रविवार, 13 नवंबर 2011

भौतिकी, रसायन, गणित पढऩे का युग समाप्त

प्रधानमंत्री के सूचना तकनीकी सलाहकार एवं राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के पूर्व अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर तल्ख टिप्पणी की है। उनका कहना है कि भौतिकी, रसायन, गणित जैसे पारम्परिक विषयों को पढऩे का युग अब समाप्त हो गया है। वे कहते हैं, आज रचनात्मकता, समन्वय, लीडरशिप, ग्लोबल तथा प्रोफेशनल विषयों को पढऩे तथा सूचना तकनीक के जरिए पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। पित्रोदा, राष्ट्रीय नवोन्मेष परिषद के अध्यक्ष हैं। वे भारत में कंप्यूटर क्रांति के  पितामह रहे हैं। सैम कुछ बोलते हैं, कहते हैं तो इनकी बातों में दम होता है। पित्रोदा सच कह रहे हैं कि आज इंटरनेट, वेबसाइट व सोशल नेटवर्किंग का जमाना है। हमारी दुनिया पूरी तरह बदल चुकी है। अब साठ साल पहले की तरह पढ़ाई नहीं हो सकती। पूरी शिक्षा प्रक्रिया उलट गई है। लेकिन, हमारे स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय आज भी बाबू ही पैदा कर रहे हैं।
अध्यापक शोध नहीं करते, शोध करने वाले पढ़ाते नहीं
देश के अध्यापक शोध नहीं करते और जो शोध करते हैं, वे पढ़ाते नहीं हैं। हमें पूरी सोच को बदलना है, तभी उच्च शिक्षा का विकास होगा। हमें विश्वविद्यालय आज के लिए नहीं, बल्कि कल के बच्चों के लिए खोलना है। लेकिन, अफसोस। आज जितने भी विश्वविद्यालय खुल रहे हैं वे अमरीका और पाश्चात्य देशों की नकल कर रहे हैं। जबकि, देश में उच्चशिक्षा के विकास के लिए पश्चिमी मॉडल कभी भी कारगर नहीं रहा है। आज यहां के अधिकतर विश्वविद्यालयों में प्रतिवर्ष चालीस हजार डॉलर के करीब फीस है। इतनी अधिक फीस हमारे यहां के अभिभावक नहीं दे सकते। वैसे भी पिछले २५ सालों से हम अमीर लोगों की ही समस्याएं सुलझा रहे हैं। अब हमें गरीबों की समस्या सुलझाने का नैतिक दायित्व निभाना चाहिए। इसलिए हमें अपने विश्वविद्यालयों का नया मॉडल विकसित करना होगा।
नौकरी और प्रशिक्षण का मॉडल तलाशें
'पाठ्यक्रमों पर केंद्रित, डिग्रियां और सॢटफिकेटÓ देने वाली शिक्षा व्यवस्था सिर्फ और सिर्फ बेरोजगारों की ही फौज को खड़ी कर रही है। आज देश में २५ वर्ष से कम आयु के करीब ५५ करोड़ लोग हैं। हमें सोचना यह है कि आखिर, हम उन्हें नौकरी और प्रशिक्षण कैसे देंगे? लेकिन, यह विडंबना है कि आज तक हमने ऐसी कोई प्रणाली विकसित नहीं की, जिससे यह पता चल सके कि अमुक वर्ष में देश को इतने इंजीनियर, डॉक्टर, वकील और पत्रकार चाहिए। हमारे विश्वविद्यालय हर साल इतिहास, भूगोल, हिंदी, संस्कृत जैसे परंपरागत विषयों के स्नातक और परास्नातक पैदा करते हैं। लेकिन इन्हें कहां रोजगार मिलेगा, इस बात को जानने की कोशिश न तो विश्वविद्यालय करता है न सरकारें।
विषय केंद्रित खुलें विश्वविद्यालय
आखिर, हर विश्वविद्यालय में इतिहास, भूगोल और अन्य मानविकी विषय क्यों पढ़ाए जा रहे हैं। जबकि मानविकी विषयों के लिए किसी भी राज्य में हर साल हजार,दो हजार से ज्यादा नौकरियां सृजित नहीं होती। क्यों न हर राज्य में किसी एक विषय इतिहास, भूगोल आदि को पढ़ाने वाली ही यूनीवर्सिटी खुले। हिंदी विश्वविद्यालय हिंदी की हर विधा की पढ़ाई हो। इससे स्पेशलाइज्ड लोग शिक्षा ग्रहण कर निकलेंगे। तब नौकरियों की मारामारी नहीं होगी। आज प्रतिस्र्पधा का युग है। महज,सर्टिफिकेट और डिग्रियों के भरोसे बेरोजगारी की जंग नहीं लड़ी जा सकती। आज कौशल और तकनीक का जमाना है। यही समय की तकाजा है। हुक्मरानों को यह बात कब समझ में आएगी।

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