बिल गेट्स
जिंदगी में अपना अलग मुकाम बनाने और नयी ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए केवल भाग्य ही नहीं, कड़ी मेहनत की भी जरूरत होती है. विरासत में ढेर सारी खुशियां हासिल होने के बावजूद बिल गेट्स ने भी कठिन परिश्रम को अपने जीवन का आधार बनाया और उसकी बदौलत सफ़लता की नयी ऊंचाइयां छूते चले गये. उनकी सफ़लता की यह कहानी युवाओं को लंबे समय तक प्रेरणा देती रहेगी.दुनिया में कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें जन्म के साथ ही विरासत में सारी खुशियां हासिल हुई हैं, बावजूद इसके उन्होंने बड़े होने पर अपने बूते एक अलग पहचान बनायी. माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स भी एक ऐसी ही शख्सीयत हैं. उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जो व्यवसाय में समृद्ध था. उनके दादाजी नेशनल बैंक के वाइस प्रेसिडेंट थे और पिता एक वकील. लेकिन बिल ने कड़ी मेहनत से अपने लक्ष्यों को हासिल करने में यकीन किया. बकौल बिल, यदि आप चालाक और बुद्धिमान हैं और आपको यह पता है कि किस तरह अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना है तो आप अपने लक्ष्य और उद्देश्यों तक पहुंच सकते हैं. बिल को जानने वाले कहते हैं वे अपने शुरुआती दिनों से ही महत्वाकांक्षी, प्रतिद्वंदी और तेज थे. इन सभी खूबियों की बदौलत ही उन्होंने अपने जीवन में वह हासिल किया, जो वह चाहते थे. स्कूल में बिल गेट्स की प्रतिभा से उनके शिक्षक भी काफ़ी प्रभावित थे.एक बार जब उनके माता-पिता स्कूल में उनसे मिलने आये तो शिक्षक ने बताया कि वह इस स्कूल का सबसे मेधावी छात्र हैं. बाद में अपने बच्चे की प्रतिभा को समझते हुए उन्होंने बिल का दाखिला एक प्राइवेट स्कूल में करवाया. यह बिल गेट्स के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पल था. यहीं पर पहली बार उनका परिचय कंप्यूटर से हुआ. बिल गेट्स और उनके साथी कंप्यूटर को लेकर काफ़ी उत्साहित थे. इस तरह उनकी रुचि कंप्यूटर के क्षेत्र में बढ़ती गयी. आगे चलकर १९६८ में उन्होंने एक नया ग्रुप भी बनाया, प्रोग्रामर्स ग्रुप. इस समूह के सदस्य के तौर उन्होंने वाशिंगटन विश्वविद्यालय में अपने कंप्यूटर स्किल के इस्तेमाल का नया तरीका निकाला. इस तरह, बिल गेट्स और उनके करीबी साथी ऐलेन ने अपनी एक नयी कंपनी टरफ़-ओ-डाटा बनायी. उन्होंने ट्रैफ़िक फ्लो को मापने के लिए एक छोटा कंप्यूटर विकसित किया. इस प्रोजेक्ट से उन्हें लगभग २० हजार डॉलर की कमाई हुई. कॉलेज छोड़ने के साथ ही इस नयी कंपनी का भी अध्याय समाप्त हो गया. गेट्स ने १९७३ में हार्वर्ड यूनिविर्सिटी में दाखिला लिया. लेकिन अपने भविष्य को लेकर वह दुविधा में थे. इस कारण उन्होंने प्री-लॉ में दाखिला लिया. हार्वर्ड के सबसे मुश्किल कोर्स में दाखिला लेने के बाद भी इसमें उनका प्रदर्शन बेहद उम्दा था. लेकिन, इसमें भी उनका दिल नहीं लगा. उन्होंने कई रातें कंप्यूटर लैब के सामने गुजारीं और दिन उनका क्लास में सोते हुए गुजरता था.यहां से पास आउट होने के बाद वह कंप्यूटर की दुनिया में पूरी तरह रम गये. वह अकसर अपने मित्र पॉल एलेन से नये आइडियाज पर बातें करते रहते थे. तभी उनकी नौकरी लग गयी. लेकिन एलेन हमेशा बिल को नयी सॉफ्टवेयर कंपनी खोलने के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे. एक साल के अंदर ही बिल हार्वर्ड से ड्रॉप-आउट हो गये. उसके बाद उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट की बुनियाद रखी. आज अपने विजन की बदौलत ही इस मुकाम पर हैं बिल गेट्स. उन्होंने सिर्फ़ अपने भाग्य और भगवान पर भरोसा नहीं किया, अपने उद्देश्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत की. बिल गेट्स दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार किये जाते हैं. लेकिन, वह लालची भी नहीं हैं.स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में कंप्यूटर इंस्टीट्यूट बनाने के लिए उन्होंने ३८ मिलियन डॉलर दान में दिये. जरूरतमंदों की मदद के लिए उन्होंने कई और संस्थाओं को दान के तौर पर आर्थिक मदद की है. बिल गेट्स ने दो पुस्तकें भी लिखी हैं- द रोड एहेड ( १९७५ ) और बिजनेस एट द रेट स्पीड ऑफ़ थॉट ( १९९९ ).
शुभ लाभ Seetamni. blogspot. in
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