पर्यटन ने युवाओं के लिए काम के बेशुमार मौके पैदा कर दिए हैं। वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म काउंसिल के अनुसार 2018 तक भारत दुनिया का सबसे सक्रिय टूरिस्ट स्पॉट होगा। लेकिन देश के शिक्षण संस्थान पर्यटन मार्केट की इस हलचल से हैं बेखबर। ज्यादातर कोर्स हैं पुराने और अप्रासंगिक। इनमें करीब आधी सीटें खाली हैं। युवाओं में इस सेक्टर में रोजगार के प्रति जागरूकता की कमी भी है।
रोजगार में टूरिज्म ने आईटी को पीछे छोड़ा
नई नौकरियों की संभावनाओं के लिहाज से पर्यटन उद्योग ने आईटी सेक्टर को पीछे छोड़ दिया है। केंद्रीय पर्यटन मंत्री सुबोध कांत सहाय ने कहा है कि अगले पांच साल में पर्यटन के क्षेत्र में ढाई करोड़ नए रोजगार आएंगे। यानी एक साल में 50 लाख। देश के कुल रोजगार में 75 फीसदी योगदान देने वाला यह सेक्टर अब प्राचीन स्मारकों पहाड़ों या नेशनल पार्को की परंपरागत दुनिया से बाहर मेडिकल टूरिज्मए ईको टूरिज्म रूरल वॉटर और एडवेंचर के नए क्षेत्रों में पांव पसार रहा है। इन क्षेत्रों में हर तरह के दक्ष कामगारों की मांग बढ़ रही है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 2004 के बाद पर्यटन में आई तेजी में इन्क्रेडिबल इंडिया जैसे कैम्पेन का भी बड़ा योगदान रहा। इस आकर्षक मार्केटिंग मुहिम के रचनाकारों में शामिल ष्ब्रांडिंग इंडिया के लेखक अमिताभ कांत बताते हैं ष्केरल 1990 के दशक के मध्य तक देश के पर्यटन नक्शे पर किसी हैसियत में नहीं था। सिर्फ मौलिक आइडियाज इन्फ्रास्ट्रक्चर और बेहतर मार्केटिंग के बूते आज देश में वह सबसे ऊपर है। बेकवॉटर और आयुर्वेद जैसे अछूते और नए क्षेत्रों में हमने काम किया। उद्यमियों ने रिसॉर्ट्स खोले। इन प्रयोगों ने केरल का नक्शा बदल दिया। इसका असर रोजगार पर पड़ा। विशेषज्ञों के मुताबिक सहाय ने जिस तरह के रोजगार का इशारा किया है उसमें ज्यादातर ऐसे हैं जिनमें बड़ी डिग्रियों की नहीं सीमित अवधि की ट्रेनिंग की जरूरत है। ये पर्यटकों के सीधे संपर्क में आने वाले कई तरह की सेवाओं के आसान अवसर हैं। इनमें ट्रांसपोर्ट फूड हेंडलूम हेंडीक्राट आदि शामिल हैं। दिल्ली में नौकरी डॉट कॉम के एक्जीक्यूटिव वायस चेयरमैन वी सुरेश का कहना है कि ज्यादातर जॉब्स असंगठित क्षेत्र के हैं। इस सेक्टर में डिग्रीधारियों के व्हाइट कॉलर जॉब्स सीमित हैं। लेकिन दोनों क्षेत्रों के मद्देनजर शिक्षण संस्थानों की तैयारी काफी पिछड़ी हुई है।
पर्यटन सेक्टर में सालाना वृद्धि 22 फीसदी की है। विस्तार नए नए क्षेत्रों में हो रहा है। उत्तराखंड में फाइव स्टार होटल्स की बजाए कॉटेज.इंडस्ट्री की जरूरत है जो स्थानीय लोगों को कमाई के बेशुमार अवसर देगी। उत्तरपूर्व में यह तरीका कामयाब भी रहा है। उत्तरप्रदेश में अस्सी फीसदी पर्यटकों का आकर्षण भले ही ताजमहल और वाराणसी हों लेकिन अब यहां के प्राचीन बौद्ध स्मारकों को अलग से उभारने की तैयारी है। चीन को छोड़कर एशिया के ज्यादातर देशों के मुकाबले भारत घरेलू व वैश्विक सैर.सपाटे का सबसे सक्रिय स्पॉट बन चुका है। 2008 में 50 हजार 730 करोड़ की कमाई 2010 में बढ़कर 64 हजार 889 करोड़ रुपए हो गई। 28 फीसदी का यह इजाफा आने वाले कल की बेहतर संभावनाओं का इशारा ही है।
देश में एक लाख सीटें ज्यादातर कोर्स पुराने
देश के 80 विश्वविद्यालयों और ढाई सौ कॉलेजों में पर्यटन से जुड़े दो सौ से ज्यादा कोर्सो में 20 हजार सीटें हैं। शिक्षा डॉट कॉम के मुताबिक निजी क्षेत्र के करीब एक हजार संस्थानों को मिलाकर सभी तरह के कोर्स व प्रोग्राम में सीटों की तादाद एक लाख से ऊपर है। अधिकतर कोर्स पुराने हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म के निदेशक मनोज दीक्षित कहते हैं ष्हॉस्पिटैलिटी ट्रेवल व टूरिज्म के कोर्सो की आधी सीटें तो खाली रहती हैं क्योंकि कोर्स स्किल बेस नहीं हैं। सीटें खाली होने के बारे में शिक्षा डॉट कॉम के हेड प्रकाश संगम का कहना है कि स्टुडेंट्स भी इस सेक्टर के बारे में जागरूक नहीं है। लखनऊ इंस्टीट्यूट में ही तीन कोर्सो में से एक बंद है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म एंड ट्रेवल मैनेजमेंट आईआईटीटीएम के चार शहरों में स्थित केंद्रों की आरक्षित सीटें शायद ही कभी भरी हों।
इसके ग्वालियर केंद्र से इंटरनेशनल बिजनेस कोर्स में पास मेरठ मूल के पीयूष चौधरी को हाल ही में थामस कुक कंपनी ने दस लाख के पैकेज पर चुना। क्लियर ट्रिप और वुडलैंड जैसी कंपनियों ने भी चार लाख रुपए के शुरुआती पैकेज पर प्लेसमेंट किया। ऐसे उदाहरण गिने.चुने ही हैं। बेंगलुरू स्थित एचआर कंपनी ष्माफोई रेनस्टेड के अध्यक्ष स्टाफिंग आदित्यनारायण मिश्रा कहते हैं ष्डिग्री लेकर निकल रहे ज्यादातर युवाओं की दक्षता पर्यटन मार्केट की जरूरतों से मेल नहीं खाती। उनकी प्रेक्टिकल नॉलेज का स्तर बेहद खराब पाया गया है। वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म कौंसिल के अनुसार 2009 से 2018 के बीच भारत दुनिया का सर्वाधिक सक्रिय टूरिस्ट डेस्टिनेशन होगा। लेकिन पर्यटन उद्योग में हो रहे तेज बदलावों से शिक्षण संस्थानों का कोई कनेक्ट ही नहीं है। वे बाजार की जरूरतों के हिसाब से बेखबर ही हैं। ज्यादातर कोर्स पुराने हैं। काउंसलर डॉ अमृता दास का कहना है कि ऑनलाइन ट्रेवल पोर्टल और डेस्टीनेशन मैनेजमेंट जैसे क्षेत्र कोर्स से अछूते होना आश्चर्यजनक है। जबकि ऑनलाइन ट्रेवल पोर्टल इस समय सबसे ज्यादा रोजगार देने में सक्षम है।
शिक्षा डॉट कॉम के हेड प्रकाश संगम का मानना है कि टूरिज्म सेक्टर के प्रति स्टुडेंट्स में पर्याप्त जागरूकता भी नहीं है। यही वजह है कि उनका रुझान इस तरफ कम रहा। पर्यटन सेक्टर में इस हलचल के चलते प्रधानमंत्री की नेशनल स्किल डेवलमेंट स्कीम की तर्ज पर सरकारी व निजी शिक्षण संस्थान डिग्री व सर्टिफिकेट के साथ अब दक्षता पर जोर देने लगे हैं। खासतौर से फंट्र लाइन जॉब्स में। हुनर से रोजगार इसी कड़ी का हिस्सा है। इसमें आठवीं.दसवीं पास युवाओं को होटल.हॉस्पेटलिटी में मार्केट की जरूरतों के मुताबिक ट्रेनिंग दी जाने लगी हैं। ताकि देश में राष्ट्रीय.अंतरराष्ट्रीय महत्व के 75 पर्यटन स्थलों से जुड़े बाकी स्थानों पर भी दक्ष कामगारों का नेटवर्क कायम हो। लखनऊ विवि ने इस पर फोकस किया और दो साल पहले 850 नए गाइड तैयार किए। देश में अपने तरह की यह पहली कोशिश थी। आईआईटीटीएम के प्रोफेसर निमित चौधरी बताते हैंए ष्दिल्ली आगरा या जयपुर में दिक्कत नहीं है। लेकिन खजुराहो के पास ओरछा जाइए तो समस्याएं हैं। अब शिक्षण संस्थान इसी कमी को पूरा कर रहे हैं। इसलिए यह कहना ठीक नहीं है कि संस्थान बाजार की जरूरतों से बेखबर हैं।
रोजगार में टूरिज्म ने आईटी को पीछे छोड़ा
नई नौकरियों की संभावनाओं के लिहाज से पर्यटन उद्योग ने आईटी सेक्टर को पीछे छोड़ दिया है। केंद्रीय पर्यटन मंत्री सुबोध कांत सहाय ने कहा है कि अगले पांच साल में पर्यटन के क्षेत्र में ढाई करोड़ नए रोजगार आएंगे। यानी एक साल में 50 लाख। देश के कुल रोजगार में 75 फीसदी योगदान देने वाला यह सेक्टर अब प्राचीन स्मारकों पहाड़ों या नेशनल पार्को की परंपरागत दुनिया से बाहर मेडिकल टूरिज्मए ईको टूरिज्म रूरल वॉटर और एडवेंचर के नए क्षेत्रों में पांव पसार रहा है। इन क्षेत्रों में हर तरह के दक्ष कामगारों की मांग बढ़ रही है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 2004 के बाद पर्यटन में आई तेजी में इन्क्रेडिबल इंडिया जैसे कैम्पेन का भी बड़ा योगदान रहा। इस आकर्षक मार्केटिंग मुहिम के रचनाकारों में शामिल ष्ब्रांडिंग इंडिया के लेखक अमिताभ कांत बताते हैं ष्केरल 1990 के दशक के मध्य तक देश के पर्यटन नक्शे पर किसी हैसियत में नहीं था। सिर्फ मौलिक आइडियाज इन्फ्रास्ट्रक्चर और बेहतर मार्केटिंग के बूते आज देश में वह सबसे ऊपर है। बेकवॉटर और आयुर्वेद जैसे अछूते और नए क्षेत्रों में हमने काम किया। उद्यमियों ने रिसॉर्ट्स खोले। इन प्रयोगों ने केरल का नक्शा बदल दिया। इसका असर रोजगार पर पड़ा। विशेषज्ञों के मुताबिक सहाय ने जिस तरह के रोजगार का इशारा किया है उसमें ज्यादातर ऐसे हैं जिनमें बड़ी डिग्रियों की नहीं सीमित अवधि की ट्रेनिंग की जरूरत है। ये पर्यटकों के सीधे संपर्क में आने वाले कई तरह की सेवाओं के आसान अवसर हैं। इनमें ट्रांसपोर्ट फूड हेंडलूम हेंडीक्राट आदि शामिल हैं। दिल्ली में नौकरी डॉट कॉम के एक्जीक्यूटिव वायस चेयरमैन वी सुरेश का कहना है कि ज्यादातर जॉब्स असंगठित क्षेत्र के हैं। इस सेक्टर में डिग्रीधारियों के व्हाइट कॉलर जॉब्स सीमित हैं। लेकिन दोनों क्षेत्रों के मद्देनजर शिक्षण संस्थानों की तैयारी काफी पिछड़ी हुई है।
पर्यटन सेक्टर में सालाना वृद्धि 22 फीसदी की है। विस्तार नए नए क्षेत्रों में हो रहा है। उत्तराखंड में फाइव स्टार होटल्स की बजाए कॉटेज.इंडस्ट्री की जरूरत है जो स्थानीय लोगों को कमाई के बेशुमार अवसर देगी। उत्तरपूर्व में यह तरीका कामयाब भी रहा है। उत्तरप्रदेश में अस्सी फीसदी पर्यटकों का आकर्षण भले ही ताजमहल और वाराणसी हों लेकिन अब यहां के प्राचीन बौद्ध स्मारकों को अलग से उभारने की तैयारी है। चीन को छोड़कर एशिया के ज्यादातर देशों के मुकाबले भारत घरेलू व वैश्विक सैर.सपाटे का सबसे सक्रिय स्पॉट बन चुका है। 2008 में 50 हजार 730 करोड़ की कमाई 2010 में बढ़कर 64 हजार 889 करोड़ रुपए हो गई। 28 फीसदी का यह इजाफा आने वाले कल की बेहतर संभावनाओं का इशारा ही है।
देश में एक लाख सीटें ज्यादातर कोर्स पुराने
देश के 80 विश्वविद्यालयों और ढाई सौ कॉलेजों में पर्यटन से जुड़े दो सौ से ज्यादा कोर्सो में 20 हजार सीटें हैं। शिक्षा डॉट कॉम के मुताबिक निजी क्षेत्र के करीब एक हजार संस्थानों को मिलाकर सभी तरह के कोर्स व प्रोग्राम में सीटों की तादाद एक लाख से ऊपर है। अधिकतर कोर्स पुराने हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म के निदेशक मनोज दीक्षित कहते हैं ष्हॉस्पिटैलिटी ट्रेवल व टूरिज्म के कोर्सो की आधी सीटें तो खाली रहती हैं क्योंकि कोर्स स्किल बेस नहीं हैं। सीटें खाली होने के बारे में शिक्षा डॉट कॉम के हेड प्रकाश संगम का कहना है कि स्टुडेंट्स भी इस सेक्टर के बारे में जागरूक नहीं है। लखनऊ इंस्टीट्यूट में ही तीन कोर्सो में से एक बंद है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म एंड ट्रेवल मैनेजमेंट आईआईटीटीएम के चार शहरों में स्थित केंद्रों की आरक्षित सीटें शायद ही कभी भरी हों।
इसके ग्वालियर केंद्र से इंटरनेशनल बिजनेस कोर्स में पास मेरठ मूल के पीयूष चौधरी को हाल ही में थामस कुक कंपनी ने दस लाख के पैकेज पर चुना। क्लियर ट्रिप और वुडलैंड जैसी कंपनियों ने भी चार लाख रुपए के शुरुआती पैकेज पर प्लेसमेंट किया। ऐसे उदाहरण गिने.चुने ही हैं। बेंगलुरू स्थित एचआर कंपनी ष्माफोई रेनस्टेड के अध्यक्ष स्टाफिंग आदित्यनारायण मिश्रा कहते हैं ष्डिग्री लेकर निकल रहे ज्यादातर युवाओं की दक्षता पर्यटन मार्केट की जरूरतों से मेल नहीं खाती। उनकी प्रेक्टिकल नॉलेज का स्तर बेहद खराब पाया गया है। वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म कौंसिल के अनुसार 2009 से 2018 के बीच भारत दुनिया का सर्वाधिक सक्रिय टूरिस्ट डेस्टिनेशन होगा। लेकिन पर्यटन उद्योग में हो रहे तेज बदलावों से शिक्षण संस्थानों का कोई कनेक्ट ही नहीं है। वे बाजार की जरूरतों के हिसाब से बेखबर ही हैं। ज्यादातर कोर्स पुराने हैं। काउंसलर डॉ अमृता दास का कहना है कि ऑनलाइन ट्रेवल पोर्टल और डेस्टीनेशन मैनेजमेंट जैसे क्षेत्र कोर्स से अछूते होना आश्चर्यजनक है। जबकि ऑनलाइन ट्रेवल पोर्टल इस समय सबसे ज्यादा रोजगार देने में सक्षम है।
शिक्षा डॉट कॉम के हेड प्रकाश संगम का मानना है कि टूरिज्म सेक्टर के प्रति स्टुडेंट्स में पर्याप्त जागरूकता भी नहीं है। यही वजह है कि उनका रुझान इस तरफ कम रहा। पर्यटन सेक्टर में इस हलचल के चलते प्रधानमंत्री की नेशनल स्किल डेवलमेंट स्कीम की तर्ज पर सरकारी व निजी शिक्षण संस्थान डिग्री व सर्टिफिकेट के साथ अब दक्षता पर जोर देने लगे हैं। खासतौर से फंट्र लाइन जॉब्स में। हुनर से रोजगार इसी कड़ी का हिस्सा है। इसमें आठवीं.दसवीं पास युवाओं को होटल.हॉस्पेटलिटी में मार्केट की जरूरतों के मुताबिक ट्रेनिंग दी जाने लगी हैं। ताकि देश में राष्ट्रीय.अंतरराष्ट्रीय महत्व के 75 पर्यटन स्थलों से जुड़े बाकी स्थानों पर भी दक्ष कामगारों का नेटवर्क कायम हो। लखनऊ विवि ने इस पर फोकस किया और दो साल पहले 850 नए गाइड तैयार किए। देश में अपने तरह की यह पहली कोशिश थी। आईआईटीटीएम के प्रोफेसर निमित चौधरी बताते हैंए ष्दिल्ली आगरा या जयपुर में दिक्कत नहीं है। लेकिन खजुराहो के पास ओरछा जाइए तो समस्याएं हैं। अब शिक्षण संस्थान इसी कमी को पूरा कर रहे हैं। इसलिए यह कहना ठीक नहीं है कि संस्थान बाजार की जरूरतों से बेखबर हैं।
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