टॉप स्कूलों पर पड़ सकती है मंदी की छाया
जिंदगी के अनुभव से मिले सबक अक्सर क्लासरूम के ज्ञान से बेहतर होते हैं। देश के बेस्ट बिजनेस स्कूल भी इसका अपवाद नहीं हो सकते। दुनिया भर में इकनॉमी की लड़खड़ाती हालत की वजह से आईआईएम और इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) से इस साल ग्रैजुएट होने वाले छात्रों को अपना करियर संभालने की बड़ी चुनौती सामने होगी। ऐसे में, इन छात्रों के लिए जिंदगी के अनुभव जैसे जुमले शायद ही खास राहत दे सकें। भर्तियों की हालत को लेकर आईआईएम के चार डायरेक्टरों, प्लेसमेंट सेल के दो स्टूडेंट हेड और रिक्रूटमेंट मैनेजरों से बात की। इन सभी का मानना है कि जब अगले महीने प्लेसमेंट सीजन शुरू होगा तो पहले के मुकाबले कम भर्तियां होगी और वेतन भी कम ऑफर किए जाएंगे। ऐसे में, टॉप बिजनेस स्कूल के छात्र खुद को बदतर हालात के लिए तैयार कर रहे हैं। कभी ड्रीम जॉब की हसरत रखने वाले ये छात्र अब अपनी आकांक्षाओं को थोड़ा कम कर रहे हैं।
आईआईएम कोलकाता के प्लेसमेंट चेयरमैन अमित धीमान को भी यह स्वीकार करने से परहेज नहीं है कि फाइनल प्लेसमेंट के लिए ३५० छात्रों को एक साथ बैठाना एक बड़ी चुनौती होगी। आईआईएम अहमदाबाद में अंतिम साल के २४ वर्षीय छात्र विशाल शर्मा कहते हैं, 'मैं यह जानना चाहता हूं कि आर्थिक सुस्ती का कितना असर हमारी प्लेसमेंट पर पड़ेगा।' इसी तरह, उनके सहपाठी आर श्रीधर भर्ती करने वाली कंपनियों का हाल जानने के लिए अपने संस्थान के पूर्व छात्रों से लगातार संपर्क बनाए हुए हैं। साल २०१२ में पास होने वाले छात्रों पर वैश्विक मंदी की गहरी छाया है। जब २००९ के आखिर में ये छात्र प्रबंधन संस्थानों की प्रवेश परीक्षा में बैठे थे, तो उस वक्त भी पूरी दुनिया एक साल पहले आई मंदी के प्रकोप से उबरने में जुटी थी। जब इन छात्रों ने जून २०१० में संस्थानों में कदम रखा तो भारत में उस वक्त रिकवरी की आहट आ चुकी थी। विडंबना यह है कि जब ये छात्र कुछ महीनों में अपनी पढ़ाई पूरी कर बाहर निकलेंगे, तो उनकी आशाओं पर पानी फिरता नजर आएगा। श्रीधर कहते हैं, 'जब हमने साल २०१० में आईआईएम अहमदाबाद में प्रवेश किया था तो यह साल २००८ की मंदी से उबरकर रिकवरी की रफ्तार पर था। लेकिन अब हम लोग कॉरपोरेट जगत में घुसने को तैयार हैं, लेकिन डबल डिप मंदी की आशंकाएं गहरा चुकी हैं। प्रो धीमान ने बताया, 'फाइनेंस से जुड़ी जॉब्स में खासी गिरावट देखने को मिल सकती है। हालांकि, हर सेक्टर में ऐसी हालत नहीं है। कंसल्टिंग कंपनियों के पास काफी ऑफर हैं। इसके अलावा आईटी, टेक्नोलॉजी में रोजगार के पर्याप्त अवसर हैं।'
आईआईएम कोझीकोड के डायरेक्टर देवाशीष चटर्जी भी इस बार जॉब ऑफरों को लेकर काफी सशंकित हैं। वह कहते हैं, 'हलांकि, एफएमसीजी कंपनियों ने कैंपस आने से हाथ नहीं खींचा है, लेकिन यह बात तय है कि वे भी पिछले साल के मुकाबले कम लोगों को लेंगे।' धीमान का तो यहां तक कहना है कि अगर कुछ लोगों की मानें तो ये कंपनियां सिर्फ कैंपस से अपना रिश्ता बेहतर बनाए रखने के लिए आएंगी।
जिंदगी के अनुभव से मिले सबक अक्सर क्लासरूम के ज्ञान से बेहतर होते हैं। देश के बेस्ट बिजनेस स्कूल भी इसका अपवाद नहीं हो सकते। दुनिया भर में इकनॉमी की लड़खड़ाती हालत की वजह से आईआईएम और इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) से इस साल ग्रैजुएट होने वाले छात्रों को अपना करियर संभालने की बड़ी चुनौती सामने होगी। ऐसे में, इन छात्रों के लिए जिंदगी के अनुभव जैसे जुमले शायद ही खास राहत दे सकें। भर्तियों की हालत को लेकर आईआईएम के चार डायरेक्टरों, प्लेसमेंट सेल के दो स्टूडेंट हेड और रिक्रूटमेंट मैनेजरों से बात की। इन सभी का मानना है कि जब अगले महीने प्लेसमेंट सीजन शुरू होगा तो पहले के मुकाबले कम भर्तियां होगी और वेतन भी कम ऑफर किए जाएंगे। ऐसे में, टॉप बिजनेस स्कूल के छात्र खुद को बदतर हालात के लिए तैयार कर रहे हैं। कभी ड्रीम जॉब की हसरत रखने वाले ये छात्र अब अपनी आकांक्षाओं को थोड़ा कम कर रहे हैं।
आईआईएम कोलकाता के प्लेसमेंट चेयरमैन अमित धीमान को भी यह स्वीकार करने से परहेज नहीं है कि फाइनल प्लेसमेंट के लिए ३५० छात्रों को एक साथ बैठाना एक बड़ी चुनौती होगी। आईआईएम अहमदाबाद में अंतिम साल के २४ वर्षीय छात्र विशाल शर्मा कहते हैं, 'मैं यह जानना चाहता हूं कि आर्थिक सुस्ती का कितना असर हमारी प्लेसमेंट पर पड़ेगा।' इसी तरह, उनके सहपाठी आर श्रीधर भर्ती करने वाली कंपनियों का हाल जानने के लिए अपने संस्थान के पूर्व छात्रों से लगातार संपर्क बनाए हुए हैं। साल २०१२ में पास होने वाले छात्रों पर वैश्विक मंदी की गहरी छाया है। जब २००९ के आखिर में ये छात्र प्रबंधन संस्थानों की प्रवेश परीक्षा में बैठे थे, तो उस वक्त भी पूरी दुनिया एक साल पहले आई मंदी के प्रकोप से उबरने में जुटी थी। जब इन छात्रों ने जून २०१० में संस्थानों में कदम रखा तो भारत में उस वक्त रिकवरी की आहट आ चुकी थी। विडंबना यह है कि जब ये छात्र कुछ महीनों में अपनी पढ़ाई पूरी कर बाहर निकलेंगे, तो उनकी आशाओं पर पानी फिरता नजर आएगा। श्रीधर कहते हैं, 'जब हमने साल २०१० में आईआईएम अहमदाबाद में प्रवेश किया था तो यह साल २००८ की मंदी से उबरकर रिकवरी की रफ्तार पर था। लेकिन अब हम लोग कॉरपोरेट जगत में घुसने को तैयार हैं, लेकिन डबल डिप मंदी की आशंकाएं गहरा चुकी हैं। प्रो धीमान ने बताया, 'फाइनेंस से जुड़ी जॉब्स में खासी गिरावट देखने को मिल सकती है। हालांकि, हर सेक्टर में ऐसी हालत नहीं है। कंसल्टिंग कंपनियों के पास काफी ऑफर हैं। इसके अलावा आईटी, टेक्नोलॉजी में रोजगार के पर्याप्त अवसर हैं।'
आईआईएम कोझीकोड के डायरेक्टर देवाशीष चटर्जी भी इस बार जॉब ऑफरों को लेकर काफी सशंकित हैं। वह कहते हैं, 'हलांकि, एफएमसीजी कंपनियों ने कैंपस आने से हाथ नहीं खींचा है, लेकिन यह बात तय है कि वे भी पिछले साल के मुकाबले कम लोगों को लेंगे।' धीमान का तो यहां तक कहना है कि अगर कुछ लोगों की मानें तो ये कंपनियां सिर्फ कैंपस से अपना रिश्ता बेहतर बनाए रखने के लिए आएंगी।
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