बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

एमबीए के प्रति घटा रुझान

आईआईएम भी नहीं लुभा पा रहा
कुछ साल पहले तक प्रबंधन पाठ्यक्रमों (एमबीए) के प्रति भारतीय छात्रों में जबरदस्त क्रेज था। नब्बे के दशक के बाद  तो प्रबंधन शिक्षा का परिदृश्य बड़ी तेजी से बदला। बड़े और मेट्रो शहरों तक ही केंद्रित एक-दो संस्थानों की पहुंच छोटे-छोटे शहरों तक हो गई। और हर गली में एक प्रबंधन स्कूल खुल गए। जहां सर्टीफिकेट से लेकर डिग्री कोर्स तक संचालित हो रहे हैं। लेकिन, इन संस्थानों की शिक्षा गुणवत्तापरक नहीं है। इनमें से ज्यादातर संस्थानों ने अधकचरे प्रबंधक पैदा किए हैं। एमबीए की डिग्री हासिल करने के बाद इन्हें पांच-छह हजार रु महीने की भी नौकरी नहीं मिल रही है। यही वजह है कि इधर दो-तीन सालों से प्रबंधन पाठ्यक्रम के प्रति छात्रों का रुझान बड़ी तेजी से घटा है।
कैट में भी गिरावट
देश के ख्यातिप्राप्त मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) में दाखिले के लिए ली जाने वाली कॉमन एप्टीट्यूड टेस्ट (कैट) परीक्षा के नामांकन में भी गिरावट आई है। 2008 के बाद से कैट उम्मीदवारों की संख्या में हर साल कमी आई है। 2008 में कैट में जहां 2.7० हजार छात्रों ने पंजीकरण कराया वहीं २००९ में २.४१ हजार स्टूडेंट्स इस परीक्षा में बैठे। २०१० में २.०४ हजार छात्रों ने प्रवेश परीक्षा दी। २०११ की कैट के लिए आवेदन की अंतिम तिथि चार अक्टूबर थी। पता चला है इस बार २.०५ हजार छात्र ही इस परीक्षा में बैठ रहे हैं।
अन्य संस्थानों का भी बुरा हाल
कमोवेश, यही हाल मैट और अन्य प्रबंधन प्रवेश परीक्षाओं का भी है। इनमें पंजीकरण कराने वालों की संख्या में कमी देखी जा रही है। दिल्ली, नोएडा, बेंगलुरु, पुणे, मुंबई और कोलकाता में खुले बड़े प्रबंधन संस्थानों की बात छोड़ दें तो अन्य शहरों के प्रबंधन स्कूलों को तो छात्रों का टोटा पड़ गया है।
२००८ से गिरावट का दौर
हालांकि, प्रबंधन के क्षेत्र में नौकरियों में कोई कमी नहीं आई है। रिटेल और हॉस्पिटल से लेकर सेल्स की फील्ड में प्रबंधकों की मांग बढ़ी है लेकिन, योग्यता कि मुताबिक सैलरी न मिलने और बेहतर प्लेसमेंट न होने की वजह से छात्रोंने अन्य कॅरियर विकल्पों की तरफ सोचना शुरू कर दिया। २००८ के बाद तो प्रबंधन में कॅरियर बनाने वालों की संख्या में तेजी से गिरावट आई। पिछले दो सालों में दूरसंचार और वित्त ऐसे दो प्रमुख क्षेत्र रहे हैं जहां एमबीए डिग्रीधारको को सर्वाधिक रोजगार मिला। लेकिन इधर यहां भी नौकरियों के अवसर कम हुए हैं।

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