भारतीय सेना का अधिकारी होने का मतलब सिर्फ़ नौकरी करना नहीं होता बल्कि देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने का जज्बा लिये एक जांबाज सिपाही होना होता है युवाओं में यही जोश और जुनून पैदा करता है भारतीय सैन्य अकादमी आइएमए जिससे प्रशिक्षण प्राप्त कैडेट्स कई नाजुक मौकों पर दुश्मन के दांत खट्टे कर चुके हैं
1932 में ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस बने आइएमए के पहले कमांडेंट
1958 के गणतंत्र दिवस परेड में आइएमए कैडेट ने पहली बार भाग लिया
1974 में दाखिला लेने के लिए डिग्री स्तर की योग्यता जरूरी की गयी
भारतीय सैन्य अकादमी इंडियन मिलिट्री एकेडमी आइएमए की स्थापना का मकसद था सेना में भारतीय अधिकारियों की बढ़ती मांग को पूरा करना 19 वीं सदी के अंत तक ब्रिटिश सरकार में भारतीयों की भागीदारी की शुरुआत हो गयी थी गोपाल कृष्ण गोखले के सतत प्रयास के बाद 1912 में एक कमीशन की स्थापना की गयी ताकि भारतीयों को उचित भागदारी दी जा सके लार्ड कर्जन ने इंपीरियल कैडेट कोर्प की स्थापना की जिसमें केवल वैसे भारतीयों को तरजीह दी जाती थी जो अंग्रेजों के प्रति वफ़ादार थे इस कोर्प में राजघराने और जमींदारों को ही शामिल किया जाता था भारतीयों ने पहले विश्वयुद्ध के दौरान अपनी क्षमता साबित की1917 में मोंटेग चेम्सफ़ोर्ड प्लान लागू किया गया जिसके तहत भारतीयों को देश के प्रशासन में अधिक भागीदार बनाने पर जोर दिया गया था
सेना के भारतीयकरण की शुरुआत किंग कमीशन के अनुदान से हुई इसके तहत 31 विश्वस्त भारतीयों को ट्रेनिंग दी गयी जिसमें केएम करियप्पा शामिल थे करियप्पा बाद में पहले भारतीय सेना प्रमुख बने 1922 में भारतीय छात्रों को इंग्लैंड के मिल्रिटी कॉलेज में दाखिला देने से पहले शुरुआती ट्रेनिंग के लिए इंडियन मिल्रिटी कॉलेज की स्थापना की गयी उस दौर का भारतीय नेतृत्व भारतीय सेना के भारतीयकरण के लिए उठाये गये कदमों से संतुष्ट नहीं था इसके मद्देनजर तत्कालीन सेना प्रमुख लार्ड रावलिंग ने घोषणा की कि 8 इन्फैंट्री और कैवलरी यूनिट मुख्यत भारतीय अधिकारियों के अधीन होगा इसके बाद भारतीय सैंडर्स कमिटी का गठन किया गया कमिटी ने सिफ़ारिश की कि 1933 तक इंग्लैंड में मौजूद मिल्रिटी ट्रेनिंग कॉलेज की स्थापना भारत में की जाये हालांकि भारतीय नेताओं की लगातार मांग के बावजूद सेना के भारतीयकरण की गति काफ़ी धीमी थी दबाव बढ़ने पर भारत में ब्रिटिश सेना के प्रमुख जनरल सर फ़िलिप चेटवोड की अध्यक्षता में इंडियन मिल्रिटी कॉलेज कमिटी का गठन किया गया 1931 में इस कमिटी ने कॉलेज की स्थापना के लिए एक विस्तृत कार्ययोजना तैयार की ताकि प्रतिवर्ष 60 कमीशंड अधिकारी तैयार हो सकें इसके लिए देहरादून का चयन किया गया आखिरकार यह सपना 1932 में पूरा हुआ जब ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस को इंडियन मिल्रिटी एकेडमी का पहला कमांडेंट बनाया गया उन्होंने आठ महीने में इस संस्थान को तैयार किया और सितंबर 1932 में 40 कैडेट ट्रेनिंग के लिए पहुंचे इस एकेडमी का औपचारिक उद्घाटन फ़ील्ड मार्शल सर फ़िलिप चेटवुड ने किया यहां शुरुआत में 200 कैडेट को ट्रेनिंग देने की व्यवस्था थी जिसके तहत 40 कैडेट 6 महीने की ट्रेनिंग लेते थे आजादी के बाद ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह इसके पहले कमांडेंट बने
1974 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी में दाखिला लेने वाले कैडेट का रेगुलर कोर्स डिग्री लेवल का कर दिया गया और ट्रेनिंग की अवधि ढाई साल से घटाकर डेढ़ साल कर दी गयी इंडियन मिलिट्री एकेडमी आज भी सैन्य अधिकारियों की प्रतिभाशाली फ़ौज तैयार करने में पूरी शिद्दत से जुटा है इस संस्थान से निकले अधिकारियों ने सेना और देश की पूरी लगन से सेवा की है
समय के साथ बदलाव
शुरुआत में आइएमए में थल जल और वायु सेना तीनों विंग के अधिकारियों को ट्रेनिंग दी जाती थी लेकिन समय के साथ बदलती चुनौतियों के मद्देनजर नेशनल डिफेंस एकेडमी की स्थापना की गयी आइएमए में एनडीए आर्मी कैडेट कॉलेज एवं अन्य कॉलेजों के ग्रेजुएट पहुंचते हैं ट्रेनिंग का मकसद कैडेट को पहले जेंटलमैन और फ़िर अधिकारी बनाना होता है यहां कैडेट को सिखाया जाता है पहले देश की सुरक्षा फ़िर अपनी सुरक्षा ट्रेनिंग में कैडेट को यह भी बताया जाता है कि आप अपनी सहूलियत को अंतिम पायदान पर रखें
ट्रेनिंग का मकसद कैडेट में नेतृत्व का गुण और आत्मविश्वास पैदा करना होता है आइएमए का पूरा माहौल ट्रेनिंग को पूरे जोश के साथ खत्म कराने वाला होता है ट्रेनिंग खत्म होने के बाद पासिंग आउट परेड कैडेट को एक पूर्ण इंसान में तब्दील कर देता है यही कैडेट जंग के मैदान में जी जान से देश की रक्षा करते हैं
सेना में अधिकारियों की कमी
हालांकि विश्व की चौथी सबसे बड़ी सेना पिछले कुछ वर्षो से अधिकारियों की कमी से जूझ रही है खासकर थल सेना अधिकारियों की कमी का असर सेना की क्षमता पर पड़ रहा है सेना में अधिकारियों के कमी की वजह शहरी युवाओं में सेना को कॅरियर बनाने के प्रति अनिच्छा होना है स्थिति ऐसी हो गयी है कि आइएमए जैसे संस्थान की सीटों के लायक भी युवा नहीं मिल पा रहे हैं
1932 में ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस बने आइएमए के पहले कमांडेंट
1958 के गणतंत्र दिवस परेड में आइएमए कैडेट ने पहली बार भाग लिया
1974 में दाखिला लेने के लिए डिग्री स्तर की योग्यता जरूरी की गयी
भारतीय सैन्य अकादमी इंडियन मिलिट्री एकेडमी आइएमए की स्थापना का मकसद था सेना में भारतीय अधिकारियों की बढ़ती मांग को पूरा करना 19 वीं सदी के अंत तक ब्रिटिश सरकार में भारतीयों की भागीदारी की शुरुआत हो गयी थी गोपाल कृष्ण गोखले के सतत प्रयास के बाद 1912 में एक कमीशन की स्थापना की गयी ताकि भारतीयों को उचित भागदारी दी जा सके लार्ड कर्जन ने इंपीरियल कैडेट कोर्प की स्थापना की जिसमें केवल वैसे भारतीयों को तरजीह दी जाती थी जो अंग्रेजों के प्रति वफ़ादार थे इस कोर्प में राजघराने और जमींदारों को ही शामिल किया जाता था भारतीयों ने पहले विश्वयुद्ध के दौरान अपनी क्षमता साबित की1917 में मोंटेग चेम्सफ़ोर्ड प्लान लागू किया गया जिसके तहत भारतीयों को देश के प्रशासन में अधिक भागीदार बनाने पर जोर दिया गया था
सेना के भारतीयकरण की शुरुआत किंग कमीशन के अनुदान से हुई इसके तहत 31 विश्वस्त भारतीयों को ट्रेनिंग दी गयी जिसमें केएम करियप्पा शामिल थे करियप्पा बाद में पहले भारतीय सेना प्रमुख बने 1922 में भारतीय छात्रों को इंग्लैंड के मिल्रिटी कॉलेज में दाखिला देने से पहले शुरुआती ट्रेनिंग के लिए इंडियन मिल्रिटी कॉलेज की स्थापना की गयी उस दौर का भारतीय नेतृत्व भारतीय सेना के भारतीयकरण के लिए उठाये गये कदमों से संतुष्ट नहीं था इसके मद्देनजर तत्कालीन सेना प्रमुख लार्ड रावलिंग ने घोषणा की कि 8 इन्फैंट्री और कैवलरी यूनिट मुख्यत भारतीय अधिकारियों के अधीन होगा इसके बाद भारतीय सैंडर्स कमिटी का गठन किया गया कमिटी ने सिफ़ारिश की कि 1933 तक इंग्लैंड में मौजूद मिल्रिटी ट्रेनिंग कॉलेज की स्थापना भारत में की जाये हालांकि भारतीय नेताओं की लगातार मांग के बावजूद सेना के भारतीयकरण की गति काफ़ी धीमी थी दबाव बढ़ने पर भारत में ब्रिटिश सेना के प्रमुख जनरल सर फ़िलिप चेटवोड की अध्यक्षता में इंडियन मिल्रिटी कॉलेज कमिटी का गठन किया गया 1931 में इस कमिटी ने कॉलेज की स्थापना के लिए एक विस्तृत कार्ययोजना तैयार की ताकि प्रतिवर्ष 60 कमीशंड अधिकारी तैयार हो सकें इसके लिए देहरादून का चयन किया गया आखिरकार यह सपना 1932 में पूरा हुआ जब ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस को इंडियन मिल्रिटी एकेडमी का पहला कमांडेंट बनाया गया उन्होंने आठ महीने में इस संस्थान को तैयार किया और सितंबर 1932 में 40 कैडेट ट्रेनिंग के लिए पहुंचे इस एकेडमी का औपचारिक उद्घाटन फ़ील्ड मार्शल सर फ़िलिप चेटवुड ने किया यहां शुरुआत में 200 कैडेट को ट्रेनिंग देने की व्यवस्था थी जिसके तहत 40 कैडेट 6 महीने की ट्रेनिंग लेते थे आजादी के बाद ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह इसके पहले कमांडेंट बने
1974 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी में दाखिला लेने वाले कैडेट का रेगुलर कोर्स डिग्री लेवल का कर दिया गया और ट्रेनिंग की अवधि ढाई साल से घटाकर डेढ़ साल कर दी गयी इंडियन मिलिट्री एकेडमी आज भी सैन्य अधिकारियों की प्रतिभाशाली फ़ौज तैयार करने में पूरी शिद्दत से जुटा है इस संस्थान से निकले अधिकारियों ने सेना और देश की पूरी लगन से सेवा की है
समय के साथ बदलाव
शुरुआत में आइएमए में थल जल और वायु सेना तीनों विंग के अधिकारियों को ट्रेनिंग दी जाती थी लेकिन समय के साथ बदलती चुनौतियों के मद्देनजर नेशनल डिफेंस एकेडमी की स्थापना की गयी आइएमए में एनडीए आर्मी कैडेट कॉलेज एवं अन्य कॉलेजों के ग्रेजुएट पहुंचते हैं ट्रेनिंग का मकसद कैडेट को पहले जेंटलमैन और फ़िर अधिकारी बनाना होता है यहां कैडेट को सिखाया जाता है पहले देश की सुरक्षा फ़िर अपनी सुरक्षा ट्रेनिंग में कैडेट को यह भी बताया जाता है कि आप अपनी सहूलियत को अंतिम पायदान पर रखें
ट्रेनिंग का मकसद कैडेट में नेतृत्व का गुण और आत्मविश्वास पैदा करना होता है आइएमए का पूरा माहौल ट्रेनिंग को पूरे जोश के साथ खत्म कराने वाला होता है ट्रेनिंग खत्म होने के बाद पासिंग आउट परेड कैडेट को एक पूर्ण इंसान में तब्दील कर देता है यही कैडेट जंग के मैदान में जी जान से देश की रक्षा करते हैं
सेना में अधिकारियों की कमी
हालांकि विश्व की चौथी सबसे बड़ी सेना पिछले कुछ वर्षो से अधिकारियों की कमी से जूझ रही है खासकर थल सेना अधिकारियों की कमी का असर सेना की क्षमता पर पड़ रहा है सेना में अधिकारियों के कमी की वजह शहरी युवाओं में सेना को कॅरियर बनाने के प्रति अनिच्छा होना है स्थिति ऐसी हो गयी है कि आइएमए जैसे संस्थान की सीटों के लायक भी युवा नहीं मिल पा रहे हैं
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