शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

भारतीयों को नौकरी से रोकने के लिए नया फॉर्मूला

राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आउटसोर्सिंग पर रोक लगाने के लिए विदेशी आय पर न्यूनतम कर लगाने का प्रस्ताव किया है। वहीं, उनकी योजना देश में रोजगार लाने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन देने की भी है। उनके इस कदम से अमेरिकी कंपनियों को भारत जैसे देशों में नौकरियां देने से रोका जा सकेगा। ओबामा चुनावी साल को देखते हुए आउटसोर्सिंग के प्रति कड़ा रुख अपनाए हुए हैं। उन्होंने राष्ट्रपति पद पर दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने के प्रयासों के तहत जो चुनावी रणनीति तैयार की है, यह उसी कर योजना का एक हिस्सा है। वैश्विक आर्थिक मंदी से जूझ रहे अमेरिका में बेरोजगारी दर ऊंची बनी हुई है। वित्त मंत्रालय का मानना है कि अमेरिका में कर प्रणाली कई ऐसे अवसर पैदा करती है कि कंपनियों को उत्पादन व लाभ विदेश ले जाने के लिए प्रोत्साहन मिले। यह देश में ही रोजगार पैदा करने और निवेश सृजन के लिए कम काम करती है। ओबामा का मानना है कि अगर कंपनियां विदेश में स्थानांतरित होने पर छूट का दावा करती हैं, तो उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसके साथ ही वे कंपनियों का परिचालन वापस देश में लाने के लिए २० प्रतिशत आयकर ऋण का भी प्रस्ताव कर रहे हैं। ओबामा ने कहा है कि कॉरपोरेट कर प्रणाली अक्षम व पुरानी पड़ चुकी है। यह इतनी जटिल है कि छोटे उद्यमों को कई घंटे व अनगिनत डॉलर कर भुगतान पर ही खर्च करने पड़ते हैं।

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

...तो क्या उतरने लगा एमबीए का बुखार?

देश में 65 बी स्कूल बंद होने के कागार पर
लगता है युवाओं के सिर पर चढ़ा एमबीए का बुखार अब उतरने लगा है। इसका पता इस बात से चलता है कि देश के विभिन्न भागों में 65 बिजनेस स्कूल बंद होने जा रहे हैं। मालूम है कि इस समय कुल बिजनेस स्कूलों की संख्या 3900 है जहां हर साल साढ़े तीन लाख युवा एमबीए की डिग्री लेते हैं। इनके बंद होने के पीछे मुख्य कारण आने वाले समय में एमबीए कोर्स की प्रासंगिकता खत्म होने की आशंका है।
खराब गुणवत्ता भी जिम्मेदार
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के प्रमुख एस एस मन्था ने बताया कि दूरदराज क्षेत्रों में मौजूद खराब गुणवत्ता वाले संस्थानों को छात्र ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। संस्थानों की बहुतायत के कारण आपूर्ति मांग से ज्यादा हो गई है। पहले भी कई विशेषज्ञ दूरदराज के प्रबंधन संस्थानों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े कर चुके हैं। किसी तरह का प्लेसमेंट न होने के कारण छात्र भी अब इनसे दूरी बनाने लगे हैं। कंपनियां भी ऐसे संस्थानों में जाने से बचती हैं।
फिर भी अच्छा समय
अब कुछ ही प्रतिष्ठित कंपनियां कोर्स खत्म होने के कारण कैम्पस सिलेक्शन का विकल्प चुन रही है। एक समय था जब भारतीय छात्र एमबीए के लिए किसी भी संस्थान में दाखिला ले लेते थे, लेकिन अब कोर्स के अंत तक जॉब ऑफर न होने के कारण ऐसे फैसले मुफीद नहीं माने जा रहे हैं। हालांकि आईआईएम बी के निदेशक पकंज चन्द्र कहते हैं कि कैट की परीक्षा में हर साल कई लाख छात्र बैठते हैं लेकिन उनमसे केवल 3000 को ही आईआईएम में मौका मिलता है। एमबीए करने का यह सबसे अच्छा समय है।

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

१.५ लाख जॉब देगा फुटवियर पार्क

दिल्ली के पास बहादुरगढ़ इंडस्ट्रियल एरिया में ९०० करोड़ के निवेश से ३४२ एकड़ में तैयार बीएफपी (बहादुरगढ़ फुटवियर पार्क) के अगस्त से पूरी तरह ऑपरेशनल होने के बाद सीधे और परोक्ष रूप से १.५ लाख लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है। यहां से सालाना २०,००० करोड़ रुपए का कारोबार होगा। बीएफपी में एक्शन शूज, लखानी, रिलैक्सो, लांसर शूज और डायमंड सहित कई कंपनियों की यूनिट हैं।
एक्शन शूज के मैनेजिंग डायरेक्टर और बहादुरगढ़ फुटवियर इंडस्ट्री एसोसिएशन (बीएफआईए) के प्रेसिडेंट राजकुमार गुप्ता ने बताया, 'यहां ३६८ यूनिट हैं। बीएफपी से बाहर भी १२५ इकाइयां काम कर रही हैं।' उन्होंने दावा किया कि इसकी सभी यूनिटों के शुरू होने के बाद ५०,००० लोगों को सीधे और करीब १ लाख लोगों को परोक्ष तौर पर काम मिलेगा। बीएफपी का उद्घाटन दिसंबर २००७ में हुआ था। तब इलाके की फुटवियर इंडस्ट्री से २८,००० लोगों को रोजगार मिला हुआ था।
बहादुरगढ़ फुटवियर पार्क के महासचिव सुभाष जग्गा ने बताया कि वह बीएफपी से सालाना २०,०००-२५,००० करोड़ के टर्नओवर की उम्मीद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हर यूनिट औसतन सालाना ४-५ करोड़ रुपए का कारोबार कर सकती है। एक्शन शूज के गुप्ता कहते हैं कि वह बीएफपी की अपनी यूनिट से सालाना २५०-३०० करोड़ के कारोबार की उम्मीद कर रहे हैं। हालांकि, इंडस्ट्री कुछ बातों को लेकर परेशान भी है।
रिलैक्सो के मैनेजिंग डायरेक्टर रमेश कुमार दुआ ने ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर को सबसे बड़ा चैलेंज बताया। एक ही जगह इतनी इकाइयों के काम करने से डिजाइन और दूसरे इनोवेशन को भी बढ़ावा मिलेगा। इसमें रोहतक का फुटवियर डिजाइन एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (एफडीडीआई) भी मददगार साबित होगा। एफडीडीआई के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव जे लाकड़ा ने कहा कि संस्थान डिजाइन, प्रोडक्शन कैपेसिटी में सुधार, क्वालिटी कंट्रोल, मैनपावर और इनवेंटरी मैनेजमेंट में मदद करेगा। बहादुरगढ़ इंडस्ट्रियल एरिया के लिए पावर इंफ्रास्ट्रक्चर को भी बेहतर किया जा रहा है।
हरियाणा स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एचएसआईआईडीसी) के सीनियर मैनेजर (एस्टेट) कुलदीप कादियान ने बताया कि यहां १३२ केवीए क्षमता वाला पावर सब-स्टेशन लगाने की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। यह अगले ४-५ महीने में यह काम करने लगेगा।

रविवार, 12 फ़रवरी 2012

नौकरियों के हजारों दावेदार पर काबिलों की दरकार

कुछ दिन पहले ही विश्व बैंक ने एक अध्ययन जारी किया है। अध्ययन के अनुसार अगले दो दशक तक भारतीय बाजार में प्रत्येक महीने करीब ८,५०,००० नौकरियां उपलब्ध होंगी। वर्ष २०००- २०१० के दौरान भारतीय बाजार के लिए यह आंकड़ा ५,००,००० प्रति माह ही रहा है। ऐसे में आगे बढऩे के लिए अतिरिक्त रोजगार मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती है। लेकिन पिछले दशक में श्रमिकों के वेतन में बढ़ोतरी और स्वनियोजित व अस्थायी श्रमिकों की वित्तीय हालत सुधरने के बावजूद रोजगार की गुणवत्ता में सुधार लाना, रोजगार बढ़ाने से ज्यादा मुश्किल चुनौती है।
समस्या यह है कि कुल नियुक्त श्रमिकों में से एक तिहाई ऐसे हैं, जो दैनिक, अनियमित आधार पर काम करते हैं। लेकिन निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत व नियमित तौर पर वेतन प्राप्त करने वाले कर्मचारियों की संख्या में पिछले दशक के दौरान कोई खास बदलाव नहीं हुआ है और कुल कर्मचारियों में इनका हिस्सा महज १६.६७ फीसदी ही है।
दिलचस्प है कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के बावजूद कुल श्रमिकों में स्वनियोजित श्रमिकों की ५० फीसदी हिस्सेदारी है, जिनमें से ज्यादातर कृषि क्षेत्र से जुड़े हैं।
असली समस्या यही है। टीमलीज के चेयरमैन मनीष सबरवाल के अनुसार कृषि से जुड़े हुए लोगों की संख्या के लिहाज से इस क्षेत्र का उत्पादन बेहद कम है। मसलन ७.५ करोड़ भारतीय ११ करोड़ टन दूध का उत्पादन करते हैं जबकि १ लाख अमेरिकी ७ करोड़ टन दूध का उत्पादन करते हैं। उन्होंने कहा कि जब तक भारत कुल श्रम संख्या में कृषि क्षेत्र के हिस्से को घटाकर १५ फीसदी तक नहीं लाता, तब तक देश से गरीबी समाप्त नहीं की जा सकती। दिलचस्प है कि १९०० में करीब ४१ फीसदी अमेरिकी कृषि क्षेत्र में काम किया करते थे। लेकिन अमेरिका में कृषि के लिए यह आंकड़ा २ फीसदी से भी कम है। चीन में माओ के मरने के बाद अब तक करीब ४० करोड़ लोग गैर-कृषि क्षेत्रों से जुड़ गए हैं।
सबरवाल के अनुसार अगले २० साल के दौरान देश के श्रमिक बाजार में प्रभावी तरीके से होने वाले चार परिवर्तन करीब १६.३ करोड़ भारतीयों को गरीबी से बचा सकते हैं। ये परिवर्तन हैं- ग्रामीण से शहरी, असंगठित से संगठित, निर्वाह लायक स्वनियोजित से अच्छे वेतन वाली नौकरी और कृषि से गैर-कृषि क्षेत्र में श्रमिकों में इजाफा करना। विकसित अर्थव्यवस्थाओं का अनुभव यही कहता है कि ऐसा तभी मुमकिन है जब बच्चों को शुरुआत में ही बेहतर पोषण मिले। दूसरा, कुशल श्रमिकों की बढ़ती मांग देखते हुए शिक्षा की गुणवत्ता सुधारी जाए, जिससे उन्हें जरूरी प्रशिक्षण मुहैया कराया जा सके। उच्च शिक्षित श्रमिकों को मिलने वाले मोटे वेतन से भी यह साफ जाहिर होता है।
सबसे पहले हम बचपन में खराब पोषण की समस्या पर ध्यान देते हैं। यह एक ऐसा संकेतक है, जिस पर दक्षिण एशिया का प्रदर्शन सबसे खराब है। यहां तक कि उप सहारा अफ्रीकी देश भी इस मामले में दक्षिण एशिया से आगे हैं। यूं तो इस संकेतक पर भारत का प्रदर्शन अपने पड़ोसी देशों से बेहतर है लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ बेहतर नहीं है। मसलन, चाइल्ड राइट्स ऐंड यू (क्राई) द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट पर जरा गौर फरमाया जाए। क्राई के सर्वेक्षण में दिखाया गया है कि बृहनमुंबई नगर निगम (बीएमसी) द्वारा चलाए जा रहे ज्यादातर विद्यालयों में बच्चों को दोपहर के खाने में बिना नमक की 'खिचड़ी' दी जाती है, जिसमें रेत और कंकड़ मिलना आम बात है।
क्राई के स्वयंसेवक नितिन वाधवानी बताते हैं कि सूचना का अधिकार के तहत किए गए आवेदन में पता चला है विषाक्त भोजन के मामले सामने आने के बाद छात्रों को दूध की आपूर्ति भी बंद कर दी गई। उन्होंने बताया, 'सरकारी प्रस्ताव के अनुसार विद्यालयों में पढऩे वाले छात्रों को फल, मूंगफली, सोया बिस्कुट और अन्य पोषक उत्पाद भोजन में दिए
जाने चाहिए।'
अगर देश की आर्थिक राजधानी में इस योजना की यह हालत है, तो देश के कम विकसित इलाकों में हालात क्या होंगे, इसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं है। दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है रोजगार बढ़ाने के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना।
हकीकत यह है कि देश में जल्द ही विरोधाभास की स्थिति आने वाली है। हमारे देश के पास दुनिया में श्रमिकों की सबसे बड़ी फौज तो होगी लेकिन उनके पास उत्पादक रोजगार के लिए सही रवैया और जरूरी कौशल नहीं होगा। भारत में २५ साल से कम उम्र के करीब ५५ करोड़ लोग हैं और इनमें से महज ११ फीसदी ही उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला ले पाते हैं जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा २३ फीसदी है। इसके नतीजे जगजाहिर हैं। यहां एक कंपनी के अनुभव पर ध्यान देना बेहद जरूरी है, जिसे अपनी भारतीय इकाई के लिए डेवलपरों की नियुक्ति में काफी जद्दोजहद करनी पड़ी। कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, 'हमारे यहां नौकरी के लिए आवेदन करने वाले प्रतिभागियों को देखकर मुझे बेहद खराब लगा। लेकिन खुद को डेवलपर कहने वाले इन आवेदकों को सॉफ्टवेयर विकसित करने के बुनियादी सिद्घांतों की भी सही जानकारी नहीं थी।'
उन्होंने बताया, 'हमारे द्वारा लिए गए अनगिनत साक्षात्कारों में मुझे एहसास हुआ कि ज्यादातर डेवलपर अपनी पूरी ऊर्जा इसमें लगा देते हैं कि काम को कैसे पूरा किया जाए? भले ही वह काम कितना भी कच्चा हो। उनके साक्षात्कार के दौरान हमें यह देखकर बेहद हैरानी हुई कि पांच साल का अनुभव रखने वाले प्रतिभागी भी डिजाइन पैटर्न, स्ट्रक्चर्ड कोडिंग जैसे  बुनियादी सिद्घांत नहीं जानते थे। कुछ तो इतने ढीठ थे कि उन्होंने साक्षात्कार लेने वाले अधिकारी को यहां तक कह डाला कि ये सब काफी आधुनिक चीजें हैं और सॉफ्टवेयर डेवलपिंग में इनकी जरूरत नहीं होती है।'
राष्ट्रीय श्रम विकास परिषद की रणनीति प्रमुख गौरी गुप्ता के अनुसार भारत में २०२२ तक करीब ५२.६ करोड़ प्रशिक्षित श्रमिकों की जरूरत होगी। अगर ऊपर बताए गए कंपनी के अनुभव को ध्यान में रखा जाए, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है।

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

नौकरी बदलने को बेकरार कमर्चारी

ऊंचे वेतन की चाह में ज्यादातर कर्मचारी नौकरी बदलकर दूसरी कंपनी में जाने की योजना बना रहे हैं। ग्लोबल रिक्रूटमेंट सर्विस प्रोवाइडर माईहाइरिंगक्लब.कॉम के सर्वेक्षण के अनुसार, इस साल प्रत्येक पांच में तीन कर्मचारी बेहतर वेतन की संभावना के मद्देनजर दूसरी कंपनी में जाने की तैयारी कर रहे हैं। वहीं पांच में से दो कर्मचारी ऐसे भी हैं, जो मौजूदा वेतन पर ही नौकरी बदलने को तैयार हैं।
सर्वेक्षण में कुल १२,७५६ कर्मचारियों को शामिल किया गया। ज्यादातर कर्मचारी वेतन तथा मौजूदा नौकरी से अंसतुष्ट होने की वजह से दूसरी कंपनी में जाना चाहते हैं। प्रत्येक पांच में से चार कर्मचारी ऐसे थे, जो अपनी मौजूदा नौकरी से खुश नहीं थे। वहीं प्रत्येक चार में से एक कर्मचारी किसी नई इंडस्ट्री में नौकरी चाहता था। सर्वे में कहा गया है कि बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में कार्यरत ३७ फीसदी कर्मचारी इस उद्योग से बाहर नौकरी चाहते हैं। वहीं, दूरसंचार और रियल एस्टेट सेक्टर में कार्यरत कर्मचारी भी किसी नए उद्योग में नौकरी करना चाहते हैं।
हालांकि, आईटी, एफएमसीजी और हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारी उद्योग के भीतर ही नौकरी बदलना चाहते हैं। बैंकिंग, वित्तीय, बीमा और एनबीएफसी क्षेत्र नौकरी चाहने वालों का पसंदीदा विकल्प नहीं रह गया है। दो-तीन साल पहले यह स्थिति थी कि गैर-आईटी पृष्ठभूमि वाला उम्मीदवार इन क्षेत्रों में नौकरी करना चाहता था।
सैट-एन-मर्क मैनपावर कंसल्टेंट की निदेशक प्राची कुमार ने बताया कि नौकरी का बाजार पूरी तरह बदल गया है। यहां तक कि इन उद्योगों के उम्मीदवार भी दूसरे क्षेत्र में नौकरी करना चाहते हैं। पिछले दो-तीन साल में इन उद्योगों में नौकरी छोड़ने की दर दोगुनी हो गई है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि बाजार में नौकरी ढूंढने का चलन फिर से लौट आया है। अब कर्मचारियों को भरोसा है कि वे सिर्फ अपने रेफरेंस से नई नौकरी हासिल कर सकते हैं। प्रत्येक पांच में से चार कर्मचारियों का मानना था कि नई नौकरी पाने में सफलता का प्रतिशत ८५ है। वहीं पांच में से एक कर्मचारी ने कहा कि नौकरी पाने के लिए ऑनलाइन रोजगार बाजार और सलाहकार कंपनियां बेहतर विकल्प हैं।

खुशखबरी.. हर महीने ४ लाख नौकरियां

आर्थिक मंदी के बीच नौकरियों की खोज करने वालों के लिए अच्छी खबर है। अब उन्हें जल्द ही नई और अच्छी नौकरी मिल सकती है। वो भी मंदी के दौरान ही। जी हां, अब कंपनियां जॉब मार्केट को बेहतर बनाने में लग गई हैं। इसकी बदौलत ही अकेले जनवरी में ६,३१,००० लोगों को नौकरियां मिली है। जानकार आगे इस आंकड़े में और सुधार की बात कर रहे हैं। एक सर्वे के मुताबिक, जनवरी में नौकरियों में हुआ यह इजाफा एक रिकॉर्ड है। २००७ की मंदी के बाद से अब तक किसी भी १ महीने में सबसे ज्यादा बढ़ी नौकरियां हैं। आने वाले महीनों में नौकरियों की इजाफा दर में और भी सुधार होगा।
गौरतलब है कि पिछले में बेरोज१ साल गारी दर कम हुई है। जनवरी २०११ में ये दर ९.१ फीसदी थी। वहीं जनवरी २०१२ में सुधार के साथ यह आंकड़ा ८.३ फीसदी हो गया है। हालांकि इस दौरान बीच में बेरोजगारी दर में कई बार उतार-चढ़ाव भी हो चुका है। मूडी एनालिस्टिक के मुख्य अर्थशास्त्री मार्क जांडी ने बताया कि हॉउसहोल्ड सर्वे में मिले परिणाम अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत हैं। यह आंकड़ा मंदी के कम होते असर और मजबूत अर्थव्यवस्था की ओर इशारा करता है।
एक अन्य आंकड़े के मुताबिक, नौकरियों के साथ-साथ छोटे कारोबार की ऋण मांग में भी जबरदस्त उछाल देखा गया है। हालांकि मांग के मुताबिक कर्ज मुहैया कराने में अभी काफी मुश्किल हो रही है।

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

संभला अमेरिका, एक ही महीने में ढ़ाई लाख नौकरियां

लगातार मंदी से जूझ रहे अमेरिका के लिए अच्छी खबर है। सिर्फ जनवरी महीने में ही अमेरिका में ढ़ाई लाख नौकरियों का सृजन हुआ है, जिससे बेरोजगारी दर घटकर ८.३ फीसदी हो गई। इसे आर्थिक स्थिति में सुधार का संकेत माना जा रहा है। अमेरिका के ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक के कार्यवाहक आयुक्त जॉन गाल्विन ने कहा कि बेरोजगारी दर जनवरी में घटकर ८.३ प्रतिशत हो गयी। माह के दौरान गैर-कृषि क्षेत्र में २४३,००० नये रोजगार का सृजन हुआ। अमेरिका में बेरोजगारी दर अगस्त महीने से लगातार घट रही है। उस समय यह ९.१ प्रतिशत थी।