·ी प्रमुख आईटी ·ंपनी इन्फोसिस चालू वित्त वर्ष में 35,000 नई नियुक्तियों ·ी अपनी योजना पर ·ायम है। हालां·ि, ·ंपनी ने ·हा ·ि फिलहाल उस·ा वेतनवृद्धि ·ा ·ोई विचार नहीं है। इन्फोसिस ने अनिश्चित वैश्वि· आर्थि· वृद्धि ·े माहौल तथा वेतन बढ़ोतरी पर रो· ·े बीच नियुक्ति योजना ·ो आगे बढ़ाने ·ा फैसला ·िया है। ·ंपनी ·ा इरादा अपने बीपीओ परिचालन ·े लिए 13,000 भर्तियां ·रने ·ा है।
इन्फोसिस ·े मुख्य वित्त अधि·ारी वी बाला·ृष्णन ने गुरुवार ·ो ·ंपनी ·े तिमाही नतीजों ·ी घोषणा ·रते हुए ·हा ·ि इस साल हम 35,000 नए ·र्मचारी जोडऩे जा रहे हैं। उन्होंने बताया ·ि इनमें से 13,000 भर्तियां बीपीओ परिचालन ·े लिए ·ी जाएंगी।

वेतन वृद्धि पर ब्रे·
·ंपनी ने स्पष्ट ·िया है ·ि फिलहाल वह वेतनवृद्धि पर विचार नहीं ·र रही है। बाला·ृष्णन ने बताया ·ि ·ंपनी ने 20,000 ·र्मचारियों ·ो पदोन्नति दी है, जो पहली जुलाई से प्रभावी हो गई है। 30 जून त· ·ंपनी ·े ·र्मचारियों ·ी संख्या 1,51,151 थी। इन्फोसिस ·े मुख्य ·ार्य·ारी अधि·ारी और प्रबंध निदेश· एसडी शिब्बूलाल ने ·हा ·ि इस साल भी हम साल ·े मध्य में वेतनवृद्धि पर विचार ·र रहे हैं।

यूरोप में 45 लाख नौ·रियों पर खतरा
न्यूयॉर्·. यूरोप में लम्बे समय से जारी आर्थि· सुस्ती ·े ·ारण अगले चार साल में 45 लाख नौ·रियां जा स·ती हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ·ी रिपोर्ट ·े अनुसार, सं·ट ·े समाधान और ·र्मचारियों तथा उद्यमों ·ा विश्वास व समर्थन हासिल ·रने ·े लिए ·ोई ठोस नीति अपनाए बगैर यूरोप में सुधारों ·ो लागू ·रना ·ठिन होगा, जो क्षेत्र में स्थिरता एवं वि·ास ·े लिए बेहद आवश्य· है।

नौ·री बदलने ·ी फिरा· में
नई दिल्ली. अपनी ·ंपनी ·े प्रति निष्ठा ·े मामले में भारतीय ·र्मचारी पिछड़ रहे हैं। वैश्वि· प्रबंधन सलाह·ार हे ग्रुप ·े सर्वेक्षण ·े मुताबि· ·रीब 33 फीसदी ·र्मचारी दो साल से भी ·म में नौ·री बदलने ·ी योजना बना रहे हैं। वहीं यदि वैश्वि· स्तर पर बात ·ी जाए, तो पांच में से सिर्फ ए· ·र्मचारी नौ·री बदलने ·ी योजना बना रहा है। हे ग्रुप इंडिया ·े प्रबंध निदेश· गौरव लाहिरी ने ·हा, यह ·ाफी चिंताजन· है ·ि भारतीय ·ंपनियों में सिर्फ 40 फीसद ·र्मचारी ही ऐसे हैं, जो अगले पांच साल में अपने संगठन ·े प्रति निष्ठावन बने रहने ·ो तैयार हैं।

शनिवार, 7 जुलाई 2012

चार वर्षीय पाठ्यक्रम

कुछ लोगों का मानना है कि देश में स्नातक पाठ्यक्रम चार वर्षों का कर दिया जाना चाहिए, लेकिन जैसा कि हर नई बहस के साथ होता है इस चर्चा के बाद शिक्षकों और माता-पिता के बीच ऐसे कदम के फायदों को लेकर बहस मुबाहिसे की शुरुआत हो चुकी है। पहले मैं अपनी स्थिति स्पष्ट कर दूं। मुझे इस बात की तगड़ी अनुभूति होती है कि चार वर्षीय पाठ्यक्रम तीन वर्ष की पढ़ाई के मौजूदा पाठ्यक्रम से कई गुना बेहतर है। मैं यह भी स्पष्ट कर देता हूं कि मेरे विचार से चार वर्षीय पाठ्यक्रम को इस तरह नहीं देखा जाना चाहिए मानो बच्चों को अपने विशेषज्ञता वाले विषय में एक साल और पढ़ाई करनी पड़ेगी। मेरे खयाल से अतिरिक्त वर्ष बच्चों को यह तय करने का अवसर देगा कि वे आखिर क्या करना चाहते हैं। इसलिए मेरे लिए तो सही सवाल यह होगा कि क्या यह अतिरिक्त वर्ष बच्चों को उस समाज का उत्पादक सदस्य बनाने में मदद करेगा जिसमें उनको रहना है और अपना योगदान देना है।
बच्चों के किसी खास विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के पीछे मुख्य रूप से दो वजहें होती हैं: (अ) बड़ों का दबाव और माता-पिता का सुझाव या उनका आदेश (ब) उस विषय में दाखिला नहीं मिल पाना जिसमें उनके घर के बड़े अथवा उनके माता-पिता दाखिला दिलाना चाहते थे। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मेरे खयाल से १६ साल के एक बच्चे के लिए यह तय कर पाना थोड़ा मुश्किल है कि आखिर उसका करियर क्या हो?  इस उम्र के किसी बच्चे या बच्ची को कक्षा ११ में यह निर्णय लेना पड़ता है कि वह वाणिज्य की पढ़ाई करना चाहता है या विज्ञान की। अगर वह विज्ञान का चयन करता है तो दर्शन शास्त्र में पीएचडी की डिग्री ले सकता है लेकिन अगर वह वाणिज्य का चयन करता है तो यह काम मुश्किल होगा। शायद तब इसके लिए उसे विदेश जाकर किसी उच्च शिक्षा संस्थान में दाखिला लेना पड़े। इसी तरह, कक्षा ११ में मानवशास्त्र का चयन करने वाले किसी बच्चे के लिए बाद में भौतिकी की पढ़ाई कर पाना बेहद मुश्किल होगा। मैं यह मानने से इनकार करता हूं कि १६ साल का कोई बच्चा यह तय कर सकता है कि उसके लिए दर्शन शास्त्र और भौतिकी में से कौन सा विषय बेहतर होगा। अगर हम वाकई ऐसा सोचते हैं कि उस उम्र में बच्चे अपने करियर की दिशा निर्धारित कर पाने की क्षमता रखते हैं तो फिर उसी सोच के आधार पर हमें बच्चों को मतदान करने, विवाह करने, शराब पीने, वाहन चलाने और ऐसे ही तमाम दूसरे काम करने की अनुमति भी दे देनी चाहिए। अगर हम यह सब करने के इच्छुक नहीं है तो फिर पहले वाले पर इस कदर जोर कैसे दे सकते हैं?
मेर लिए चार साल के स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल किया गया एक अतिरिक्त वर्ष कुछ उन बातों के लिए होगा जिन्हें हम उस अतिरिक्त वर्ष में अंजाम दे सकते हैं। अगर यह चार वर्षीय पाठ्यक्रम मेरे नजरिये से तैयार किया जाए तो उसमें बच्चे मनचाहे विषयों में अध्ययन कर सकेंगे। उदाहरण के लिए वे भौतिकी और दर्शन, अर्थशास्त्र और कला आदि की साथ-साथ पढ़ाई कर सकेंगे। इन तमाम पाठ्यक्रमों में पढ़ाई के लिए शुरुआती स्तर पर विषय का थोड़ा ज्ञान तो आवश्यक है ही। निचले दर्जे के स्नातक पाठ्यक्रमों में पढ़ाई का स्तर उससे अधिक न होना जितना बच्चा कक्षा १० में पढ़कर निकलता है। एक वर्ष का अतिरिक्त समय बच्चों को अपनी पसंद और नापसंद तय करने का समय देगा। इस आधार पर वह यह बात ज्यादा बेहतर तरीके से तय कर पाएगा कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं? इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं, किसी बच्चे को भौतिकी में विशेषज्ञता इसलिए नहीं करनी चाहिए क्योंकि उसे पता ही नहीं है कि दर्शन क्या है। बल्कि उसे दर्शन की मूलभूत जानकारियां हासिल करने के बाद ही यह तय करना चाहिए कि वह भौतिकी पढऩा चाहता है अथवा नहीं। यहां दो स्पष्टीकरण देना उचित रहेगा। पहला, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि युवाओं में कम उम्र में अपने अनुकूल विषय का चयन करने की काबिलियत नहीं होती है। इसके बजाय मेंरा कहने का मतलब यह है कि अधिकांश बच्चे ऐसा इसलिए भी नहीं कर पाते क्योंकि कॉलेज में उनको जो विषय पढऩे के लिए मिलते हैं उनमें से अधिकांश विद्यालय स्तर पर होते ही नहीं हैं। दूसरी बात, कहने का तात्पर्य यह कि माता-पिता को ४ वर्षीय पाठ्यक्रम में भी बच्चों पर अपनी पसंद थोपनी नहीं चाहिए बल्कि उनको अपना नजरिया तय करने का मौका देना चाहिए।
उच्च शिक्षा का एक बहुत बड़ा लक्ष्य है बड़ी संख्या में ऐसे लोग तैयार करना जो सामाजिक समस्याएं हल करने में मददगार साबित हो सकें। इसलिए उनका प्रशिक्षण केवल किसी खास विषय में विशेषज्ञता कायम करने के लिए नहीं होता है बल्कि उसका संबंध उनके भीतर प्रेरणा के स्तर से भी होता है। हमारे समाज में सबके लिए बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करना एक ज्वलंत मुद्दा है। इसके लिए न केवल चिकित्सकीय विशेषज्ञता की आवश्यकता होगी बल्कि अस्पतालों के प्रबंधन और जन स्वास्थ्य आदि के जानकार लोगों की भी उतनी ही जरूरत होगी। बेहतर चिकित्सकीय उपकरण तैयार करने के लिए जहां इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की दरकार होगी वहीं इन्हें उचित मूल्य पर तैयार करने की खातिर अर्थशास्त्रियों और उद्यमियों की आवश्यकता होगी। ऐसे में जबकि किसी एक समस्या को हल करने के लिए सभी लोगों को एकसाथ मिलकर काम करना पड़े तो ऐसे में एक व्यक्ति की केवल एक विषय में विशेषज्ञता का विचार कोई बहुत अच्छा विचार नहीं है। हमारी मौजूदा तीन वर्षीय पाठ्यक्रम वाली व्यवस्था में किसी चिकित्सक को अर्थशास्त्र की कार्यप्रणाली के बारे में शायद ही कोई जानकारी हो। अर्थशास्त्रियों के साथ भी ठीक यही बात है।
लोग चार वर्षीय पाठ्यक्रम को लेकर जिस तरह सोच रहे हैं उससे मैं चिंतित हूं। याद रखिए, मेरा मुख्य लक्ष्य यह है कि छात्र अधिक सूचित होकर कोई निर्णय लें। मान लीजिए कल को कोई भौतिकीविद अचानक संगीत को अपनाना चाहे तो क्या होगा? या फिर कोई दर्शनशास्त्री भौतिकी के नियमों को समझने की इच्छा रखे तो? मुझे डर है कि जिस तरह से इन तमाम बातों पर चर्चा हो रही है वैसे तो हम चार वर्षीय पाठ्यक्रम के पीछे की मूल भावना को ही दरकिनार कर देंगे। कल्पना कीजिए आपके अंकल जो पेशे से वकील हैं उनका बेटा वकालत के अलावा कुछ और पढ़ रहा हो और आप भी अपने मां-बाप की तरह अर्थशास्त्र की पढ़ाई नहीं कर रहे हों तो यह बात सोचना कितना रोमांचित करता है। उसके लिए जरूरी है कि आप खुद यह निर्णय लें कि आप क्या पढऩा चाहते हैं। अपने माता-पिता पर यह निर्णय नहीं छोड़ें। इस काम में चार वर्ष का स्नातक पाठ्यक्रम आपकी मदद करेगा।
यूपी में लाख सिपाही पदों पर होगी भर्ती
सिपाही बनने  इच्छु युवाओं लिए खुशखबरी। उत्तर प्रदेश में जल्द ही लाख सिपाहियों भर्ती जाएगी। राज्य सरार ने ·नून व्यवस्था दुरुस्त ·रने ·े लिए पुलिस ·ो नया ·लेवर देने ·ा फैसला भी ·िया है।  प्रदेश में 35 हजार नए सिपाही हाल ही में थानों में तैनात ·िए गए हैं। ए· साल में अतिरिक्त ए· लाख सिपाही तैनात हो जाएंगे।

मंगलवार, 8 मई 2012

रोजगार देने में भी एप्पल अव्वल

एप्पल कंपनी सिर्फ स्टीव जॉब्स के सपने और अपने उत्पाद की वजह से ही खास नहीं हैण् कंपनी का मानना है कि वह रोजगार मुहैया कराने के मामले में भी अन्य कंपनियों से आगे है गौरतलब है कि 1976 में एप्पल कंपनी की स्थापना हुई थी तब से लेकर अभी तक एप्पल कंप्यूटर 23430 नौकरियों का सृजन कर चुका है इतना ही नहीं एप्पल का दावा है कि उसकी मदद से या फिर अन्य तरीकों से अमेरिका में लगभग 514000 नौकरियां लोगों को मिली हैं इनमें से 304000 नौकरियां पुरानी अर्थव्यवस्था से जुड़ी थीं मसलन इंजीनियरिंग उत्पादन और परिवहन हालांकि बिजनेस विश्लेषकों का मानना है कि जहां एप्पल की वजह से नयी नौकरियों का सृजन हुआ है तो रोजगार के कुछ अवसर बंद भी हुए हैं उनके मुताबिक एप्पल के बाजार में आने से उसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को जो घाटा हुआए उस कारण उन्हें कई जगह खर्च में कटौती करनी पड़ी
इसका सीधा असर लोगों की नौकरियों पर पड़ा एप्पल के कारण मोटोरोला कोडक और हव्लेट्ट पाकर्ड जैसी कंपनियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा इसके बावजूद एप्पल का कहना है कि उसने नयी नौकरियों के सृजन में भी अहम भूमिका निभायी है एक आंकड़े के मुताबिक एप्पल में फिलहाल कार्यरत कर्मचारियों की संख्या लगभग 70000 है आने वाले समय में यह संख्या बढ़ने की उम्मीद भी जतायी गयी है

रविवार, 1 अप्रैल 2012

हर साल 50 लाख जॉब्स आधी सीटें खाली

पर्यटन ने युवाओं के लिए काम के बेशुमार मौके पैदा कर दिए हैं। वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म काउंसिल के अनुसार 2018 तक भारत दुनिया का सबसे सक्रिय टूरिस्ट स्पॉट होगा। लेकिन देश के शिक्षण संस्थान पर्यटन मार्केट की इस हलचल से हैं बेखबर। ज्यादातर कोर्स हैं पुराने और अप्रासंगिक। इनमें करीब आधी सीटें खाली हैं। युवाओं में इस सेक्टर में रोजगार के प्रति जागरूकता की कमी भी है।
रोजगार में टूरिज्म ने आईटी को पीछे छोड़ा
नई नौकरियों की संभावनाओं के लिहाज से पर्यटन उद्योग ने आईटी सेक्टर को पीछे छोड़ दिया है। केंद्रीय पर्यटन मंत्री सुबोध कांत सहाय ने कहा है कि अगले पांच साल में पर्यटन के क्षेत्र में ढाई करोड़ नए रोजगार आएंगे। यानी एक साल में 50 लाख। देश के कुल रोजगार में 75 फीसदी योगदान देने वाला यह सेक्टर अब प्राचीन स्मारकों पहाड़ों या नेशनल पार्को की परंपरागत दुनिया से बाहर मेडिकल टूरिज्मए ईको टूरिज्म रूरल वॉटर और एडवेंचर के नए क्षेत्रों में पांव पसार रहा है। इन क्षेत्रों में हर तरह के दक्ष कामगारों की मांग बढ़ रही है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 2004 के बाद पर्यटन में आई तेजी में इन्क्रेडिबल इंडिया जैसे कैम्पेन का भी बड़ा योगदान रहा। इस आकर्षक मार्केटिंग मुहिम के रचनाकारों में शामिल ष्ब्रांडिंग इंडिया के लेखक अमिताभ कांत बताते हैं ष्केरल 1990 के दशक के मध्य तक देश के पर्यटन नक्शे पर किसी हैसियत में नहीं था। सिर्फ मौलिक आइडियाज इन्फ्रास्ट्रक्चर और बेहतर मार्केटिंग के बूते आज देश में वह सबसे ऊपर है। बेकवॉटर और आयुर्वेद जैसे अछूते और नए क्षेत्रों में हमने काम किया। उद्यमियों ने रिसॉर्ट्स खोले। इन प्रयोगों ने केरल का नक्शा बदल दिया। इसका असर रोजगार पर पड़ा। विशेषज्ञों के मुताबिक सहाय ने जिस तरह के रोजगार का इशारा किया है उसमें ज्यादातर ऐसे हैं जिनमें बड़ी डिग्रियों की नहीं सीमित अवधि की ट्रेनिंग की जरूरत है। ये पर्यटकों के सीधे संपर्क में आने वाले कई तरह की सेवाओं के आसान अवसर हैं। इनमें ट्रांसपोर्ट फूड हेंडलूम हेंडीक्राट आदि शामिल हैं। दिल्ली में नौकरी डॉट कॉम के एक्जीक्यूटिव वायस चेयरमैन वी सुरेश का कहना है कि ज्यादातर जॉब्स असंगठित क्षेत्र के हैं। इस सेक्टर में डिग्रीधारियों के व्हाइट कॉलर जॉब्स सीमित हैं। लेकिन दोनों क्षेत्रों के मद्देनजर शिक्षण संस्थानों की तैयारी काफी पिछड़ी हुई है।
पर्यटन सेक्टर में सालाना वृद्धि 22 फीसदी की है। विस्तार नए नए क्षेत्रों में हो रहा है। उत्तराखंड में फाइव स्टार होटल्स की बजाए कॉटेज.इंडस्ट्री की जरूरत है जो स्थानीय लोगों को कमाई के बेशुमार अवसर देगी। उत्तरपूर्व में यह तरीका कामयाब भी रहा है। उत्तरप्रदेश में अस्सी फीसदी पर्यटकों का आकर्षण भले ही ताजमहल और वाराणसी हों लेकिन अब यहां के प्राचीन बौद्ध स्मारकों को अलग से उभारने की तैयारी है। चीन को छोड़कर एशिया के ज्यादातर देशों के मुकाबले भारत घरेलू व वैश्विक सैर.सपाटे का सबसे सक्रिय स्पॉट बन चुका है। 2008 में 50 हजार 730 करोड़ की कमाई 2010 में बढ़कर 64 हजार 889 करोड़ रुपए हो गई। 28 फीसदी का यह इजाफा आने वाले कल की बेहतर संभावनाओं का इशारा ही है।
देश में एक लाख सीटें ज्यादातर कोर्स पुराने
देश के 80 विश्वविद्यालयों और ढाई सौ कॉलेजों में पर्यटन से जुड़े दो सौ से ज्यादा कोर्सो में 20 हजार सीटें हैं। शिक्षा डॉट कॉम के मुताबिक निजी क्षेत्र के करीब एक हजार संस्थानों को मिलाकर सभी तरह के कोर्स व प्रोग्राम में सीटों की तादाद एक लाख से ऊपर है। अधिकतर कोर्स पुराने हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म के निदेशक मनोज दीक्षित कहते हैं ष्हॉस्पिटैलिटी ट्रेवल व टूरिज्म के कोर्सो की आधी सीटें तो खाली रहती हैं क्योंकि कोर्स स्किल बेस नहीं हैं। सीटें खाली होने के बारे में शिक्षा डॉट कॉम के हेड प्रकाश संगम का कहना है कि स्टुडेंट्स भी इस सेक्टर के बारे में जागरूक नहीं है। लखनऊ इंस्टीट्यूट में ही तीन कोर्सो में से एक बंद है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म एंड ट्रेवल मैनेजमेंट आईआईटीटीएम के चार शहरों में स्थित केंद्रों की आरक्षित सीटें शायद ही कभी भरी हों।
इसके ग्वालियर केंद्र से इंटरनेशनल बिजनेस कोर्स में पास मेरठ मूल के पीयूष चौधरी को हाल ही में थामस कुक कंपनी ने दस लाख के पैकेज पर चुना। क्लियर ट्रिप और वुडलैंड जैसी कंपनियों ने भी चार लाख रुपए के शुरुआती पैकेज पर प्लेसमेंट किया। ऐसे उदाहरण गिने.चुने ही हैं। बेंगलुरू स्थित एचआर कंपनी ष्माफोई रेनस्टेड के अध्यक्ष स्टाफिंग आदित्यनारायण मिश्रा कहते हैं ष्डिग्री लेकर निकल रहे ज्यादातर युवाओं की दक्षता पर्यटन मार्केट की जरूरतों से मेल नहीं खाती। उनकी प्रेक्टिकल नॉलेज का स्तर बेहद खराब पाया गया है। वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म कौंसिल के अनुसार 2009 से 2018 के बीच भारत दुनिया का सर्वाधिक सक्रिय टूरिस्ट डेस्टिनेशन होगा। लेकिन पर्यटन उद्योग में हो रहे तेज बदलावों से शिक्षण संस्थानों का कोई कनेक्ट ही नहीं है। वे बाजार की जरूरतों के हिसाब से बेखबर ही हैं। ज्यादातर कोर्स पुराने हैं। काउंसलर डॉ अमृता दास का कहना है कि ऑनलाइन ट्रेवल पोर्टल और डेस्टीनेशन मैनेजमेंट जैसे क्षेत्र कोर्स से अछूते होना आश्चर्यजनक है। जबकि ऑनलाइन ट्रेवल पोर्टल इस समय सबसे ज्यादा रोजगार देने में सक्षम है।
शिक्षा डॉट कॉम के हेड प्रकाश संगम का मानना है कि टूरिज्म सेक्टर के प्रति स्टुडेंट्स में पर्याप्त जागरूकता भी नहीं है। यही वजह है कि उनका रुझान इस तरफ कम रहा। पर्यटन सेक्टर में इस हलचल के चलते प्रधानमंत्री की नेशनल स्किल डेवलमेंट स्कीम की तर्ज पर सरकारी व निजी शिक्षण संस्थान डिग्री व सर्टिफिकेट के साथ अब दक्षता पर जोर देने लगे हैं। खासतौर से फंट्र लाइन जॉब्स में। हुनर से रोजगार इसी कड़ी का हिस्सा है। इसमें आठवीं.दसवीं पास युवाओं को होटल.हॉस्पेटलिटी में मार्केट की जरूरतों के मुताबिक ट्रेनिंग दी जाने लगी हैं। ताकि देश में राष्ट्रीय.अंतरराष्ट्रीय महत्व के 75 पर्यटन स्थलों से जुड़े बाकी स्थानों पर भी दक्ष कामगारों का नेटवर्क कायम हो। लखनऊ विवि ने इस पर फोकस किया और दो साल पहले 850 नए गाइड तैयार किए। देश में अपने तरह की यह पहली कोशिश थी। आईआईटीटीएम के प्रोफेसर निमित चौधरी बताते हैंए ष्दिल्ली आगरा या जयपुर में दिक्कत नहीं है। लेकिन खजुराहो के पास ओरछा जाइए तो समस्याएं हैं। अब शिक्षण संस्थान इसी कमी को पूरा कर रहे हैं। इसलिए यह कहना ठीक नहीं है कि संस्थान बाजार की जरूरतों से बेखबर हैं।

अमेरिका में दाखिले का गोरखधंधा

फर्जी तरीके से अमेरिका में दाखिले को रोकने के लिए नई शर्तें लागू कर दी गई है कॉलेज प्रशासन इससे तो खुश हैं लेकिन विदेशी छात्रों के फर्जीवाड़े को लेकर उनकी आशंकाएं अभी खत्म नहीं हुई हैं नए नियम के तहत दाखिले के लिए अमेरिका में सबसे प्रचलित टेस्ट एसएटी और एसीटी में बैठने वालों को अपनी तस्वीर के साथ रजिस्टर कराना जरूरी कर दिया गया है टेस्ट लेने वाले अधिकारियों को इन तस्वीरों के साथ छात्रों के पहचान पत्र का मेल कराने के लिए कहा जाएगा यह बदलाव पिछले साल न्यूयॉर्क के लांग आईलैंड में हुए फर्जीवाड़े के बाद शुरू किया गया अभियोजकों के मुताबिक तब दर्जनों छात्रों ने अपनी जगह किसी और को बिठा दिया उसके बदले में 3600 डॉलर तक वसूले गए अब एसएटी और एसीटी के लिए छात्रों की तस्वीरें और टेस्ट के नतीजे उनके हाई स्कूल में भेजे जाएंगे जिससे एक बार फिर उनकी पहचान की पुष्टि हो जाए
नेशनल एसोसिएशन फॉर कॉलेज एडमिशन काउंसिल में सार्वजनिक नीति के निदेशक डेविड हॉकिन ने नए नियमों को किराए पर टेस्ट देने वालों को रोकने की दिशा में अहम करार दिया है हालांकि कॉलेजों में दाखिले की जिम्मेदारी संभालने वाले अधिकारी अभी  संतुष्ट नहीं हैं उन्हें आशंका है कि उनके यहां विदेशों से नकली एडमिशन फॉर्म भेजे जा रहे हैं एक्ट परीक्षा में गणित विज्ञान अंग्रेजी पढ़ने और व्याकरण की परीक्षा ली जाती है साथ ही लिखने का वैकल्पिक सेक्शन भी होता है वहीं सैट ;एसएटी में पाठन लेखन और गणित का टेस्ट होता है अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय शिक्षा संस्थान के मुताबिक वहां पढ़ने जाने वाले छात्रों की संख्या 2010.11 में बढ़ कर सवा सात लाख तक पहुंच गई है चीन और भारत से जाने वाले छात्रों की संख्या बहुत ज्यादा है हालांकि अब सऊदी अरब वियतनाम और ईरान के छात्र भी तेजी से बढ़ रहे हैं आवेदन देखने वाले अधिकारियों का दावा है कि उन्हें लगातार ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि नकली आवेदनों की संख्या बढ़ रही है इनमें ऐसी चिट्ठियां जिन्हें पढ़ कर लगता ही नहीं कि वह किसी छात्र ने लिखी होगी
चीन में चीटिंग
अमेरिकी कॉलेजों को विदेशी मार्केटों के बारे में सलाह देने वाली जिंस चाइना कंपनी ने 2010 की रिपोर्ट की पुष्टि करते हुए कहा है कि चीन में गलत काम पहले से हो रहा है आधे से ज्यादा एप्लीकेशन्स नकली हैं इनकी निष्पक्ष जांच के लिए अधिकारी टॉफेल का स्कोर देखते हैं इसके बाद सैट और एक्ट का स्कोर देखते है यह परीक्षाएं अफगानिस्तान से भूटान तक और किरगिस्तान से यमन तक कई देशों में होती हैं लेकिन अक्सर स्कोर छात्र के व्यक्तित्व से मेल नहीं खाते पेपर पर छात्र बहुत योग्य दिखता है लेकिन जब वह कैंपस आता है तो समझ में आता है कि वह इंग्लिश बोल भी नहीं सकता ण्टॉफेल आयोजित करने वाली एजुकेशनल टेस्टिंग सर्विस छात्रों से कोई फोटो आईडी नहीं मांगती और आगे भी उसका ऐसा करने का इरादा नहीं है हालांकि हर उस छात्र का फोटो लिया जाता है जो परीक्षा में बैठता है अगर कोई छात्र एक से ज्यादा बार परीक्षा में बैठता है और उसके प्रदर्शन में बड़ा सुधार होता है तो हर टेस्ट की तस्वीर निकाल कर एक दूसरे से मिलाई जाती है जिससे कि फर्जीवाड़ा रोका जा सके हालांकि फिलहाल ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे कि पैसे लेकर किसी और की जगह परीक्षा देने वाले छात्र को पहली बार में ही पकड़ा जा सक
मुश्किल है मामला
ओरेगॉन यूनिवर्सिटी में दाखिला निदेशक ब्रायन हेनली कहते हैं ष्यह ऐसा मामला है जिसस हममें से ज्यादातर लोग जूझ रहे हैं लेकिन मुझे अब तक कोई बेहतरीन तरीका नजर नहीं आया है हेनली का कहना है कि उन्होंने इस साल टॉफेल टेस्ट में छात्रों के नंबरों में बड़ा सुधार देखा है उनका कहना है ष्शायद यह चीन में भाषा की अच्छी ट्रेनिंग की वजह से हुई हो या फिर गलत तरीके से  यह पता नहीं है कि अमेरिकी छात्रों में कितने ऐसे हैं जो दूसरे छात्रों से अपनी परीक्षा दिलाते हैं पिछले साल एसएटी के लिए रजिस्टर होने वाले 20 लाख छात्रों में से केवल 170 को पहचान की दिक्कतों की वजह से परीक्षा में नहीं बैठने दिया गया इसके अलावा 3500 दूसरे टेस्ट के नतीजे भी रद्द किए गए क्योंकि कई छात्रों ने मोबाइल फोन इस्तेमाल कर लिया जिस पर पाबंदी है

शनिवार, 31 मार्च 2012

परिस्थितियां एक.सी नहीं रहतीं लेकिन आप रहें

आप चाहे नौकरी में हों या व्यवसाय में कई बार स्थितियां अनुकूल होने पर आप इतने उत्साहित हो जाते हैं कि उस उत्साह में ही आपसे कुछ गलत भी हो जाता है इसी तरह स्थितियां प्रतिकूल रहने पर आप इतने निराश हो जाते हैं कि आपको उसका नुकसान उठाना पड़ता है क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है असल में हमें अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रहता भावनाओं का आवेग दिमाग पर इस कदर हावी रहता है कि हम उसे प्रदर्शित किये बगैर रह नहीं पाते
परिस्थितियां कैसी भी हों हमें अपना रियेक्शन या अपनी भावनाएं हमेशा संतुलित रखने का प्रयास करना चाहिए एक संत के पास कोई युवक आया  उसने संत से शांति का रास्ता पूछा  संत ने उसको उसी शहर में किसी सेठ के पास भेज दिया सेठ ने युवक की पूरी बात सुनी उसने युवक को बैठने के लिए कहा और फ़िर इसके बाद बिना कोई बातचीत किये अपने काम में व्यस्त हो गया ण्कभी वह ग्राहकों से बातें करता कभी फ़ाइलें देखता कभी मुनीम को निर्देश देता और कभी फ़ोन पर सूचनाएं भेजता काफ़ी देर तक उसकी व्यस्तता देख युवक ने सोचा यह मुझे क्या बतायेगा इसे तो दम मारने की भी फ़ुर्सत नहीं है यह तो इतना व्यस्त है कि इसे अपने ही काम के लिए समय नहीं मिल पा रहा ह तो मुझे क्या समय देगा
अचानक सेठ का सबसे बड़ा मुनीम उसके पास हांफ़ता हुआ आया और सेठ को संबोधित कर कहा गजब हो गया अपना मालवाही जहाज समुद्री तूफ़ान में फ़ंस गया है उसके डूबने की आशंका है ण्सेठ बोला मुनीम जी! अधीर क्यों हो रहे हैं अनहोनी कुछ भी नहीं हुआ है जहाज डूबने की नियति थी तो उसे कोई कैसे बचा सकता है सेठ की बात सुन कर मुनीम कुछ आश्वस्त होकर चला गया दो घंटे बाद मुनीम फ़िर वापस आया और उत्साहित होकर बोला सेठ जी! तूफ़ान शांत हो गया हमारा जहाज डूबा नहीं सुरक्षित तट पर आ गया माल उतारते ही दोगुनी कीमत में बिक गया सेठ पहले की ही तरह शांत और गंभीर रहा फ़िर बोला मुनीम जी! इसमें इतनी खुशी की क्या बात है तूफ़ान अगर नहीं आता तो भी क्या आप इतने ही खुश होते व्यापार में घाटा और मुनाफ़ा होता ही रहता है हमें दोनों ही तरह की परिस्थितियों के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए पैसा आता है तो जा भी सकता है युवक साक्षी भाव से सेठ का प्रत्येक व्यवहार देख रहा था वह बोलाए सेठ साहब! मैं जाता हूं मुझे आपके जीवन से सही पाठ मिल गया अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही स्थितियों में संतुलन बनाये रखना बेहद जरूरी है ण्हमें भी इस आदत को अपनी डेली लाइफ़ में शामिल करना चाहिए ताकि सफ़लता की ओर बढ़नेवाला हमारा एक.एक कदम संतुलित हो
बात पते की.
अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही स्थितियों में संतुलन बनाये रखना बेहद जरूरी है
अनुकूल स्थितियों में अति उत्साहित न हों और प्रतिकूल स्थितियों में निराश न हों सफ़लता का यह आजमाया हुआ फ़ार्मूला है
इतना नुकसान है तो क्रोध क्यों करना

क्रोध में लोग अपना कितना नुकसान कर लेते है बावजूद इसके यह आदत नहीं जाती आपने गौर किया होगा कि जब आप ज्यादा बीमार होते हैं और डॉक्टर आपको परहेज के बारे में कहते हैं तो आपकी कोशिश यही होती है कि आप डॉक्टर की बातों को ज्यादा से ज्यादा फ़ॉलो करें ताकि आप जल्दी स्वस्थ हो सकें जल्दी स्वस्थ होने की इच्छा ही आपको प्रेरित करती है कि आप परहेज का खास ध्यान रखें लेकिन जब बात आपके कैरियर की आती है तो आप परहेज करना नहीं चाहते जबकि यह तय है कि क्रोध से परहेज कैरियर में सफ़लता के लिए बेहद जरूरी है जब तक क्रोध से परहेज नहीं करेंगे आपको अपने टारगेट तक पहुंचने में काफ़ी दिक्कतें आयेंगी बचपन से ही हम सब क्रोध से होनेवाले नुकसान के बारे में सुनते आये हैं लेकिन क्रोध की आदत छोड़ते नहीं सोचिए कि क्रोध के कारण कितना नुकसान उठाना पड़ा है आज तक ण्ण्फ़िर उसे जारी क्यों रखना

शूरसेन को क्रोध बहुत आता था और वह गुस्से में कई बार अनुचित फ़ैसले भी ले लेते थे जिससे भारी परेशानी होती थी हालांकि क्रोध उतरने पर वह माफ़ी भी मांग लेते थे एक दिन राजा अपने मंत्री से बातचीत कर रहे थे उसी समय मंत्री के मुंह से कुछ गलत बात निकल गयी जिसे सुन कर राजा का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया उन्होंने आव देखा न ताव तुरंत मंत्री को फ़ांसी की सजा सुना दी मंत्री को फ़ांसी के लिए ले जाया जाने लगा उससे आखिरी इच्छा पूछी गयी मंत्री राजा के क्रोध को समझता था वह बोला महाराज मैंने हाल ही में एक कला सीखी है मैं पशुओं की बोली समझ सकता हूं और उनसे बात भी कर सकता हूं मेरी बड़ी इच्छा है कि मैं वह कला आप को सिखाऊं राजा ने पूछा उस कला को सीखने में कितना समय लगेगा मंत्री बोला कम से कम तीन महीने मंत्री की आखिरी इच्छा का सम्मान कर राजा ने फ़ांसी को तीन माह के लिए टलवा दिया इतने दिनों में राजा का गुस्सा शांत हो गया वह समझ गये कि पशुओं की भाषावाली बात मंत्री ने जानबूझ कर गढ़ी है ताकि फ़ांसी को टाला जा सके उन्हें इस बात का भी अहसास हो गया कि बिना मतलब ही उन्होंने मंत्री को फ़ांसी की सजा सुना दी थी वह मंत्री से बोले मंत्री जी हमें माफ़ कर दीजिए उस दिन हम गुस्से में बहुत गलत फ़ैसला ले बैठे थे अगर उस दिन आप चतुराई से पशुओं से बात करनेवाली कला के बारे में नहीं कहते तो शायद हम आज पछता रहे होते मंत्री बोला मैंने तो अपनी चतुराई से जान बचा ली लेकिन उनका क्या जो आपके क्रोध का आये दिन शिकार होते हैं आप क्रोध पर नियंत्रण रखने का प्रयास करें इससे आप प्रजा के बीच अलोकप्रिय होते जा रहे हैं राजा ने उस दिन से गुस्से पर काबू करना शुरू कर दिया

 बात पते की
कैरियर में सफ़लता के लिए क्रोध से परहेज बेहद जरूरी है
गुस्सा करने की आदत के कारण कई अवसर हाथ से निकल जाते हैं
सोचिए कि अब तक गुस्सा कर आपने क्या हासिल कर लिया है और क्या खोया है खुद ही फ़ैसला करें कि आपको क्या करना चाहिए

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

भारतीयों को नौकरी से रोकने के लिए नया फॉर्मूला

राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आउटसोर्सिंग पर रोक लगाने के लिए विदेशी आय पर न्यूनतम कर लगाने का प्रस्ताव किया है। वहीं, उनकी योजना देश में रोजगार लाने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन देने की भी है। उनके इस कदम से अमेरिकी कंपनियों को भारत जैसे देशों में नौकरियां देने से रोका जा सकेगा। ओबामा चुनावी साल को देखते हुए आउटसोर्सिंग के प्रति कड़ा रुख अपनाए हुए हैं। उन्होंने राष्ट्रपति पद पर दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने के प्रयासों के तहत जो चुनावी रणनीति तैयार की है, यह उसी कर योजना का एक हिस्सा है। वैश्विक आर्थिक मंदी से जूझ रहे अमेरिका में बेरोजगारी दर ऊंची बनी हुई है। वित्त मंत्रालय का मानना है कि अमेरिका में कर प्रणाली कई ऐसे अवसर पैदा करती है कि कंपनियों को उत्पादन व लाभ विदेश ले जाने के लिए प्रोत्साहन मिले। यह देश में ही रोजगार पैदा करने और निवेश सृजन के लिए कम काम करती है। ओबामा का मानना है कि अगर कंपनियां विदेश में स्थानांतरित होने पर छूट का दावा करती हैं, तो उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसके साथ ही वे कंपनियों का परिचालन वापस देश में लाने के लिए २० प्रतिशत आयकर ऋण का भी प्रस्ताव कर रहे हैं। ओबामा ने कहा है कि कॉरपोरेट कर प्रणाली अक्षम व पुरानी पड़ चुकी है। यह इतनी जटिल है कि छोटे उद्यमों को कई घंटे व अनगिनत डॉलर कर भुगतान पर ही खर्च करने पड़ते हैं।

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

...तो क्या उतरने लगा एमबीए का बुखार?

देश में 65 बी स्कूल बंद होने के कागार पर
लगता है युवाओं के सिर पर चढ़ा एमबीए का बुखार अब उतरने लगा है। इसका पता इस बात से चलता है कि देश के विभिन्न भागों में 65 बिजनेस स्कूल बंद होने जा रहे हैं। मालूम है कि इस समय कुल बिजनेस स्कूलों की संख्या 3900 है जहां हर साल साढ़े तीन लाख युवा एमबीए की डिग्री लेते हैं। इनके बंद होने के पीछे मुख्य कारण आने वाले समय में एमबीए कोर्स की प्रासंगिकता खत्म होने की आशंका है।
खराब गुणवत्ता भी जिम्मेदार
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के प्रमुख एस एस मन्था ने बताया कि दूरदराज क्षेत्रों में मौजूद खराब गुणवत्ता वाले संस्थानों को छात्र ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। संस्थानों की बहुतायत के कारण आपूर्ति मांग से ज्यादा हो गई है। पहले भी कई विशेषज्ञ दूरदराज के प्रबंधन संस्थानों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े कर चुके हैं। किसी तरह का प्लेसमेंट न होने के कारण छात्र भी अब इनसे दूरी बनाने लगे हैं। कंपनियां भी ऐसे संस्थानों में जाने से बचती हैं।
फिर भी अच्छा समय
अब कुछ ही प्रतिष्ठित कंपनियां कोर्स खत्म होने के कारण कैम्पस सिलेक्शन का विकल्प चुन रही है। एक समय था जब भारतीय छात्र एमबीए के लिए किसी भी संस्थान में दाखिला ले लेते थे, लेकिन अब कोर्स के अंत तक जॉब ऑफर न होने के कारण ऐसे फैसले मुफीद नहीं माने जा रहे हैं। हालांकि आईआईएम बी के निदेशक पकंज चन्द्र कहते हैं कि कैट की परीक्षा में हर साल कई लाख छात्र बैठते हैं लेकिन उनमसे केवल 3000 को ही आईआईएम में मौका मिलता है। एमबीए करने का यह सबसे अच्छा समय है।

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

१.५ लाख जॉब देगा फुटवियर पार्क

दिल्ली के पास बहादुरगढ़ इंडस्ट्रियल एरिया में ९०० करोड़ के निवेश से ३४२ एकड़ में तैयार बीएफपी (बहादुरगढ़ फुटवियर पार्क) के अगस्त से पूरी तरह ऑपरेशनल होने के बाद सीधे और परोक्ष रूप से १.५ लाख लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है। यहां से सालाना २०,००० करोड़ रुपए का कारोबार होगा। बीएफपी में एक्शन शूज, लखानी, रिलैक्सो, लांसर शूज और डायमंड सहित कई कंपनियों की यूनिट हैं।
एक्शन शूज के मैनेजिंग डायरेक्टर और बहादुरगढ़ फुटवियर इंडस्ट्री एसोसिएशन (बीएफआईए) के प्रेसिडेंट राजकुमार गुप्ता ने बताया, 'यहां ३६८ यूनिट हैं। बीएफपी से बाहर भी १२५ इकाइयां काम कर रही हैं।' उन्होंने दावा किया कि इसकी सभी यूनिटों के शुरू होने के बाद ५०,००० लोगों को सीधे और करीब १ लाख लोगों को परोक्ष तौर पर काम मिलेगा। बीएफपी का उद्घाटन दिसंबर २००७ में हुआ था। तब इलाके की फुटवियर इंडस्ट्री से २८,००० लोगों को रोजगार मिला हुआ था।
बहादुरगढ़ फुटवियर पार्क के महासचिव सुभाष जग्गा ने बताया कि वह बीएफपी से सालाना २०,०००-२५,००० करोड़ के टर्नओवर की उम्मीद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हर यूनिट औसतन सालाना ४-५ करोड़ रुपए का कारोबार कर सकती है। एक्शन शूज के गुप्ता कहते हैं कि वह बीएफपी की अपनी यूनिट से सालाना २५०-३०० करोड़ के कारोबार की उम्मीद कर रहे हैं। हालांकि, इंडस्ट्री कुछ बातों को लेकर परेशान भी है।
रिलैक्सो के मैनेजिंग डायरेक्टर रमेश कुमार दुआ ने ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर को सबसे बड़ा चैलेंज बताया। एक ही जगह इतनी इकाइयों के काम करने से डिजाइन और दूसरे इनोवेशन को भी बढ़ावा मिलेगा। इसमें रोहतक का फुटवियर डिजाइन एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (एफडीडीआई) भी मददगार साबित होगा। एफडीडीआई के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव जे लाकड़ा ने कहा कि संस्थान डिजाइन, प्रोडक्शन कैपेसिटी में सुधार, क्वालिटी कंट्रोल, मैनपावर और इनवेंटरी मैनेजमेंट में मदद करेगा। बहादुरगढ़ इंडस्ट्रियल एरिया के लिए पावर इंफ्रास्ट्रक्चर को भी बेहतर किया जा रहा है।
हरियाणा स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एचएसआईआईडीसी) के सीनियर मैनेजर (एस्टेट) कुलदीप कादियान ने बताया कि यहां १३२ केवीए क्षमता वाला पावर सब-स्टेशन लगाने की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। यह अगले ४-५ महीने में यह काम करने लगेगा।

रविवार, 12 फ़रवरी 2012

नौकरियों के हजारों दावेदार पर काबिलों की दरकार

कुछ दिन पहले ही विश्व बैंक ने एक अध्ययन जारी किया है। अध्ययन के अनुसार अगले दो दशक तक भारतीय बाजार में प्रत्येक महीने करीब ८,५०,००० नौकरियां उपलब्ध होंगी। वर्ष २०००- २०१० के दौरान भारतीय बाजार के लिए यह आंकड़ा ५,००,००० प्रति माह ही रहा है। ऐसे में आगे बढऩे के लिए अतिरिक्त रोजगार मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती है। लेकिन पिछले दशक में श्रमिकों के वेतन में बढ़ोतरी और स्वनियोजित व अस्थायी श्रमिकों की वित्तीय हालत सुधरने के बावजूद रोजगार की गुणवत्ता में सुधार लाना, रोजगार बढ़ाने से ज्यादा मुश्किल चुनौती है।
समस्या यह है कि कुल नियुक्त श्रमिकों में से एक तिहाई ऐसे हैं, जो दैनिक, अनियमित आधार पर काम करते हैं। लेकिन निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत व नियमित तौर पर वेतन प्राप्त करने वाले कर्मचारियों की संख्या में पिछले दशक के दौरान कोई खास बदलाव नहीं हुआ है और कुल कर्मचारियों में इनका हिस्सा महज १६.६७ फीसदी ही है।
दिलचस्प है कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के बावजूद कुल श्रमिकों में स्वनियोजित श्रमिकों की ५० फीसदी हिस्सेदारी है, जिनमें से ज्यादातर कृषि क्षेत्र से जुड़े हैं।
असली समस्या यही है। टीमलीज के चेयरमैन मनीष सबरवाल के अनुसार कृषि से जुड़े हुए लोगों की संख्या के लिहाज से इस क्षेत्र का उत्पादन बेहद कम है। मसलन ७.५ करोड़ भारतीय ११ करोड़ टन दूध का उत्पादन करते हैं जबकि १ लाख अमेरिकी ७ करोड़ टन दूध का उत्पादन करते हैं। उन्होंने कहा कि जब तक भारत कुल श्रम संख्या में कृषि क्षेत्र के हिस्से को घटाकर १५ फीसदी तक नहीं लाता, तब तक देश से गरीबी समाप्त नहीं की जा सकती। दिलचस्प है कि १९०० में करीब ४१ फीसदी अमेरिकी कृषि क्षेत्र में काम किया करते थे। लेकिन अमेरिका में कृषि के लिए यह आंकड़ा २ फीसदी से भी कम है। चीन में माओ के मरने के बाद अब तक करीब ४० करोड़ लोग गैर-कृषि क्षेत्रों से जुड़ गए हैं।
सबरवाल के अनुसार अगले २० साल के दौरान देश के श्रमिक बाजार में प्रभावी तरीके से होने वाले चार परिवर्तन करीब १६.३ करोड़ भारतीयों को गरीबी से बचा सकते हैं। ये परिवर्तन हैं- ग्रामीण से शहरी, असंगठित से संगठित, निर्वाह लायक स्वनियोजित से अच्छे वेतन वाली नौकरी और कृषि से गैर-कृषि क्षेत्र में श्रमिकों में इजाफा करना। विकसित अर्थव्यवस्थाओं का अनुभव यही कहता है कि ऐसा तभी मुमकिन है जब बच्चों को शुरुआत में ही बेहतर पोषण मिले। दूसरा, कुशल श्रमिकों की बढ़ती मांग देखते हुए शिक्षा की गुणवत्ता सुधारी जाए, जिससे उन्हें जरूरी प्रशिक्षण मुहैया कराया जा सके। उच्च शिक्षित श्रमिकों को मिलने वाले मोटे वेतन से भी यह साफ जाहिर होता है।
सबसे पहले हम बचपन में खराब पोषण की समस्या पर ध्यान देते हैं। यह एक ऐसा संकेतक है, जिस पर दक्षिण एशिया का प्रदर्शन सबसे खराब है। यहां तक कि उप सहारा अफ्रीकी देश भी इस मामले में दक्षिण एशिया से आगे हैं। यूं तो इस संकेतक पर भारत का प्रदर्शन अपने पड़ोसी देशों से बेहतर है लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ बेहतर नहीं है। मसलन, चाइल्ड राइट्स ऐंड यू (क्राई) द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट पर जरा गौर फरमाया जाए। क्राई के सर्वेक्षण में दिखाया गया है कि बृहनमुंबई नगर निगम (बीएमसी) द्वारा चलाए जा रहे ज्यादातर विद्यालयों में बच्चों को दोपहर के खाने में बिना नमक की 'खिचड़ी' दी जाती है, जिसमें रेत और कंकड़ मिलना आम बात है।
क्राई के स्वयंसेवक नितिन वाधवानी बताते हैं कि सूचना का अधिकार के तहत किए गए आवेदन में पता चला है विषाक्त भोजन के मामले सामने आने के बाद छात्रों को दूध की आपूर्ति भी बंद कर दी गई। उन्होंने बताया, 'सरकारी प्रस्ताव के अनुसार विद्यालयों में पढऩे वाले छात्रों को फल, मूंगफली, सोया बिस्कुट और अन्य पोषक उत्पाद भोजन में दिए
जाने चाहिए।'
अगर देश की आर्थिक राजधानी में इस योजना की यह हालत है, तो देश के कम विकसित इलाकों में हालात क्या होंगे, इसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं है। दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है रोजगार बढ़ाने के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना।
हकीकत यह है कि देश में जल्द ही विरोधाभास की स्थिति आने वाली है। हमारे देश के पास दुनिया में श्रमिकों की सबसे बड़ी फौज तो होगी लेकिन उनके पास उत्पादक रोजगार के लिए सही रवैया और जरूरी कौशल नहीं होगा। भारत में २५ साल से कम उम्र के करीब ५५ करोड़ लोग हैं और इनमें से महज ११ फीसदी ही उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला ले पाते हैं जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा २३ फीसदी है। इसके नतीजे जगजाहिर हैं। यहां एक कंपनी के अनुभव पर ध्यान देना बेहद जरूरी है, जिसे अपनी भारतीय इकाई के लिए डेवलपरों की नियुक्ति में काफी जद्दोजहद करनी पड़ी। कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, 'हमारे यहां नौकरी के लिए आवेदन करने वाले प्रतिभागियों को देखकर मुझे बेहद खराब लगा। लेकिन खुद को डेवलपर कहने वाले इन आवेदकों को सॉफ्टवेयर विकसित करने के बुनियादी सिद्घांतों की भी सही जानकारी नहीं थी।'
उन्होंने बताया, 'हमारे द्वारा लिए गए अनगिनत साक्षात्कारों में मुझे एहसास हुआ कि ज्यादातर डेवलपर अपनी पूरी ऊर्जा इसमें लगा देते हैं कि काम को कैसे पूरा किया जाए? भले ही वह काम कितना भी कच्चा हो। उनके साक्षात्कार के दौरान हमें यह देखकर बेहद हैरानी हुई कि पांच साल का अनुभव रखने वाले प्रतिभागी भी डिजाइन पैटर्न, स्ट्रक्चर्ड कोडिंग जैसे  बुनियादी सिद्घांत नहीं जानते थे। कुछ तो इतने ढीठ थे कि उन्होंने साक्षात्कार लेने वाले अधिकारी को यहां तक कह डाला कि ये सब काफी आधुनिक चीजें हैं और सॉफ्टवेयर डेवलपिंग में इनकी जरूरत नहीं होती है।'
राष्ट्रीय श्रम विकास परिषद की रणनीति प्रमुख गौरी गुप्ता के अनुसार भारत में २०२२ तक करीब ५२.६ करोड़ प्रशिक्षित श्रमिकों की जरूरत होगी। अगर ऊपर बताए गए कंपनी के अनुभव को ध्यान में रखा जाए, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है।

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

नौकरी बदलने को बेकरार कमर्चारी

ऊंचे वेतन की चाह में ज्यादातर कर्मचारी नौकरी बदलकर दूसरी कंपनी में जाने की योजना बना रहे हैं। ग्लोबल रिक्रूटमेंट सर्विस प्रोवाइडर माईहाइरिंगक्लब.कॉम के सर्वेक्षण के अनुसार, इस साल प्रत्येक पांच में तीन कर्मचारी बेहतर वेतन की संभावना के मद्देनजर दूसरी कंपनी में जाने की तैयारी कर रहे हैं। वहीं पांच में से दो कर्मचारी ऐसे भी हैं, जो मौजूदा वेतन पर ही नौकरी बदलने को तैयार हैं।
सर्वेक्षण में कुल १२,७५६ कर्मचारियों को शामिल किया गया। ज्यादातर कर्मचारी वेतन तथा मौजूदा नौकरी से अंसतुष्ट होने की वजह से दूसरी कंपनी में जाना चाहते हैं। प्रत्येक पांच में से चार कर्मचारी ऐसे थे, जो अपनी मौजूदा नौकरी से खुश नहीं थे। वहीं प्रत्येक चार में से एक कर्मचारी किसी नई इंडस्ट्री में नौकरी चाहता था। सर्वे में कहा गया है कि बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में कार्यरत ३७ फीसदी कर्मचारी इस उद्योग से बाहर नौकरी चाहते हैं। वहीं, दूरसंचार और रियल एस्टेट सेक्टर में कार्यरत कर्मचारी भी किसी नए उद्योग में नौकरी करना चाहते हैं।
हालांकि, आईटी, एफएमसीजी और हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारी उद्योग के भीतर ही नौकरी बदलना चाहते हैं। बैंकिंग, वित्तीय, बीमा और एनबीएफसी क्षेत्र नौकरी चाहने वालों का पसंदीदा विकल्प नहीं रह गया है। दो-तीन साल पहले यह स्थिति थी कि गैर-आईटी पृष्ठभूमि वाला उम्मीदवार इन क्षेत्रों में नौकरी करना चाहता था।
सैट-एन-मर्क मैनपावर कंसल्टेंट की निदेशक प्राची कुमार ने बताया कि नौकरी का बाजार पूरी तरह बदल गया है। यहां तक कि इन उद्योगों के उम्मीदवार भी दूसरे क्षेत्र में नौकरी करना चाहते हैं। पिछले दो-तीन साल में इन उद्योगों में नौकरी छोड़ने की दर दोगुनी हो गई है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि बाजार में नौकरी ढूंढने का चलन फिर से लौट आया है। अब कर्मचारियों को भरोसा है कि वे सिर्फ अपने रेफरेंस से नई नौकरी हासिल कर सकते हैं। प्रत्येक पांच में से चार कर्मचारियों का मानना था कि नई नौकरी पाने में सफलता का प्रतिशत ८५ है। वहीं पांच में से एक कर्मचारी ने कहा कि नौकरी पाने के लिए ऑनलाइन रोजगार बाजार और सलाहकार कंपनियां बेहतर विकल्प हैं।

खुशखबरी.. हर महीने ४ लाख नौकरियां

आर्थिक मंदी के बीच नौकरियों की खोज करने वालों के लिए अच्छी खबर है। अब उन्हें जल्द ही नई और अच्छी नौकरी मिल सकती है। वो भी मंदी के दौरान ही। जी हां, अब कंपनियां जॉब मार्केट को बेहतर बनाने में लग गई हैं। इसकी बदौलत ही अकेले जनवरी में ६,३१,००० लोगों को नौकरियां मिली है। जानकार आगे इस आंकड़े में और सुधार की बात कर रहे हैं। एक सर्वे के मुताबिक, जनवरी में नौकरियों में हुआ यह इजाफा एक रिकॉर्ड है। २००७ की मंदी के बाद से अब तक किसी भी १ महीने में सबसे ज्यादा बढ़ी नौकरियां हैं। आने वाले महीनों में नौकरियों की इजाफा दर में और भी सुधार होगा।
गौरतलब है कि पिछले में बेरोज१ साल गारी दर कम हुई है। जनवरी २०११ में ये दर ९.१ फीसदी थी। वहीं जनवरी २०१२ में सुधार के साथ यह आंकड़ा ८.३ फीसदी हो गया है। हालांकि इस दौरान बीच में बेरोजगारी दर में कई बार उतार-चढ़ाव भी हो चुका है। मूडी एनालिस्टिक के मुख्य अर्थशास्त्री मार्क जांडी ने बताया कि हॉउसहोल्ड सर्वे में मिले परिणाम अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत हैं। यह आंकड़ा मंदी के कम होते असर और मजबूत अर्थव्यवस्था की ओर इशारा करता है।
एक अन्य आंकड़े के मुताबिक, नौकरियों के साथ-साथ छोटे कारोबार की ऋण मांग में भी जबरदस्त उछाल देखा गया है। हालांकि मांग के मुताबिक कर्ज मुहैया कराने में अभी काफी मुश्किल हो रही है।

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

संभला अमेरिका, एक ही महीने में ढ़ाई लाख नौकरियां

लगातार मंदी से जूझ रहे अमेरिका के लिए अच्छी खबर है। सिर्फ जनवरी महीने में ही अमेरिका में ढ़ाई लाख नौकरियों का सृजन हुआ है, जिससे बेरोजगारी दर घटकर ८.३ फीसदी हो गई। इसे आर्थिक स्थिति में सुधार का संकेत माना जा रहा है। अमेरिका के ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक के कार्यवाहक आयुक्त जॉन गाल्विन ने कहा कि बेरोजगारी दर जनवरी में घटकर ८.३ प्रतिशत हो गयी। माह के दौरान गैर-कृषि क्षेत्र में २४३,००० नये रोजगार का सृजन हुआ। अमेरिका में बेरोजगारी दर अगस्त महीने से लगातार घट रही है। उस समय यह ९.१ प्रतिशत थी।

रविवार, 22 जनवरी 2012

नौकरी बदलने की योजना बनाते कर्मचारी

उंचे वेतन की चाह में ज्यादातर कर्मचारी नौकरी बदलकर दूसरी कंपनी में जाने की योजना बना रहे हैं। वैश्विक रिक्रूटमेंट सेवा प्रदाता माई हाइरिंग क्लब ण्काम के सर्वेक्षण के अनुसारए इस साल प्रत्येक पांच में तीन कर्मचारी बेहतर वेतन की संभावना के मद्देनजर दूसरी कंपनी में जाने की तैयारी कर रहा है। वहीं पांच में से दो कर्मचारी ऐसे भी हैं जो मौजूदा वेतन पर ही नौकरी बदलने को तैयार हैं। सर्वेक्षण में कुल 12756 कर्मचारियों को शामिल किया गया। ज्यादातर कर्मचारी वेतन तथा मौजूदा नौकरी से अंसतुष्टी की वजह से दूसरी कंपनी में जाना चाहते हैं। प्रत्येक पांच में से चार कर्मचारी ऐसे थेए जो अपनी मौजूदा नौकरी से खुश नहीं थे। वहीं प्रत्येक चार में से एक कर्मचारी किसी नए उद्योग में नौकरी चाहता था। सर्वेक्षण में कहा गया है कि बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में कार्यरत 37 फीसद कर्मचारी इस उद्योग से बाहर नौकरी चाहते हैं। वहीं दूरसंचार और रीयल एस्टेट क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारी भी किसी नए उद्योग में नौकरी करना चाहते हैं। हालांकि आईटी एफएमसीजी और हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारी उद्योग के भीतर ही नौकरी बदलना चाहते हैं। सर्वेक्षण में कहा गया है कि आज की तारीख में बैंकिंग वित्तीय बीमा और एनबीएफसी क्षेत्र नौकरी चाहने वालों का पसंदीदा विकल्प नहीं रह गया है। दो तीन साल पहले यह स्थिति कि गैर आईटी पृष्ठभूमि वाला उम्मीदवार इन क्षेत्रों में नौकरी करना चाहता था। सर्वेक्षण में कहा गया है कि बाजार में नौकरी ढूंढने का चलन फिर से लौट आया है। अब कर्मचारियों को भरोसा है कि वे सिर्फ अपने रेफरेंस से नई नौकरी हासिल कर सकते हैं। प्रत्येक पांच में से चार कर्मचारियों का मानना था कि नई नौकरी पाने में रेफरेंस की सफलता का प्रतिशत 85 है। वहीं पांच में से एक कर्मचारी ने कहा कि नौकरी पाने के लिए आनलाइन रोजगार बाजार और सलाहकार बेहतर विकल्प है।

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

फ्रेंचाइजी: बनें खुद के बॉस

फ्रेंचाइजी एक ऐसा काम है, जिसमें आप नामी कंपनियों के उत्पाद को अपने शो-रूम या दुकान में बेचते हैं और उस कंपनी की साख के हिसाब से मुनाफा कमा सकते हैं। आप भी फ्रेंचाइजी ले सकते हैं।  अगर आप खुद के बॉस बन जाएं तो कैसा लगेगा..? यदि मन में कुछ आशाएं कुलांचे भरने लगी हैं और खुद का बॉस बनने का सपना आकार लेने लगा है तो फ्रेंचाइजी इंडस्ट्री में हाथ आजमाने के लिए तैयार हो जाएं। फ्रेंचाइजी का मतलब है किसी नामी कंपनी के नाम का इस्तेमाल करके उसका सामान बेचना या उसी नाम से व्यापार करना।
यह एक ऐसा काम है, जिसे छोटे शहरों, कस्बों, यहां तक कि दूर-दराज के गांवों में भी शुरू किया जा सकता है। गांवों और छोटे कस्बों में आप किसान कॉल सेंटर और कम्प्यूटर ट्रेनिंग सेंटरों की फ्रेंचाइजी ले सकते हैं तो छोटे और बड़े शहरों में खाने-पीने और शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य से जुड़ी कम्पनियों की फ्रेंचाइजी ले सकते हैं। बस एक छोटा- सा निवेश आपको आसमान की बुलंदी तक ले जा सकता है।
क्या है फ्रेंचाइजी
बाजार में आजकल खुली प्रतिस्पर्धा और ब्रांडिंग का जमाना है।कम्पनियां अधिक से अधिक ग्राहक अपनी ओर खींचना चाहती हैं। कोई भी फेमस कम्पनी, जिसका नाम बाजार में स्थापित हो चुका होता है, वह कुछ शर्तों के साथ आपको अपने नाम के इस्तेमाल की इजाजत दे देती है। इसके लिए आपको कम्पनी द्वारा बनाए गए नियमों की कसौटी पर खरा उतरना होगा। मशहूर कम्पनी की फ्रेंचाइजी लेने से बाजार में स्थापित होने में समय नहीं लगता।
कैसे लें फ्रेंचाइजी
अगर आप फ्रेंचाइजी लेकर अपना काम शुरू करना चाहते हैं तो सबसे पहले इंडस्ट्री का चयन करें। फिर उसमें होने वाले खर्चे का आकलन करें। इस बात के लिए पूरी मार्केट रिसर्च करनी होगी कि किस इंडस्ट्री में किस कंपनी की फ्रेंचाइजी पर कितना पैसा लगाने पर कितना लाभ कमाया जा सकता है।
पूरी तैयारी के बाद कंपनी के फ्रेंचाइजर से मिलें। इंटरनेट पर भी कंपनियों के फ्रेंचाइजी नियमों और उपलब्धता के बारे में जानकारी उपलब्ध रहती है। अगर आप फ्रेंचाइजी कम्पनियों की शर्तों पर खरे उतरे तो आपको आसानी से फ्रेंचाइजी मिल जाएगी। शर्तों पर सहमति के बाद ही आपको किसी कम्पनी की फ्रेंचाइजी मिलेगी।
कैसे करें कंपनी का चुनाव
छोटी कम्पनियों की फ्रेंचाइजी २ लाख से १० लाख रुपये के बीच उपलब्ध है, इसलिए आप अपनी जेब के अनुसार फ्रेंचाइजी ले सकते हैं। आपको देखना होगा कि आप जिस जगह फ्रेंचाइजी लेना चाहते हैं, वहां आपका काम चल भी पाएगा कि नहीं। कम्पनी की मार्केट वैल्यू आंकने के बाद ही आप उसकी फ्रेंचाइजी लेने का फैसला करें।
फ्रेंचाइजी कंपनियों की मुख्य शर्तें
जगह: काम शुरू करने के लिए आपके पास पर्याप्त जगह होनी चाहिए।
सिक्योरिटी मनी: कंपनियां कुछ सिक्योरिटी मनी रखवाती हैं।
समय: सभी कंपनियों की अलग-अलग शर्तें होती हैं। कुछ कंपनियां निश्चित समयावधि तो कुछ आजीवन के लिए फ्रेंचाइजी देती हैं।
न ले सकता है फ्रेंचाइजी
फ्रेंचाइजी के लिए बहुत ज्यादा पढ़ा-लिखा होना जरूरी नहीं है। बिजनेस की थोड़ी-सी समझ, इसके अलावा जगह, सोशल नेटवर्क और जोखिम उठाने की क्षमता है तो आप इस क्षेत्र में आ सकते हैं।
किन-किन सेक्टरों में मिल सकती है फ्रेंचाइजी
मार्केट में हर सेक्टर की फ्रेंचाइजी उपलब्ध है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस क्षेत्र में हाथ आजमाना चाहते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में जहां मदर्स प्राइड, शेमरॉक स्कूल, किड्स गुरुकुल और बचपन जैसे स्कूल फ्रेंचाइजी दे रहे हैं, वहीं उच्च शिक्षा में इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ कॉमर्स एंड ट्रेड जैसे संस्थान हैं। कंप्यूटर एजुकेशन के लिए भी एसटीसी टेक्नोलॉजी और एनिमेशन के लिए पिकासो डिजिटल मीडिया जैसे नाम शामिल हैं।
खाने-पीने के क्षेत्र में भी फ्रेंचाइजी उपलब्ध है। यहां फूड फैक्ट्री स्लाइस पिज्जा, अंकल फूड प्रोडक्ट्स, विजयनबिज जो एक साउथ इंडियन फूड कॉर्नर है, जे कार्ट हेल्थ एंड लाइफस्टाइल प्रा.लि., बेबे दा ढाबा जैसी कम्पनियां शामिल हैं। इनके अलावा रिटेल के क्षेत्र में किताबों की दुकान बुक कैफे, किड स्पेस, महिलाओं के ब्रांड स्वास्तिक, एक्वेरियम वर्ल्ड शॉप और ज्वेलरी डिजाइनिंग के क्षेत्र से जुड़ी डायागोल्ड जैसी कम्पनियां शामिल हैं।
निवेश
बहुत छोटी-सी धनराशि से आप बड़ा काम शुरू कर सकते हैं और इसमें जोखिम की संभावना भी कम है। छोटी कम्पनियों की फ्रेंचाइजी २ लाख से १० लाख के बीच में मिल जाती है।
सरकारी सहायता और लोन
केंद्र और राज्य सरकारों की लघु उद्योग से जुड़ी नीतियों में सब्सिडी के साथ लोन की व्यवस्था है। इसके अलावा बैंक भी लोन मुहैया करवाते हैं।
सुनहरा भविष्य
अमेरिकी मार्केट रिसर्च कम्पनी के मुताबिक एशियन फ्रेंचाइजी मार्केट की आय प्रतिवर्ष ५० बिलियन अमेरिकी डॉलर के हिसाब से बढ़ रही है और आने वाले पांच सालों में यह १०० बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगी। पिछले तीन-चार सालों में भारत में फ्रेंचाइजी का ट्रेंड ३० से ३५ प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा है, इसलिए भविष्य में भी फ्रेंचाइजी मार्केट हॉट रहने की उम्मीद की जा सकती है।

एक्सपर्ट व्यू
मार्केट रिसर्च के बाद ही फ्रेंचाइजी लें
प्रवीण गुप्ता, फ्रेंचाइजी एक्सपर्ट

भारत में इस समय तकरीबन ७५० देसी-विदेशी कंपनियों की फ्रेंचाइजियां काम कर रही हैं, जिनमें तीन लाख लोगों को सीधा रोजगार मिला हुआ है। पूरे देश में बन रही १५०० सुपरमार्केट, ५०० से भी ज्यादा बन रहे नए मॉल और डिपार्टमेंटल स्टोर इस क्षेत्र के सुनहरे भविष्य को पुख्ता करते हैं। विदेशी कंपनियां भारत के सभी राज्यों में फ्रेंचाइजी मार्केट को बढ़ावा दे रही हैं। भारत में फ्रेंचाइजी का कॉन्सेप्ट अभी नया है और इससे संबंधित सही जानकारी कुछ ही लोगों के पास उपलब्ध है। कंपनियां इसी का फायदा उठा कर अक्सर लोगों को ठगने में कामयाब होती हैं।

विदेशों में फ्रेंचाइजी को लेकर अलग से कानून है, जबकि भारत में अभी इस संबंध में कोई कानून नहीं है। अगर आप भी फ्रेंचाइजी लेना चाहते हैं तो इसके लिए पूरी मार्केट रिसर्च करके इस क्षेत्र में उतरें। इसके लिए आप किसी जानकार व्यक्ति की सलाह भी अवश्य लें। हमारे देश में प्रतिवर्ष फ्रेंचाइजी प्लस एक्सपो लगता है, जहां से जानकारी लेकर आप पूरी तरह आश्वस्त होकर इस काम की शुरुआत कर सकते हैं। भारत में फ्रेंचाइजी का सालाना कारोबार ३० बिलियन अमेरिकी डॉलर से भी ज्यादा का है।

बेरोजगार युवकों के लिए फ्रेंचाइजी कमाई का एक अच्छा जरिया है। अगर आप कम पैसे और कम जोखिम के साथ फ्रेंचाइजी लेना चाहते हैं तो आपके लिए बिजनेस सर्विस, रिटेल, फाइनेंशियल सर्विस, रियल एस्टेट, ट्रैवल, होटल, मोटल, फूड एंड बेवरेज, लाइफस्टाइल, एजुकेशन, एन्टरटेनमेंट, ऑटोमोटिव, आईटी, हेल्थ और ब्यूटी केयर ऐसे क्षेत्र हैं, जहां खूब संभावनाएं हैं।

कई कम्पनियां तो अपनी फ्रेंचाइजी कुछ शर्तों सहित मुफ्त देती हैं तो कई के लिए कम्पनियां बदले में कुछ सिक्योरिटी मनी रखवाती हैं।

आज मैं खुद का मालिक हूं
सक्सेस स्टोरी/सुशील कुमार
नेवा के फ्रेंचाइजी होल्डर, बलिया

सुशील सामान्य ग्रेजुएट हैं, लेकिन फिर भी वे एक स्मार्ट बिजनेसमैन हैं। पहले वे नौकरी करते थे, लेकिन नौकरी से तंग आकर उन्होंने दुकानदारी की, पर मार्केटिंग के लिए हर महीने दिल्ली-कोलकाता के चक्कर काटते-काटते वे परेशान हो गए तो उन्होंने फ्रेंचाइजी लेने का निर्णय किया।

आज उनके पास कई नामी कम्पनियों की फ्रेंचाइजी हैं। वे कहते हैं कि मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बलिया जैसे छोटे शहर के लोग ब्रांड्स को इतना पसंद करेंगे। फ्रेंचाइजी के लिए पैसे कम थे तो सुशील ने अपने एक दोस्त के साथ मिल कर काम शुरू किया। शुरुआत में उन्हें दो लाख रुपये खर्च करने पड़े। आज उन्हें मार्केटिंग के लिए दिल्ली और कोलकाता की भीड़ भरी जगहों के चक्कर नहीं लगाने पड़ते, बल्कि एक फोन पर ही सारा सामान दुकान में पहुंचता है। वे कहते हैं कि फ्रेंचाइजी से उनकी रोजी-रोटी का स्थाई और पुख्ता जुगाड़ हो गया है। फ्रेंचाइजी के काम में मेहनत तो है, लेकिन पैसा और शोहरत भी हैं। वे गर्व से कहते हैं- आज मैं खुद का मालिक हूं।

यह क्षेत्र कम निवेश और कम जोखिम के साथ बेहतर लाभ देने वाला है। सुशील कहते हैं कि शहरों में फ्रेंचाइजी खोलने के अवसर बड़े पैमाने पर मौजूद हैं। इस क्षेत्र में कम पैसे में बेहतर लाभ कमाया जा सकता है। अब मेरी नजर विदेशी कंपनियों पर है। कई विदेशी कंपनियां भारत में अपने आउटलेट खोलने जा रही हैं और उनकी नजर छोटे शहरों और कस्बों पर भी है। ऐसे में ऐसी कंपनियों से साझा फ्रेंचाइजी लेकर अपना बिजनेस शुरू करना काफी फायदेमंद है। अब ब्रांड्स का जमाना है, इसलिए लोगों की पसंद बदल चुकी है।

सोमवार, 16 जनवरी 2012

तेल क्षेत्र में नौकरियों की बहार

सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों में नौकरी की बहार है। वित्तीय अनिश्चितताओं का असर नई भर्ती की उनकी योजनाओं पर नहीं पड़ा है। इससे निजी क्षेत्र में नई भर्तियों में आई गिरावट की भरपाई करने में मदद मिलेगी। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ;आईओसीद्ध और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन ;एचपीसीएलद्ध जैसी सरकारी फर्में इस साल करीब 1ए000 नए एग्जिक्यूटिव की भर्ती की योजना बना रही हैं। ये कंपनियां एक्सएलआरआई.जमशेदपुरए सिम्बायसिसए पुणेए एफएमएस.दिल्ली और आईआईटी जैसे संस्थानों से रिक्रूटमेंट करेंगी। आईओसी 2012.13 के दौरान एग्जिक्यूटिव श्रेणी में 500 कर्मचारियों की भर्ती कर सकत हैं। नॉन.एग्जिक्यूटिव श्रेणी में भी करीब 150 भर्तियां की जा सकती हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की यह रिफाइनिंग और मार्केटिंग कंपनी रिक्रूटमेंट के लिए कई बिजनेस स्कूलों का दौरा करने की योजना बना रही है। कोल इंडिया और भेल ने भी हाल के सालों में आईआईएम के स्टूडेंट्स को नौकरियों के ऑफर दिए हैं। आईओसी ने साल 2009 में आर्थिक सुस्ती के दौरान आईआईएम से रिक्रूटमेंट किए थे। लेकिन कंपनी उन्हें ज्यादा दिन तक अपने यहां नहीं रख सकीए क्योंकि उन्हें जल्द ही प्राइवेट सेक्टर से मोटा सैलरी का पैकेज मिल गया। उम्मीद है कि इस साल कंपनी दूसरे संस्थानों से भी हायरिंग करेगी। कंपनी इंटरनेशनल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट ;आईएमआईद्ध.नई दिल्लीए इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी ;आईएमटीद्ध.गाजियाबादए सिम्बायसिस इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट ;एसआईबीएमद्ध.पुणे जैसे संस्थानों में कैंपस के लिए जा सकती है। वित्त वर्ष 2011.12 के दौरान आईओसी ने 567 नए एग्जिक्यूटिव भर्ती किए। कई पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण होने की वजह से तेल कंपनियों को भले ही नुकसान उठाना पड़ रहा हैए लेकिन गैर.वित्तीय प्रदर्शन से जुड़े पैमानों पर उनका प्रदर्शन बेहतर है। प्रति कर्मचारी मूल्य संवर्द्धनए रिफाइनरीए पाइपलाइंस और मार्केटिंग क्षमता जैसे एचआर के मानकों पर इनके प्रदर्शन में सुधार आया हैं। एचपीसीएल ने साल 2012.13 के दौरान 300 अधिकारियों की भर्ती करने की योजना बनाई है। एचपीसीएल ने एक बयान में कहाए श्एलपीजीए रीटेलए ऑपरेशंस एंड डिस्ट्रीब्यूशन और प्रोजेक्ट एंड पाइपलाइंस सेगमेंट में सबसे ज्यादा भतिर्यां देखने को मिलेंगी।श्

रविवार, 15 जनवरी 2012

ग्लोबल टेस्ट में नीचे से दूसरे नंबर पर रहे भारतीय छात्र

दुनिया भर में आईटी सेक्टर के भारतीय छात्र भले ही बेहतरीन प्रदर्शन करते रहे हों, लेकिन कई दूसरे स्तर पर भारत अब भी शिक्षा के मामले में काफी पिछड़ा है और इंटरनैशनल लेवल पर खुद को साबित करने के लिए इसके एजुकेशन सिस्टम में बेहतरी की काफी गुंजाइश है। एक इंटरनैशनल स्टडी में भारतीय छात्रों का प्रदर्शन पूरी तरह फ्लॉप रहा है।अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्टडी में १५ साल की उम्र के भारतीय स्टूडेंट्स को दुनिया भर के इसी ऐज ग्रुप के स्टूडेंट्स के साथ रीडिंग, मैथ्स और साइंस संबंधी क्षमताओं से जुड़े असैसमेंट प्रोग्राम में बिठाया गया तो वह बुरी तरह पिछड़ गए। केवल किर्गीस्तान को हराते हुए भारतीय छात्र सेकंड लास्ट (नीचे से सेकंड) पॉजिशन पर आए।
ऑर्गनाइजेशन फॉर इकॉनमिक को-ऑपरेशन ऐंड डिवेलपमेंट ( ह्रश्वष्टष्ठ ) द्वारा हर साल आयोजित किए जाने वाले प्रोग्राम फॉर इंटरनैशनल स्टूडेंट असैसमेंट (क्कढ्ढस््र) में ७३ देशों से आए स्टूडेंट्स ने भाग लिया। यह असैसमेंट बच्चों एजुकेशन सिस्टम के मूल्यांकन के लिए किया जाता है। तकरीबन ५ लाख स्टूडेंट्स ने इसमें पार्टिसिपेट किया और यह सर्वे ढाई घंटे चला।
चीन के शंघाई प्रांत से भी स्टूडेंट्स ने पहली बार ही भाग लिया था लेकिन इस सर्वे में वे रीडिंग फील्ड में टॉप पर रहे। मैथमेटिक्स और साइंस में भी उन्होंने ही टॉप किया।विश्लेषण में बताया गया, 'शंघाई के एक चौथाई से भी ज्यादा स्टूडेंट्स ने मुश्किल समस्याओं को सुलझाने में अडवांस्ड मैथमेटिकल थिंकिंग स्किल्स का प्रयोग किया, ह्रश्वष्टष्ठ के सिर्फ ३ परसेंट की तुलना में।' ग्लोबल टॉपर से भारतीय छात्र २०० अंकों से पिछड़े।सरकार ने इस प्रोग्राम में शामिल होने के लिए तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश से विद्यार्थियों का चयन किया था ताकि वे शिक्षा और विकास की चमकदार तस्वीर पेश करके आएं लेकिन नतीजे कुछ और ही सामने आए।इन २ राज्यों की परफॉर्मेंस से जो नतीजे सामने आए, वह उदास करने वाले है। गणित में भारत ने मात्र किर्गीस्तान को हराया और दूसरे व तीसरे नंबर पर रहे। इंग्लिश टेक्स्ट पढ़ने में भी तमिलनाडु और हिमाचल के छात्र केवल किर्गीस्तान से बेहतर थे। उसमें भी इन राज्यों की लड़कियां लड़कों से काफी बेहतर थीं। सांइस के टेस्ट में हिमाचल के स्टूडेंट्स सबसे फिसड्डी साबित हुए और तमिलनाडु ने हल्का बेहतर प्रदर्शन किया और नीचे से तीसरे नबंर पर रहा। जाहिर है कि सरकार को अपने एजुकेशनल सिस्टम पर गौर करने की जरूरत है।

रविवार, 1 जनवरी 2012

नए साल में होगी नौकरियों की बारिश

५ लाख नौकरियां कर रही हैं इंतजार
नौकरी की तलाश कर रहे लोगों के लिए बड़ी खुशखबरी है। नए साल में तकरीबन ५ लाख नौकरियां इनका इंतजार कर रही हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि २०१२ में तमाम आर्थिक उठापटक के बीच कंपनियां ५ लाख से ज्यादा लोगों को नौकरी पर रखेंगी। सिर्फ यही नहीं जो लोग नौकरी कर रहे हैं उनके लिए भी बड़ी खुशखबरी है। आर्थिक निराशा के ग्लोबल वातावरण के बावजूद कर्मचारियों की सैलरी डबल डिजिट में होगा।ग्लोबल हंट के डायरेक्टर सुनील गोयल का कहना है कि अगर सब कुछ ठीक रहा और सरकार की नीतियां सही दिशा में चलती रहीं तो सभी सेक्टर में करीब ५ लाख नई नौकिरियां क्रिएट होंगी।२०११ में भारत के जॉब मार्केट में शुरू में काफी अनिश्चितता रही, लेकिन बाद में हालात सुधरे। कंपनियों ने सतर्क होकर रोजगार दिया, लेकिन इस साल स्थिति कहीं बेहतर रहेगी।एलिक्सर कंसल्टिंग की वाइस प्रजिडेंट मोनिका त्रिपाठी ने बताया कि सिर्फ आईटी सेक्टर में २०१२ में ३ लाख नई नौकरियां होंगी। २०११ की तुलना में इस साल ७ से ८ फीसदी तक ज्यादा रोजगार मिलेंगे।