सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

क्षमतावान बनें, अति क्षमतावान बनने का प्रयास न करे

जब मेंढक ने अति क्षमतावान बनने की सजा पाई
एक तालाब में बड़े-छोटे मेंढकों का एक परिवार रहता था। सभी स्नेहपूर्वक रहते थे और परस्पर एक-दूसरे का ध्यान रखते थे। एक दिन तालाब के किनारे की घास खाने एक बैल आया। वह बड़े मजे से घास चर रहा था और उसे तालाब के पानी से बड़ी शीतलता भी महसूस हो रही थी। उसी समय पानी में से एक छोटा मेंढक बाहर निकला।

उसने जीवन में पहली बार बैल देखा था। वह बैल का विशाल शरीर देखकर डर गया और तत्काल पानी में कूद गया। फिर वह एक बड़े मेंढक के पास पहुंचा और उसे बताया कि मैंने तालाब के बाहर एक भयंकर, पहाड़ जैसा दानव देखा है, जिसके सींग हैं, एक लंबी पूंछ है और दो भागों में बंटे हुए खुर हैं। एक दूसरे मेंढक ने जानकारी दी कि वह दानव नहीं बैल है।

किंतु एक बूढ़े मेंढक ने कभी बैल नहीं देखा था और वह घमंडी भी था। वह बोला - वो इतना बड़ा भी नहीं होगा, बस मुझसे थोड़ा ही ऊंचा होगा। जबकि मैं तो अपने आपको आसानी से बढ़ा भी सकता हूं। ऐसा कहकर उसने स्वयं को फुलाना शुरू कर दिया ताकि वह बड़ा हो जाए। छोटा मेंढक उसे देखकर बोला कि बैल तो उससे काफी बड़ा है।

बूढ़ा मेंढक यह सोचकर कि बैल उसके जितना बड़ा नहीं है, लगातार स्वयं को फुलाता गया। जब उसने क्षमता से अधिक स्वयं को फुलाया तो उसका शरीर फट गया और उसकी मृत्यु हो गई। सार यह है कि निरंतर सक्रिय रहकर अपनी क्षमता को बढ़ाना अच्छा है, किंतु उसके अंतिम बिंदु से ऊपर जाने का प्रयास करना संकट को आमंत्रण देना है। इसलिए क्षमतावान बनें, किंतु अति क्षमतावान बनने का प्रयास न करें।

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