जब कंपनियां कर्मचारियों को अस्थाई या स्थाई तौर पर इस वजह से निकाल देती हैं क्योंकि उनके पास उन्हें भुगतान करने के लिए या तो पैसा नहीं होता है या उन कर्मचारियों के लिए कोई काम नहीं होता है तो इसे डाउनसाइजिंग (कर्मचारी कम करना) वर्कफोर्स का पूरा इस्तेमाल और री डिप्लॉयमेंट(दोबारा से तैनाती) के तौर पर जाना जाता है। बैंक और वित्तीय संस्थानों समेत पूरी दुनिया की कई कंपनियों को सितंबर 2008 में लीमैन ब्रदर्स के धराशायी होने के बाद आई मंदी की वजह से छंटनी का सहारा लेना पड़ा था।
नौकरियां जाने से पहले क्या कोई चेतावनी का संकेत होता है
छंटनी कारोबारी सेंटीमेंट का एक अंग है। ऐसे में मंदी के दौरान नौकरियां जाती हैं और अमूमन इसे ऊंची मंहगाई की वजह से जोर मिलता है। मंदी के दौरान नौकरियों का बाजार सूख जाता है क्योंकि कंपनियां अपने तमाम खर्चों को कम करने के लिए कोशिशें करने लगती हैं। अमूमन कड़े कदमों का अगला चरण सही आकार करने की कोशिशों का होता है। ऐसे में इस चरण में नौकरियों की बलि चढ़ती है।
क्या छंटनी रोकने का कोई तरीका है
कई बार कंपनियां मंदी की स्वाभाविक प्रतिक्रिया के तौर पर छंटनी का सहारा लेती हैं। लेकिन इस तरह के कड़े कदमों को उठाने के बजाय कंपनियां कई दूसरे कदम उठा सकती हैं। वर्कफोर्स की सही प्लानिंग, लागत नियंत्रण पर लगातार फोकस, मल्टिस्किलिंग और एक सकारात्मक वर्क कल्चर पैदा करना इन उपायों में शामिल है, जिनका इस्तेमाल कंपनियां लोगों को नौकरी से निकालने के बजाय इस्तेमाल कर सकती हैं।
इससे किस तरह से निपटना चाहिए
एक अच्छा बायोडाटा बनाइए इसे अपने प्रफेशनल नेटवर्क पर सर्कुलेट करिए और हेडहंटर्स से संपर्क करिए जो कि आपके टारगेट सेक्टर या आपके स्पेशलाइजेशन वाले फील्ड में काम करते हैं। अपने परिवार से पिंक.स्लिप (नौकरी जाने) की बात को छिपाइए मत। उनके साथ यह चीज साझा कीजिए ताकि वे आपको भावनात्मक समर्थन दे सकें।
कोई नए करियर के लिए कैसे खुद को तैयार कर सकता है
कर्मचारियों को अपने स्किल्स में पारंगत होना चाहिए। हालिया महीनों में भारत में टेलिकॉम और वित्तीय सेवा सेक्टरों में छंटनी और वर्कफोर्स डिप्लॉयमेंट देखी गई है। अगर कोई खास सेक्टर ठीक प्रदर्शन नहीं कर रहा है तो इसी तरह के दूसरे विकल्पों पर गौर कीजिए। वित्तीय सेवा सेक्टर में मौजूद लोग ऐसा कोई भी काम कर सकते हैं जो उन्हें बी2सी से कनेक्ट कर सके, इसमें सोशल नेटवर्कए ईकॉमर्स, टेक्नोलॉजी कंपनियां आती हैं। ऐसी कंपनियों से संपर्क कीजिए जहां आपके काम से मिलते जुलते प्रोफाइल हों। संभावित नियोक्ताओं से अनौपचारिक बातचीत शुरू कर दीजिए। लगातार स्किलिंग और सीखना जरूरी है।
नौकरियां जाने से पहले क्या कोई चेतावनी का संकेत होता है
छंटनी कारोबारी सेंटीमेंट का एक अंग है। ऐसे में मंदी के दौरान नौकरियां जाती हैं और अमूमन इसे ऊंची मंहगाई की वजह से जोर मिलता है। मंदी के दौरान नौकरियों का बाजार सूख जाता है क्योंकि कंपनियां अपने तमाम खर्चों को कम करने के लिए कोशिशें करने लगती हैं। अमूमन कड़े कदमों का अगला चरण सही आकार करने की कोशिशों का होता है। ऐसे में इस चरण में नौकरियों की बलि चढ़ती है।
क्या छंटनी रोकने का कोई तरीका है
कई बार कंपनियां मंदी की स्वाभाविक प्रतिक्रिया के तौर पर छंटनी का सहारा लेती हैं। लेकिन इस तरह के कड़े कदमों को उठाने के बजाय कंपनियां कई दूसरे कदम उठा सकती हैं। वर्कफोर्स की सही प्लानिंग, लागत नियंत्रण पर लगातार फोकस, मल्टिस्किलिंग और एक सकारात्मक वर्क कल्चर पैदा करना इन उपायों में शामिल है, जिनका इस्तेमाल कंपनियां लोगों को नौकरी से निकालने के बजाय इस्तेमाल कर सकती हैं।
इससे किस तरह से निपटना चाहिए
एक अच्छा बायोडाटा बनाइए इसे अपने प्रफेशनल नेटवर्क पर सर्कुलेट करिए और हेडहंटर्स से संपर्क करिए जो कि आपके टारगेट सेक्टर या आपके स्पेशलाइजेशन वाले फील्ड में काम करते हैं। अपने परिवार से पिंक.स्लिप (नौकरी जाने) की बात को छिपाइए मत। उनके साथ यह चीज साझा कीजिए ताकि वे आपको भावनात्मक समर्थन दे सकें।
कोई नए करियर के लिए कैसे खुद को तैयार कर सकता है
कर्मचारियों को अपने स्किल्स में पारंगत होना चाहिए। हालिया महीनों में भारत में टेलिकॉम और वित्तीय सेवा सेक्टरों में छंटनी और वर्कफोर्स डिप्लॉयमेंट देखी गई है। अगर कोई खास सेक्टर ठीक प्रदर्शन नहीं कर रहा है तो इसी तरह के दूसरे विकल्पों पर गौर कीजिए। वित्तीय सेवा सेक्टर में मौजूद लोग ऐसा कोई भी काम कर सकते हैं जो उन्हें बी2सी से कनेक्ट कर सके, इसमें सोशल नेटवर्कए ईकॉमर्स, टेक्नोलॉजी कंपनियां आती हैं। ऐसी कंपनियों से संपर्क कीजिए जहां आपके काम से मिलते जुलते प्रोफाइल हों। संभावित नियोक्ताओं से अनौपचारिक बातचीत शुरू कर दीजिए। लगातार स्किलिंग और सीखना जरूरी है।
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