एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले आठ वर्षों में भारत में स्नातकों की संख्या अमरीकी स्नातकों से ज्यादा होगी ये बात उत्साहवर्धक लगती है लेकिन शिक्षाविद इस रुझान से इत्तेफाक नहीं रखते हैं ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनोमिक कोऑपरेशन एंड डेवेलपमेंट यानी ओईसीडी का कहना है कि साल 2020 तक स्नातकों की संख्या के हिसाब से चीन पहले भारत दूसरे और अमरीका तीसरे स्थान पर होगालेकिन भारत के मामले में विशेषज्ञ इसे महज संख्या बताते हैं जिसमें उनके मुताबिक गुणवत्ता नहीं होगी
आबादी का पहलू
जानेमाने शिक्षाविद अनिल सदगोपाल कहते हैं कि पूरी दुनिया की आबादी में अमरीका की आबादी का प्रतिशत लगभग साढ़े चार है जबकि भारत की आबादी सत्रह फीसद है इसलिए जाहिर है कि भारत में शिक्षा की स्थिति बेहतर होती है तो वो अमरीका से आगे निकल जाएगावे कहते हैं इस रिपोर्ट में संख्या की बात की गई है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता पर कुछ नहीं कहा गया है सदगोपाल सवाल उठाते हैंउच्च शिक्षा का मकसद क्या बेहतर समाज का निर्माण करना है या आप केवल वैश्विक बाजार और पूंजी के लिए पैदल सिपाहियों की फौज खड़ी कर रहे हैं पश्चिम के मुकाबले हम फिर पिछड़ेंगे संख्या हमारी ज्यादा हो सकती है लेकिन पश्चिम में जो शोध होगा वो हमसे कहीं आगे होगाभारत में स्नातकों की संख्या बढ़ने की वजह के बारे में पूछे जाने पर अनिल सदगोपाल कहते हैंश्श्गांव में खेती आधारित रोजगार को बड़ी तेजी से खत्म किया गया है वहां की आबादी लाचार होकर शहरों की ओर आई तो उनके बच्चों को भी कुछ करना होगा श्श्यही वजह है कि वो कैसी भी घटिया डिग्री क्यों न होए लेने की कोशिश करेंगेण् इंजीनियरिंग और मेडिकल के क्षेत्र में भी यही हाल हैण् इन लोगों के लिए तो नौकरी भी नहीं है
निजी कॉलेजों की दशा बताते हुए अनिल सदगोपाल कहते हैं कि यहां अब कोई कंपनी प्लेसमेंट के लिए भी नहीं आती है बच्चों से प्लेसमेंट के नाम पर फीस ली जाती है और कंपनियों से कहा जाता है कि वे आकर प्लेसमेंट का नाटक करें
एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक डॉक्टर जगमोहन सिंह राजपूत का कहना है कि भारत में सिर्फ स्नातकों की संख्या बढ़ने से बात नहीं बनने वाली हैवे कहते हैंए श्श्मेरे लिए इस बात का कोई महत्व नहीं होगा कि हम नंबर एक पर होंगे या नंबर दो परए हमें ये देखना होगा कि हमारे शोध की गुणवत्ता कैसी है हमारे कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का स्तर कैसा हैवे कहते हैं कि भारत में अब सब अपने लड़केलड़कियों को पढ़ा रहे हैं लेकिन बहुत से बच्चे थोड़ाबहुत पढ़लिखकर बैठ जाते हैं क्योंकि इस शिक्षा के साथ कौशल नहीं जुड़ा होता है जब तक शिक्षा के साथ कौशल नहीं होगा तब तक स्थिति सुधरने वाली नहीं है
शिक्षा.संबंधी नीति और इस नीति को बनाने वालों पर सवालिया निशान लगाते हुए वे कहते हैंश्श्जो लोग शिक्षा नीति बनाते हैं उनके बच्चे तो सरकारी स्कूल में कभी गए नहीं होते इन लोगों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़े होते तो सरकारी स्कूलों की हालत इतनी खराब नहीं होती
वे कहते हैं कि भारत के 70 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं जिन्हें अपेक्षित शिक्षा नहीं मिलती हैए अभी सिर्फ 30 प्रतिशत बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल रही है और यही बच्चे दुनियाभर में भारत का नाम रौशन कर रहे हैंवे कहते हैंए श्श्यदि भारत के 80 प्रतिशत बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाते तो देश की ज्ञान.सम्पदा दुनिया में सबसे ज्यादा होती
आबादी का पहलू
जानेमाने शिक्षाविद अनिल सदगोपाल कहते हैं कि पूरी दुनिया की आबादी में अमरीका की आबादी का प्रतिशत लगभग साढ़े चार है जबकि भारत की आबादी सत्रह फीसद है इसलिए जाहिर है कि भारत में शिक्षा की स्थिति बेहतर होती है तो वो अमरीका से आगे निकल जाएगावे कहते हैं इस रिपोर्ट में संख्या की बात की गई है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता पर कुछ नहीं कहा गया है सदगोपाल सवाल उठाते हैंउच्च शिक्षा का मकसद क्या बेहतर समाज का निर्माण करना है या आप केवल वैश्विक बाजार और पूंजी के लिए पैदल सिपाहियों की फौज खड़ी कर रहे हैं पश्चिम के मुकाबले हम फिर पिछड़ेंगे संख्या हमारी ज्यादा हो सकती है लेकिन पश्चिम में जो शोध होगा वो हमसे कहीं आगे होगाभारत में स्नातकों की संख्या बढ़ने की वजह के बारे में पूछे जाने पर अनिल सदगोपाल कहते हैंश्श्गांव में खेती आधारित रोजगार को बड़ी तेजी से खत्म किया गया है वहां की आबादी लाचार होकर शहरों की ओर आई तो उनके बच्चों को भी कुछ करना होगा श्श्यही वजह है कि वो कैसी भी घटिया डिग्री क्यों न होए लेने की कोशिश करेंगेण् इंजीनियरिंग और मेडिकल के क्षेत्र में भी यही हाल हैण् इन लोगों के लिए तो नौकरी भी नहीं है
निजी कॉलेजों की दशा बताते हुए अनिल सदगोपाल कहते हैं कि यहां अब कोई कंपनी प्लेसमेंट के लिए भी नहीं आती है बच्चों से प्लेसमेंट के नाम पर फीस ली जाती है और कंपनियों से कहा जाता है कि वे आकर प्लेसमेंट का नाटक करें
एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक डॉक्टर जगमोहन सिंह राजपूत का कहना है कि भारत में सिर्फ स्नातकों की संख्या बढ़ने से बात नहीं बनने वाली हैवे कहते हैंए श्श्मेरे लिए इस बात का कोई महत्व नहीं होगा कि हम नंबर एक पर होंगे या नंबर दो परए हमें ये देखना होगा कि हमारे शोध की गुणवत्ता कैसी है हमारे कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का स्तर कैसा हैवे कहते हैं कि भारत में अब सब अपने लड़केलड़कियों को पढ़ा रहे हैं लेकिन बहुत से बच्चे थोड़ाबहुत पढ़लिखकर बैठ जाते हैं क्योंकि इस शिक्षा के साथ कौशल नहीं जुड़ा होता है जब तक शिक्षा के साथ कौशल नहीं होगा तब तक स्थिति सुधरने वाली नहीं है
शिक्षा.संबंधी नीति और इस नीति को बनाने वालों पर सवालिया निशान लगाते हुए वे कहते हैंश्श्जो लोग शिक्षा नीति बनाते हैं उनके बच्चे तो सरकारी स्कूल में कभी गए नहीं होते इन लोगों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़े होते तो सरकारी स्कूलों की हालत इतनी खराब नहीं होती
वे कहते हैं कि भारत के 70 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं जिन्हें अपेक्षित शिक्षा नहीं मिलती हैए अभी सिर्फ 30 प्रतिशत बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल रही है और यही बच्चे दुनियाभर में भारत का नाम रौशन कर रहे हैंवे कहते हैंए श्श्यदि भारत के 80 प्रतिशत बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाते तो देश की ज्ञान.सम्पदा दुनिया में सबसे ज्यादा होती
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