गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

हर ग्रेजुएट को आईआईटी देगा मौका

अब सामान्य छात्र भी आईआईटी दिल्ली से एमबीए कर सकेंगे। इस प्रतिष्ठित संस्थान ने अपने यहां एमबीए में दाखिला का फार्मूला बदलने का फैसला किया है। दाखिला प्रक्रिया में यह बदलाव 2013 से होने जा रहा है। आईआईटी के डिपॉर्टमेंट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज विभाग मौजूदा पैमाना 10वीं 12वीं 4 वर्ष की स्नातक डिग्री को बदलकर 10वीं 12वीं तीन वर्ष करने जा रहा है। पुराने पैटर्न से बीटेक करने वाले या पोस्ट ग्रेजुएट छात्र ही आईआईटी दिल्ली के एमबीए में दाखिले के योग्य हो पाते थे। नए पैटर्न में बीए, बीकॉम और बीएससी करने वाले छात्र भी यहां से एमबीए कर पाएंगे। एडमिशन कोऑडिनेटर एम पी गुप्ता ने बताया कि प्रतिस्पर्धा के इस समय में किसी उम्मीदवार को मौका देने से वंचित करना ठीक नहीं है। पुराने पैटर्न में जहां कई प्रतिभाशाली छात्रों को नुकसान होता था तो दूसरी तरफ आईआईटी को कई बार योग्य उम्मीदवार नहीं मिल पाते थे। प्रोफेसर गुप्ता ने बताया कि नए पैमाने को लेकर कुछ औपचारिकताएं पूरी होनी अभी बाकी है। इसे 2013 से लागू किया जा सकता है। वर्तमान में कई क्षेत्र जैसे हेल्थ केयर, इंफ्रास्ट्रक्चर, मीडिया और इंटरटेनमेंट आदि में बेहतर प्रोफेशनल की मांग बढ़ी है। किसी छात्र ने स्नातक स्तर पर मेडिकल की पढ़ाई की है तो हेल्थ केयर और मॉस कम्युनिकेशन की पढ़ाई करने वाले छात्र मीडिया और इंटरटेनमेंट में एमबीए कर सकते हैं।

नए साल में 12 फीसदी बढ़ेगी सैलर

अर्थव्यवस्था में धीमी रफ्तार के बीच देश के कर्मचारियों के लिए खुशखबरी है। ग्लोबल मैनेजमेंट कंसल्टेंसी ग्रुप के सर्वे की मानें तो 2012 में सैलरी में12 फीसदी तक बढ़ोतरी हो सकती है। ग्रुप के मुताबिक भारत में 2011 में सैलरी में 11 फीसदी तक औसत बढ़ोतरी हुई। 2012 में इसके 12 फीसदी होने की उम्मीद है। सर्वे के मुताबिक,जूनियर या मिडिल लेवल ही नहीं, सीनियर मैनेजमेंट स्तर पर भी वेतन में अच्छा इजाफा हुआ। इस साल इसके 11.12 फीसदी रहने की उम्मीद है। ग्रुप ने माना कि भारतीय कंपनियां ज्यादा टिकाऊ रही हैं। विदेशी कंपनियों के मुकाबले मंदी के दौरे में वे ज्यादा मजबूत रहीं। ग्रुप के मुताबिक, इंजीनियरिंग, सेल्स और मार्केटिंग सेक्टर में भर्तियों में इजाफ ा हो रहा है। सर्वे में भारत की 300 कंपनियां शामिल की गईं और 3 लाख 20 हजार से ज्यादा कर्मचारियों के सैलरी डेटा का विश्लेषण किया गया।

रविवार, 18 दिसंबर 2011

मन में रखें उमंग

असफलताओं की सीढ़ी चढ़कर ही व्यक्ति सफलता की मंजिल प्राप्त करता है। इसलिए असफलता को लेकर कतई निराश न हों। कभी एक जगह शांति से बैठकर सोचें. क्या इस दुनिया में कोई ऐसा इंसान हैए जिसने कभी हार का सामना न किया होए जिसने कभी दुःख न देखा होए जिसके राहों में कभी कांटे न आए हों। विचार करने पर आप पाएंगे कि ऐसा एक भी इंसान नहीं है। विचार करने पर आप एक और चीज पाएंगे कि कुछ लोग तकलीफों में बिलकुल हार जाते हैंए लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो बार.बार असफल होने पर भी हिम्मत नहीं हारते और एक दिन अपनी मंजिल पा ही लेते हैं। छोटे बच्चों को गेंद खेलते देखा है कभी। गेंद को जब वह जोर से जमीन पर मारते हैंए वह फिर ऊपर उछल जाती है। जितना जोर से उसे जमीन पर मारते हैंए वह उतना ही जोर से और ऊपर उछलती है। यह उदाहरण जिंदगी की बहुत बड़ी सीख है। भले ही आप धड़ाम से गिरेंए पर उतनी ही तेजी से उठने की भी कोशिश करें। गिर कर भी उठना सीखेंए हार कर भी जीतना सीखें। हारने का मतलब यह नहीं होता कि आप उस काम को कर ही नहीं सकते। इसका तात्पर्य यह होता है कि उस काम कोए जिसे आपने कियाए उसे और सुधारा जा सकता हैए कोई और तरीके से भी किया जा सकता है। हर हार से कुछ सीखें। अपनी कमियों को लिखें और फिर उनको दूर करने की कोशिश करें। गलतियों को दोहराने से बचें।
कई बार हम खुद में ओवर कॉन्फिडेंट हो जाते हैं और समझने लगते हैं कि हमें सबकुछ आता है। इस कारण हमारा ध्यान उस काम से कम हो जाता है। परिणाम यह होता है कि हमें असफलता का सामना करना पड़ता है। यदि आपने 100 प्रतिशत दियाए तो हो सकता है कि दूसरे ने 101 प्रतिशत दिया हो और इसी कारण वह सफल रहा। सफलता और आपके बीच में इसी एक प्रतिशत का फर्क है। इस फर्क को पाटें।
ध्यान रखें:
आप खुद पर विश्वास बनाए रखें। इससे कठिनाई में भी आप डगमगाएंगे नहीं।
असफलता के बाद लोग चाहे कुछ भी कहेंए ध्यान मत दें। पुनः हौसले के साथ अभियान में जुट जाएं।
ऐसे लोगों के साथ रहेंए जिन्होंने मेहनत और हिम्मत से जीवन में कुछ पाया है। इससे आपको भी बाधाओं से लड़ने की प्रेरणा मिलेगी।
हर वक्त कुछ न कुछ नया सीखते रहें। यही आदत आपकी सफलता की लड़ी बन जाएगी।
यह मान कर चलें कि हर विफलता के पीछे कोई.न.कोई वजह जरूर होती है। उसे दूर करने की कोशिश करें और लक्ष्य की ओर आगे बढ़ें। जब कदम आगे बढ़ाएंगे तो पीछे कभी नहीं जाएंगे

बिजली क्षेत्र में पांच साल में चार लाख से ज्यादा रोजगार पैदा होंगे

तेजी से विकास कर रहे बिजली क्षेत्र के बारे में अनुमान है कि 12वीं योजनावधि 2012.17 के दौरान 94000 मेगावाट की अतिरिक्त क्षमता प्राप्त करने के लिए 4 लाख से अधिक रोजगार के मौके पैदा हो सकते हैं। बिजली मंत्रालय के मुताबिक इस अवधि में बिजली क्षेत्र में 13.72 लाख करोड़ रुपये का निवेश होने का अनुमान है। बिजली मंत्रालय के 12वीं योजना से जुड़े कार्यसमूह ने अपनी रपट में कहा 12वीं योजना में 94.215 मेगावाट की अतिरिक्त क्षमता जोड़ने के लिए 407670 अतिरिक्त कर्मचारियों की जरूरत होगी। इन 4.07 लाख नए कर्मचारियों में से 3.12 लाख कर्मचारी तकनीकी और शेष गैर तकनीकी के क्षेत्र के होंगे। वित्त वर्ष 2012.17 की अवधि में देश में करीब 75,000 मेगावाट की अतिरिक्त बिजली क्षमता जोड़े जाने का अनुमान है जिसमें अक्षय उर्जा स्रोत शामिल नहीं है।

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

मेहनत से बनाया अपना अलग मुकाम

बिल गेट्स
जिंदगी में अपना अलग मुकाम बनाने और नयी ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए केवल भाग्य ही नहीं, कड़ी मेहनत की भी जरूरत होती है. विरासत में ढेर सारी खुशियां हासिल होने के बावजूद बिल गेट्स ने भी कठिन परिश्रम को अपने जीवन का आधार बनाया और उसकी बदौलत सफ़लता की नयी ऊंचाइयां छूते चले गये. उनकी सफ़लता की यह कहानी युवाओं को लंबे समय तक प्रेरणा देती रहेगी.दुनिया में कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें जन्म के साथ ही विरासत में सारी खुशियां हासिल हुई हैं, बावजूद इसके उन्होंने बड़े होने पर अपने बूते एक अलग पहचान बनायी. माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स भी एक ऐसी ही शख्सीयत हैं. उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जो व्यवसाय में समृद्ध था. उनके दादाजी नेशनल बैंक के वाइस प्रेसिडेंट थे और पिता एक वकील. लेकिन बिल ने कड़ी मेहनत से अपने लक्ष्यों को हासिल करने में यकीन किया. बकौल बिल, यदि आप चालाक और बुद्धिमान हैं और आपको यह पता है कि किस तरह अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना है तो आप अपने लक्ष्य और उद्देश्यों तक पहुंच सकते हैं.    बिल को जानने वाले कहते हैं वे अपने शुरुआती दिनों से ही महत्वाकांक्षी, प्रतिद्वंदी और तेज थे. इन सभी खूबियों की बदौलत ही उन्होंने अपने जीवन में वह हासिल किया, जो वह चाहते थे. स्कूल में बिल गेट्स की प्रतिभा से उनके शिक्षक भी काफ़ी प्रभावित थे.एक बार जब उनके माता-पिता स्कूल में उनसे मिलने आये तो शिक्षक ने बताया कि वह इस स्कूल का सबसे मेधावी छात्र हैं. बाद में अपने बच्चे की प्रतिभा को समझते हुए उन्होंने बिल का दाखिला एक प्राइवेट स्कूल में करवाया.    यह बिल गेट्स के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पल था. यहीं पर पहली बार उनका परिचय कंप्यूटर से हुआ. बिल गेट्स और उनके साथी कंप्यूटर को लेकर काफ़ी उत्साहित थे. इस तरह उनकी रुचि कंप्यूटर के क्षेत्र में बढ़ती गयी. आगे चलकर १९६८ में उन्होंने एक नया ग्रुप भी बनाया, प्रोग्रामर्स ग्रुप. इस समूह के सदस्य के तौर उन्होंने वाशिंगटन विश्वविद्यालय में अपने कंप्यूटर स्किल के इस्तेमाल का नया तरीका निकाला. इस तरह, बिल गेट्स और उनके करीबी साथी ऐलेन ने अपनी एक नयी कंपनी टरफ़-ओ-डाटा बनायी. उन्होंने ट्रैफ़िक फ्लो को मापने के लिए एक छोटा कंप्यूटर विकसित किया. इस प्रोजेक्ट से उन्हें लगभग २० हजार डॉलर की कमाई हुई. कॉलेज छोड़ने के साथ ही इस नयी कंपनी का भी अध्याय समाप्त हो गया. गेट्स ने १९७३ में हार्वर्ड यूनिविर्सिटी में दाखिला लिया. लेकिन अपने भविष्य को लेकर वह दुविधा में थे. इस कारण उन्होंने प्री-लॉ में दाखिला लिया. हार्वर्ड के सबसे मुश्किल कोर्स में दाखिला लेने के बाद भी इसमें उनका प्रदर्शन बेहद उम्दा था. लेकिन, इसमें भी उनका दिल नहीं लगा. उन्होंने कई रातें कंप्यूटर लैब के सामने गुजारीं और दिन उनका क्लास में सोते हुए गुजरता था.यहां से पास आउट होने के बाद वह कंप्यूटर की दुनिया में पूरी तरह रम गये. वह अकसर अपने मित्र पॉल एलेन से नये आइडियाज पर बातें करते रहते थे. तभी उनकी नौकरी लग गयी. लेकिन एलेन हमेशा बिल को नयी सॉफ्टवेयर कंपनी खोलने के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे. एक साल के अंदर ही बिल हार्वर्ड से ड्रॉप-आउट हो गये.  उसके बाद उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट की बुनियाद रखी. आज अपने विजन की बदौलत ही इस मुकाम पर हैं बिल गेट्स. उन्होंने सिर्फ़ अपने भाग्य और भगवान पर भरोसा नहीं किया, अपने उद्देश्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत की. बिल गेट्स दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार किये जाते हैं. लेकिन, वह लालची भी नहीं हैं.स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में कंप्यूटर इंस्टीट्यूट बनाने के लिए उन्होंने ३८ मिलियन डॉलर दान में दिये. जरूरतमंदों की मदद के लिए उन्होंने कई और संस्थाओं को दान के तौर पर आर्थिक मदद की है. बिल गेट्स ने दो पुस्तकें भी लिखी हैं- द रोड एहेड ( १९७५ ) और बिजनेस एट द रेट स्पीड ऑफ़ थॉट ( १९९९ ).

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

पूरी तैयारी के साथ बदलें करियर

बदलाव के लिए तैयार रहना या फिर खुद को नए बदलावों के साथ बदलना किसी भी कर्मचारी के लिए एक अच्छा गुण है। पर एक सुरक्षित करियर से बाहर निकलकर नए करियर की ओर कदम बढ़ाना कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। यही कारण है कि करियर में बदलाव करने पर कुछ बीच में वापस लौट जाते हैं, तो कुछ को समय-समय पर अपनी बनाई गई योजनाओं में बदलाव करना पड़ जाता है। हालांकि यह सच है कि पहले करियर स्विच करने वालों की संख्या सीमित होती थी, तो वहीं अब दो-तीन साल की नौकरी के बाद ही बड़ी संख्या में युवा करियर बदलने को बैचेन दिखाई देते हैं।
एशिया पेसेफिक इंस्टीटय़ूट ऑफ मैनेजमेंट में प्रो. शालिनी वर्मा मानती हैं, च्स्विच ओवर में जोखिम है, तो सफलता की नई उम्मीदें भी छुपी होती हैं। करियर एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है, जिसमें आपकी पढ़ाई, स्किल्स व रुचि  के साथ    दीर्घकालिक लक्ष्य जुड़े होते हैं। करियर स्विच ओवर करके नए क्षेत्र में कदम बढ़ाना पूरी तरह से नई सोच के साथ काम करने जैसा होता है। युवा कई कारणों से करियर बदलते हैं। किसी को अपने करियर की बारीकियां पसंद नहीं आतीं, तो कुछ क्षेत्र विशेष की एकरसता से ऊब जाते हैं। कुछ-कुछ को लगता है कि करियर की सही प्लानिंग न करने के कारण वे गलत करियर में आ गए हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार करियर में बदलाव करने का अंतिम निर्णय लेने से पहले कुछ प्रश्न अवश्य पूछें, मसलन आप करियर क्यों बदलना चाहते हैं, दूसरों की देखा-देखी तो नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं वर्तमान नौकरी या बॉस व सहकर्मियों के साथ आपका अनुभव आपको इस क्षेत्र से बाहर निकलने का दबाव बना रहा है।
जल्दबाजी न करें
मंदी के समय में किसी नए करियर में दोबारा शुरुआत करने या अपना काम प्रारंभ करने का फैसला सोच-समझकर करें। उस क्षेत्र पर पड़ रहे आर्थिक प्रभाव को समझ लें। इसी तरह यदि आप बॉस या सहकर्मियों के स्वभाव के कारण नौकरी छोड़ रहे हैं, तो ऐसा दूसरी जगह नहीं होगा, इस बात की गारंटी नहीं है। ऐसे में नया करियर अपनाने की जगह अपने क्षेत्र की किसी दूसरी कंपनी में नौकरी तलाशना अधिक बेहतर होगा। 
स्व-आकलन करें
स्विच ओवर से पहले अपनी रुचियों और स्किल्स को जानें। जहां जाना चाहते हैं, उस क्षेत्र की छोटी-बड़ी कंपनियों के बारे में जानकारी जुटाएं। कंपनी की वेबसाइट देखें। नई खबरों से अपडेट रहें। वर्कशॉप और सेमिनार में भाग लें, लोगों से बात करके उस क्षेत्र विशेष की वास्तविक स्थिति को जानें।
रिसर्च है जरूरी
कई बार ऐसा होता है कि हमें दूसरी तरफ सब अच्छा ही अच्छा दिख रहा होता है। हो सकता है आपको भी अपनी योजना में सब कुछ ठीक ही लग रहा हो।  अत: नए क्षेत्र की अच्छाई और बुराई दोनों को जानें।
मजबूत इच्छाशक्ति
करियर स्विच करने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति का होना जरूरी है। आपको निर्णय लेने पड़ते हैं, साथ ही पुराने सेट-अप से बाहर निकलकर नए परिवेश के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करना पड़ता है। चुनौतियों का सामना करने के लिए भी तैयार रहें।
दोबारा छात्र बन जाएं
आजकल हर करियर से जुड़े स्पेशलाइज्ड कोर्स हैं।  यदि जरूरत हो तो दूसरे करियर में जाने से पहले उस कोर्स से जुड़ा स्पेशलाइज्ड कोर्स करने से परहेज न करें। इससे उस क्षेत्र की बारीकियों को समझ सकेंगे। यदि कोर्स नहीं करना है तो भी नया सीखने के लिए हमेशा तैयार रहें।
लॉन्ग टर्म विजन जरूरी
नए करियर में आप कहां तक जाना चाहते हैं, आपका लक्ष्य क्या है, उसे हासिल करने में कितना समय लगेगा, उस क्षेत्र में आपके प्रतियोगी कौन हैं, आपकी तरक्की की संभावनाएं कितनी हैं आदि बातों के संबंध में दीर्घकालिक रणनीति अवश्य बनाएं। आवश्यकता लगने पर अपने करियर बदलने संबंधी कोई फैसला लेने से पहले अपनी फील्ड से जुड़े सीनियर ओर शुभचिंतकों से सलाह-मशविरा कर लें, उनकी राय व संपर्क आपके काम आ सकते हैं।
छोटी, पर उपयोगी बातें
अवसर की पहचान करें, उस क्षेत्र की पत्रिकाओं और उभरती कंपनियों के बारे में जानें।
एक नोट लिखने का प्रयास करें कि किस तरह आप नए क्षेत्र में कैसे बेहतर कर सकते हैं।
नए क्षेत्र में अपने परिचितों, संपर्क व प्रभावी लोगों की सूची बनाएं। उनसे मिलें व इंडस्ट्री की जानकारी जुटाएं।

रविवार, 11 दिसंबर 2011

अर्धसैनिक बलों में एक लाख पद खाली

देश के सात अर्धसैनिक बलों में एक लाख से ज्यादा पद खाली पड़े हैं, जिसमें सीमा सुरक्षाबल के 25 हजार और केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के 17 हजार पद शामिल हैं। गृह मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक अर्धसैनिक बलों में खाली एक लाख आठ सौ 83 पदों में से कांस्टेबलों के 74816 जूनियर कमीशन अधिकारियों के 22016 और प्रथम श्रेणी अधिकारियों के 4051 पद शामिल हैं। भारत पाक सीमा और भारत-बांग्लादेश सीमा की सुरक्षा करने वाले सीमा सुरक्षाबल में 25674 पद खाली पड़े हैं जबकि माओवाद विरोधी उग्रवाद विरोधी जैसे मामलों में व्यस्त सीआरपीएफ  में 17019 पद रिक्त हैं। इसके अलावा भारत नेपाल सीमा और भारत भूटान सीमा की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सशस्त्र सीमाबल में 21316 और केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षाबल में 17320 पद खाली हैं। भारत तिब्बत सीमा पर तैनात भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल में 17388 जबकि उत्तर पूर्व में तैनात असम राइफ ल्स और विशेष कमांडो बल में क्रमश: 1585 और 581 पद रिक्त हैं। अगले दो वर्षों में इन सभी पदों के भरने की आशा है। गृह मंत्रालय ने पिछले तीन वर्षों के दौरान केन्द्रीय अर्धसैनिक बलों की क्षमता बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए जिसमें 36 नई बटालियन बनाना और 116 अतिरिक्त बटालियनों को मंजूरी शामिल है। इक्कीस और बटालियनों को तैयार करने की प्रक्रिया जारी है। एक बटालियन की क्षमता करीब एक हजार पुलिसकर्मियों की है। वर्ष 2009-10 और वर्ष 2010-11 में सात अर्धसैनिक बलों में कुल 95540 पुलिसकर्मियों की भर्ती हुई। वर्ष 2011-12 में कर्मचारी चयन आयोग के जरिए 92168 कांस्टेबलों की भर्ती का प्रस्ताव है। सत्रह नये प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किये जा रहे हैं जबकि 13 संस्थानों में सुधार तथा उन्हें संवर्धित किया जा रहा है।

जांबाजी का जज्बा भरता संस्थान

भारतीय सेना का अधिकारी होने का मतलब सिर्फ़ नौकरी करना नहीं होता बल्कि देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने का जज्बा लिये एक जांबाज सिपाही होना होता है युवाओं में यही जोश और जुनून पैदा करता है भारतीय सैन्य अकादमी आइएमए जिससे प्रशिक्षण प्राप्त कैडेट्स कई नाजुक मौकों पर दुश्मन के दांत खट्टे कर चुके हैं
1932 में ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस बने आइएमए के पहले कमांडेंट
1958 के गणतंत्र दिवस परेड में आइएमए कैडेट ने पहली बार भाग लिया
1974 में दाखिला लेने के लिए डिग्री स्तर की योग्यता जरूरी की गयी
भारतीय सैन्य अकादमी इंडियन मिलिट्री एकेडमी आइएमए की स्थापना का मकसद था सेना में भारतीय अधिकारियों की बढ़ती मांग को पूरा करना 19 वीं सदी के अंत तक ब्रिटिश सरकार में भारतीयों की भागीदारी की शुरुआत हो गयी थी गोपाल कृष्ण गोखले के सतत प्रयास के बाद 1912 में एक कमीशन की स्थापना की गयी ताकि भारतीयों को उचित भागदारी दी जा सके लार्ड कर्जन ने इंपीरियल कैडेट कोर्प की स्थापना की जिसमें केवल वैसे भारतीयों को तरजीह दी जाती थी जो अंग्रेजों के प्रति वफ़ादार थे इस कोर्प में राजघराने और जमींदारों को ही शामिल किया जाता था भारतीयों ने पहले विश्वयुद्ध के दौरान अपनी क्षमता साबित की1917 में मोंटेग चेम्सफ़ोर्ड प्लान लागू किया गया जिसके तहत भारतीयों को देश के प्रशासन में अधिक भागीदार बनाने पर जोर दिया गया था
सेना के भारतीयकरण की शुरुआत किंग कमीशन के अनुदान से हुई इसके तहत 31 विश्वस्त भारतीयों को ट्रेनिंग दी गयी जिसमें केएम करियप्पा शामिल थे करियप्पा बाद में पहले भारतीय सेना प्रमुख बने 1922 में भारतीय छात्रों को इंग्लैंड के मिल्रिटी कॉलेज में दाखिला देने से पहले शुरुआती ट्रेनिंग के लिए इंडियन मिल्रिटी कॉलेज की स्थापना की गयी उस दौर का भारतीय नेतृत्व भारतीय सेना के भारतीयकरण के लिए उठाये गये कदमों से संतुष्ट नहीं था इसके मद्देनजर तत्कालीन सेना प्रमुख लार्ड रावलिंग ने घोषणा की कि 8 इन्फैंट्री और कैवलरी यूनिट मुख्यत भारतीय अधिकारियों के अधीन होगा इसके बाद भारतीय सैंडर्स कमिटी का गठन किया गया कमिटी ने सिफ़ारिश की कि 1933 तक इंग्लैंड में मौजूद मिल्रिटी ट्रेनिंग कॉलेज की स्थापना भारत में की जाये हालांकि भारतीय नेताओं की लगातार मांग के बावजूद सेना के भारतीयकरण की गति काफ़ी धीमी थी दबाव बढ़ने पर भारत में ब्रिटिश सेना के प्रमुख जनरल सर फ़िलिप चेटवोड की अध्यक्षता में इंडियन मिल्रिटी कॉलेज कमिटी का गठन किया गया 1931 में इस कमिटी ने कॉलेज की स्थापना के लिए एक विस्तृत कार्ययोजना तैयार की ताकि प्रतिवर्ष 60 कमीशंड अधिकारी तैयार हो सकें इसके लिए देहरादून का चयन किया गया आखिरकार यह सपना 1932 में पूरा हुआ जब ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस को इंडियन मिल्रिटी एकेडमी का पहला कमांडेंट बनाया गया उन्होंने आठ महीने में इस संस्थान को तैयार किया और सितंबर 1932 में 40 कैडेट ट्रेनिंग के लिए पहुंचे इस एकेडमी का औपचारिक उद्घाटन फ़ील्ड मार्शल सर फ़िलिप चेटवुड ने किया यहां शुरुआत में 200 कैडेट को ट्रेनिंग देने की व्यवस्था थी जिसके तहत 40 कैडेट 6 महीने की ट्रेनिंग लेते थे आजादी के बाद ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह इसके पहले कमांडेंट बने
1974 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी में दाखिला लेने वाले कैडेट का रेगुलर कोर्स डिग्री लेवल का कर दिया गया और ट्रेनिंग की अवधि ढाई साल से घटाकर डेढ़ साल कर दी गयी इंडियन मिलिट्री एकेडमी आज भी सैन्य अधिकारियों की प्रतिभाशाली फ़ौज तैयार करने में पूरी शिद्दत से जुटा है इस संस्थान से निकले अधिकारियों ने सेना और देश की पूरी लगन से सेवा की है
समय के साथ बदलाव
शुरुआत में आइएमए में थल जल और वायु सेना तीनों विंग के अधिकारियों को ट्रेनिंग दी जाती थी लेकिन समय के साथ बदलती चुनौतियों के मद्देनजर नेशनल डिफेंस एकेडमी की स्थापना की गयी आइएमए में एनडीए आर्मी कैडेट कॉलेज एवं अन्य कॉलेजों के ग्रेजुएट पहुंचते हैं ट्रेनिंग का मकसद कैडेट को पहले जेंटलमैन और फ़िर अधिकारी बनाना होता है यहां कैडेट को सिखाया जाता है पहले देश की सुरक्षा फ़िर अपनी सुरक्षा ट्रेनिंग में कैडेट को यह भी बताया जाता है कि आप अपनी सहूलियत को अंतिम पायदान पर रखें
ट्रेनिंग का मकसद कैडेट में नेतृत्व का गुण और आत्मविश्वास पैदा करना होता है आइएमए का पूरा माहौल ट्रेनिंग को पूरे जोश के साथ खत्म कराने वाला होता है ट्रेनिंग खत्म होने के बाद पासिंग आउट परेड कैडेट को एक पूर्ण इंसान में तब्दील कर देता है यही कैडेट जंग के मैदान में जी जान से देश की रक्षा करते हैं
सेना में अधिकारियों की कमी
हालांकि विश्व की चौथी सबसे बड़ी सेना पिछले कुछ वर्षो से अधिकारियों की कमी से जूझ रही है खासकर थल सेना अधिकारियों की कमी का असर सेना की क्षमता पर पड़ रहा है सेना में अधिकारियों के कमी की वजह शहरी युवाओं में सेना को कॅरियर बनाने के प्रति अनिच्छा होना है स्थिति ऐसी हो गयी है कि आइएमए जैसे संस्थान की सीटों के लायक भी युवा नहीं मिल पा रहे हैं

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

नौकरियां ही नौकरियां

अगले साल ३ लाख नए रोजगार
अगले साल जनवरी-मार्च तिमाही में करीब ३ लाख नए रोजगार मिलेंगे। इनमें से ज्यादातर नौकरियां आईटी, बीपीओ, हेल्थकेयर, एजुकेशन, बैंकिंग-फाइनैंशल सर्विसेज, इंश्योरेंस (बीएफएसआई) और एनर्जी सेक्टर में मिलेंगी। जनवरी-मार्च २०११ में संगठित क्षेत्र में करीब ३.९९ लाख नए रोजगार पैदा हुए थे। ऑटो, कंस्ट्रक्शन, इंजीनियरिंग, एफएमसीजी और टेलिकॉम सेक्टर भर्तियों को लेकर सावधानी बरत सकते हैं। आईटी उद्योग की संस्था नैस्कॉम का कहना है कि सिर्फ आईटी-बीपीओ में अगले साल २.५ लोगों को रोजगार मिलेगा। इनमें से ज्यादातर नौकरियां अगले साल मार्च तक मिलेंगी। बेंगलुरु की प्लेसमेंट ऐंड सर्च फर्म आईकया ह्यूमन कैपिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर अजीत आइजैक का कहना है, 'आर्थिक सुस्ती का रोजगार बाजार पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। हमारे ज्यादातर क्लाइंट भर्ती योजना पर आगे बढ़ रहे हैं।' नैस्कॉम के प्रेजिडेंट सोम मित्तल ने कहा कि छोटे शहरों में आईटी उद्योग का विस्तार हो रहा है। ज्यादातर नई नौकरियां वहीं से आएंगी। भारतीय आईटी-बीपीओ कंपनियां जो भर्तियां करती हैं, उनमें ६५-७० फीसदी फ्रेशर होते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी भारतीय इकाइयों में ९० फीसदी तक फ्रेशर रखती हैं। फिक्की के प्रेजिडेंट हर्ष मारीवाला ने कहा, 'जीडीपी ग्रोथ में कमी आने की आशंका को देखते हुए सरकार से आर्थिक सुधार जारी रखने की उम्मीद है। इससे निवेश बढ़ सकता है। इससे नए रोजगार पैदा होंगे और अच्छे टैलेंट की होड़ तेज हो सकती है।' मारीवाला एफएमसीजी कंपनी मैरिको के मैनेजिंग डायरेक्टर भी हैं। मा फोई रैंडस्टैड्स के मुताबिक, २०१२ के पहले तीन महीनों में इस साल की पहली तिमाही जितनी नौकरियां मिल सकती हैं। कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ ई बालाजी ने कहा, 'इस साल मार्केट स्थिर रहने वाला है। वैश्विक हालात को देखें तो यह एक तरह से बुरी खबर नहीं है।' जनवरी-मार्च २०१० में संगठित क्षेत्र में २.५ लाख नई नौकरियां मिली थीं। हालांकि, इस साल के पहले तीन महीनों में ३.९९ लाख नए रोजगार पैदा हुए। बालाजी का कहना है, 'इस साल की शुरुआत में सेंटीमेंट बहुत अच्छा था। हालांकि अप्रैल-मई में यूरोपीय संकट के चलते सेंटीमेंट खराब हो गया।' एग्जेक्युटिव सर्च फर्म ग्लोबलहंट के डायरेक्टर सुनील गोयल ने बताया कि इंफ्रास्ट्रक्चर, पावर-एनर्जी, ऑयल और गैस, एग्रो-बिजनेस जैसे क्षेत्रों में नए रोजगार पैदा हो रहे हैं। वहीं, बालाजी का कहना है, 'बड़ी आईटी, आईटीईएस और एनर्जी कंपनियां खाली पदों को भरने के लिए आवेदन मंगा रही हैं। एक और दमदार क्षेत्र हेल्थकेयर है।' आईटी के बाद नए रोजगार के लिहाज से दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र हेल्थकेयर होगा। फोर्टिस, अपोलो, मैक्स और मणिपाल जैसी हॉस्पिटल चेन देश भर में बिस्तरों की संख्या बढ़ा रही हैं। फोटिर्स हेल्थकेयर के ग्लोबल सीईओ विशाल बाली ने बताया, 'प्राइवेट हेल्थकेयर सेक्टर में हर तिमाही में ७,०००-८,००० बिस्तर जुड़ रहे हैं। एक बिस्तर जुड़ने से औसतन चार से पांच रोजगार मिलते हैं। अगली तिमाही में निजी अस्पताल ३५,००० नए रोजगार दे सकते हैं।'

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

बैंकों में नौकरियों की बहार,

४५ हजार लोग रखे जाएंगे
पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (यूबीआई) बड़े पैमाने पर नए कर्मचारियों की भर्ती करने की तैयारी में हैं। ये दोनों सरकारी बैंक रिटायरमेंट की वजह से खाली हुए पदों को भरने और मजबूत प्रतिस्पर्धा के लिए भर्तियां कर रहे हैं। दोनों बैंक अगली कुछ तिमाही में संयुक्त रूप से करीब २१,५०० कर्मचारियों की भर्ती की प्रक्रिया में हैं। एक अधिकारी ने बताया कि दिल्ली का पंजाब नेशनल बैंक अकेले १०,५०० लोगों की भर्ती कर रहा है। भर्ती किए जाने वाले कर्मचारियों की यह संख्या इस साल अप्रैल से अब तक रिटायर हुए लोगों की तुलना में दोगुने से ज्यादा है। इंडस्ट्री से जुड़े सूत्रों का कहना है कि चालू वित्त वर्ष में करीब ४५,००० लोग सरकारी बैंकिंग क्षेत्र से जुड़ेंगे। इन पदों का बड़ा हिस्सा इंस्टिट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सनल सेलेक्शन (आईबीपीएस) द्वारा आयोजित लिखित परीक्षा में चयनित छात्रों के द्वारा भरा जाएगा।
कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया को आसान बनाने की खातिर भारतीय स्टेट बैंक और इसके सहयोगी बैंकों को छोड़कर सभी सार्वजनिक बैंकों ने आईबीपीएस को लिखित परीक्षा आयोजित करने की इजाजत दे दी थी। पीएनबी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर के. आर. कामत ने ईटी बताया कि उनका बैंक इस वित्त वर्ष में करीब ६,५०० क्लर्क और ४,००० अधिकारियों की नियुक्ति करने जा रहा है। ३,८०० क्लर्क की भर्ती पहले ही कर ली गई है। उन्होंने कहा कि हम बाकी के लोगों की भर्तियां कॉमन सेलेक्शन टेस्ट से करेंगे।
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के प्रमुख एम. वी. नायर ने बताया कि सितंबर २०१२ तक हमारी १०,००० कर्मचारियों की भर्ती करने की योजना है। आईबीपीएस साल में दो बार लिखित परीक्षा का आयोजन करेगी और परीक्षा में बैठने वाले प्रत्येक छात्र को एक स्कोर दिया जाएगा। यह स्कोर जारी होने की तारीख से लेकर एक साल तक वैध होगा। हालांकि, बैंक अलग अलग कट ऑफ मार्क तय कर सकते हैं और वे वैध स्कोर कार्ड वाले प्रतिभागियों से आवेदन आमंत्रित करेंगे।
आईबीपीएस के डायरेक्टर एम. बालचंद्रन का कहना है, ' नया सिस्टम पहले की व्यवस्था की तुलना में ज्यादा बेहतर और पारदर्शी है। पुराने सिस्टम में प्रत्येक बैंक भर्तियों के लिए अलग से टेस्ट का आयोजन करते हैं, जिससे प्रतिभागियों का काफी दिक्कत होती थी। '
बैंक ऑफ बड़ौदा के एग्जेक्युटिव डायरेक्टर आर. के. बख्शी ने बताया कि उनके बैंक की योजना मार्च २०१२ तक २,००० अधिकारी और इतनी ही संख्या में क्लर्कों की भर्ती करने की योजना है। बैंक ने इस वित्त वर्ष में पहले ही १,४०० अधिकारियों को नामांकन कर लिया है और बाकी के अधिकारियों का चयन सफल अभ्यर्थियों में से किया जाएगा।
इलाहाबाद बैंक की १,२०० अधिकारियों की भर्ती करने की योजना है, जबकि यूको बैंक चालू वित्त वर्ष में १,१०० अधिकारियों को एनरॉल करना चाहता है। दोनों ही बैंक १,०००-१,००० क्लर्कों की भर्ती करेंगे। इलाहाबाद बैंक के एग्जेक्युटिव डायरेक्टर देबब्रत सरकार ने बताया, ' आईबीपीएस के सफल प्रतिभागियों के अलावा हम भर्तियों के लिए कैंपस रिक्रूटमेंट भी करेंगे। '
बैंक ऑफ महाराष्ट्र के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर ए . एस . भट्टाचार्य ने कहा कि उनके बैंक की १,२०० अधिकारियों और ६७० क्लर्कों को भर्ती करने की योजना है।

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

ट्रैक्टर की मरम्मत करेंगी महिलाएं

उत्तर प्रदेश सरकार ने गरीब तबके की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने और स्वरोजगार को अपनाने के लिए एक विशेष योजना चलायी है, जिसके तहत उन्हें मोबाइल और ट्रैक्टर की मरम्मत करना सिखाया जायेगा. राज्य के हर जिले में महिलाएं खेती- बाड़ी में ही पुरुषों का सहयोग करती हैं.लेकिन सरकार का प्रयास है कि कृषि में सहयोग करनेवाली महिलाओं को ट्रैक्टर मैकेनिक का कार्य भी सिखाया जाये, ताकि समय आने पर वे उसेठीक कर सकें या यथासंभव उससे अपना रोजगार भी चला सकें. राज्य सरकार ने इसका जिम्मा अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम लिमिटेड को सौंपा है.
मोबाइल के बढ़ते चलन का देखते हुए सरकार का प्रयास है कि इसकी मरम्मत के काम में महिलाओं को भी शामिल किया जाये. मोबाइल के बढ़ते प्रचलन के कारण आज हर गली चौराहे पर इसकी मरम्मत को लेकर रोजगार सृजित हो रहे हैं. ऐसे में अगर महिलाएं इसकी मरम्मत की कला में पारंगत हो जायें तो स्व रोजगार करके अपना परिवार चला सकती हैं. इस खबर से महिलाओं में अच्छा-खासा उत्साह है. महिलाएं स्व रोजगार से अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हैं.

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

बीमा कंपनियों ने दी ५,४०० नौकरियां

देश के जीवन बीमा उद्योग ने इस साल ३० सितंबर को समाप्त छमाही में ५४०० नये कर्मचारियों की नियुक्ति की तथा २६,००० नए एजेंट जोड़े। हालांकि इस दौरान बीमा कंपनियों की शाखाओं की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। बीमा कंपनियों की फिलहाल ११,४४६ शाखाएं है। बीमा कंपनियों के संगठन लाइफ इंश्यूरेंस काउंसिल द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक २०१०-११ में स्थिरता के बाद वित्त वर्ष २०११-१२ की प्रथम छह माह में प्रीमियम संग्रह में १७ फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह ७३,५७५ करोड़ रुपये हो गया। हालांकि आलोच्य अवधि के दौरान जीवन बीमा कंपनियों द्वारा संग्रहित कुल प्रीमियम संग्रह में २ फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और यह एक वर्ष पूर्व इसी अवधि के१,२५,१७९ करोड़ रुपये से घटकर १,२२,६६१ करोड़ रुपये रह गई। यह गिरावट नये व्यावसायिक प्रीमियम संग्रह में कमी की वजह से आई। इस काउंसिल में सरकारी क्षेत्र की कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम सहित कुल २४ कंपनियां सदस्य है।

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

सफ़लता की कहानियां पढ़ना ही काफ़ी नहीं

तेरह वर्ष की उम्र में मैसचुसेट इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में नामांकित हो चुके थे गोदरेज ग्रुप के चेयरमैन आदी गोदरेज बाद में उन्होंने एमआइटी स्लोन स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट,कैंब्रिज यूनाइटेड स्टेट्स से एमबीए किया.आदी ने गोदरेज ग्रुप स्थापित नहीं किया था. यह उनका पारिवारिक व्यवसाय था, लेकिन गोदरेज ग्रुप को नयी ऊंचाई तक पहुंचाने में आदी का ही नाम लिया जाता है. एमबीए की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अपने पारिवारिक व्यवसाय में कदम रखने को प्राथमिकता दी. पारिवारिक व्यवसाय में आने के बाद उन्होंने सबसे पहले उसका आधुनिकीकरण कर उसे व्यवस्थित किया. इसके बाद उन्होंने सारी सीमाओं को तोड़ते हुए अपने कदम आगे बढ़ाने शुरू किये. आदी के नेतृत्व में ही गोदरेज भारत में वर्ल्ड वाइल्डलाइफ़ फ़ंड का मुख्य समर्थक बना था. उन्होंने कंपनी के कर्मचारियों के बच्चों के लिए स्कूल खुलवाया जिससे उन्हें अपने बच्चों के भविष्य की चिंता न करनी पड़े और वे अपना सौ प्रतिशत कंपनी को दे सकें.यह उनकी प्रभावी और प्रसंशनीय रणनीति मानी जाती है. वे कहते हैं कि उनके अंदर साधारण परिवार की परवरिश के गुण उनकी मां की देन थी, जिसके कारण वे अपने जीवन में बड़े कामों को करने में सफ़ल हो पाये. आदी कहते हैं ष्मेरी मां स्कूल शिक्षिका थीं और उन्होंने मुझे जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाया, वह पाठ है दीनता और नम्रता का.
आदी गोदरेज का मानना है कि काम किसी भी क्षेत्र में करें, सफ़लता किसी भी क्षेत्र में हासिल करनी हो, उसके लिए जरूरी है अपनी फ़िटनेस पर पूरा ध्यान देना, खुद को काम में व्यस्त रखा जाये तो सफ़लता हासिल करना आसान हो जाता है.
वे कहते हैं ष्मुझे लगता है कि युवाओं के विचारों को हमेशा तवज्जो देनी चाहिए क्योंकि उन्हीं से अनोखे और नये विचार मिल सकते हैं. इन विचारों को अनुभवों के साथ मिलाने से ही नवरचना होती है. आदी का मानना है कि आप अपने कर्मचारियों के साथ जितने खुले होंगे, काम के लिए उन्हें उतना ही प्रोत्साहित कर पायेंगे. इसीलिए गोदरेज ग्रुप के ऑफ़िस में ओपन डोर पॉलिसी को अपनाया जाता है. अगर ऑफ़िस में सीनियर्स समय पर नहीं होंगे, तो जूनियर में भी लेट लतीफ़ी की आदत होना तय है, अगर कोई जूनियर असाधारण है तो भले वह समय पर आ जाये इसलिए वे हमेशा सुबह समय पर ऑफ़िस पहुंच जाते हैं.
आदी कहते हैं प्रोफ़ेशनलिज्म किसी का विशेष गुण नहीं है महत्वपूर्ण यह है कि सभी लोग सफ़लता की कहानियों को पढ़ें समङों लेकिन केवल इन कहानियों को पढ़ने से ही काम नहीं चलता, इसके बाद मुकाम हासिल करने के लिए नया ढंग अपनाएं.