गुरुवार, 12 जुलाई 2012

स्नातक नहीं पैदल सिपाहियों की फौज होगी

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले आठ वर्षों में भारत में स्नातकों की संख्या अमरीकी स्नातकों से ज्यादा होगी ये बात उत्साहवर्धक लगती है लेकिन शिक्षाविद इस रुझान से इत्तेफाक नहीं रखते हैं ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनोमिक कोऑपरेशन एंड डेवेलपमेंट यानी ओईसीडी का कहना है कि साल 2020 तक स्नातकों की संख्या के हिसाब से चीन पहले भारत दूसरे और अमरीका तीसरे स्थान पर होगालेकिन भारत के मामले में विशेषज्ञ इसे महज संख्या बताते हैं जिसमें उनके मुताबिक गुणवत्ता नहीं होगी
आबादी का पहलू
जानेमाने शिक्षाविद अनिल सदगोपाल कहते हैं कि पूरी दुनिया की आबादी में अमरीका की आबादी का प्रतिशत लगभग साढ़े चार है जबकि भारत की आबादी सत्रह फीसद है इसलिए जाहिर है कि भारत में शिक्षा की स्थिति बेहतर होती है तो वो अमरीका से आगे निकल जाएगावे कहते हैं इस रिपोर्ट में संख्या की बात की गई है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता पर कुछ नहीं कहा गया है सदगोपाल सवाल उठाते हैंउच्च शिक्षा का मकसद क्या बेहतर समाज का निर्माण करना है या आप केवल वैश्विक बाजार और पूंजी के लिए पैदल सिपाहियों की फौज खड़ी कर रहे हैं पश्चिम के मुकाबले हम फिर पिछड़ेंगे संख्या हमारी ज्यादा हो सकती है लेकिन पश्चिम में जो शोध होगा वो हमसे कहीं आगे होगाभारत में स्नातकों की संख्या बढ़ने की वजह के बारे में पूछे जाने पर अनिल सदगोपाल कहते हैंश्श्गांव में खेती आधारित रोजगार को बड़ी तेजी से खत्म किया गया है वहां की आबादी लाचार होकर शहरों की ओर आई तो उनके बच्चों को भी कुछ करना होगा श्श्यही वजह है कि वो कैसी भी घटिया डिग्री क्यों न होए लेने की कोशिश करेंगेण् इंजीनियरिंग और मेडिकल के क्षेत्र में भी यही हाल हैण् इन लोगों के लिए तो नौकरी भी नहीं है
निजी कॉलेजों की दशा बताते हुए अनिल सदगोपाल कहते हैं कि यहां अब कोई कंपनी प्लेसमेंट के लिए भी नहीं आती है बच्चों से प्लेसमेंट के नाम पर फीस ली जाती है और कंपनियों से कहा जाता है कि वे आकर प्लेसमेंट का नाटक करें
एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक डॉक्टर जगमोहन सिंह राजपूत का कहना है कि भारत में सिर्फ स्नातकों की संख्या बढ़ने से बात नहीं बनने वाली हैवे कहते हैंए श्श्मेरे लिए इस बात का कोई महत्व नहीं होगा कि हम नंबर एक पर होंगे या नंबर दो परए हमें ये देखना होगा कि हमारे शोध की गुणवत्ता कैसी है हमारे कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का स्तर कैसा हैवे कहते हैं कि भारत में अब सब अपने लड़केलड़कियों को पढ़ा रहे हैं लेकिन बहुत से बच्चे थोड़ाबहुत पढ़लिखकर बैठ जाते हैं क्योंकि इस शिक्षा के साथ कौशल नहीं जुड़ा होता है जब तक शिक्षा के साथ कौशल नहीं होगा तब तक स्थिति सुधरने वाली नहीं है
शिक्षा.संबंधी नीति और इस नीति को बनाने वालों पर सवालिया निशान लगाते हुए वे कहते हैंश्श्जो लोग शिक्षा नीति बनाते हैं उनके बच्चे तो सरकारी स्कूल में कभी गए नहीं होते इन लोगों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़े होते तो सरकारी स्कूलों की हालत इतनी खराब नहीं होती
वे कहते हैं कि भारत के 70 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं जिन्हें अपेक्षित शिक्षा नहीं मिलती हैए अभी सिर्फ 30 प्रतिशत बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल रही है और यही बच्चे दुनियाभर में भारत का नाम रौशन कर रहे हैंवे कहते हैंए श्श्यदि भारत के 80 प्रतिशत बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाते तो देश की ज्ञान.सम्पदा दुनिया में सबसे ज्यादा होती

३५ हजार नौ·रियां

३५ हजार नौ·रियां
- आईटी ·ंपनी इन्फोसिस नई भर्तियां ·रने ·े लिए प्रतिबद्ध

देश ·ी प्रमुख आईटी ·ंपनी इन्फोसिस चालू वित्त वर्ष में 35,000 नई नियुक्तियों ·ी अपनी योजना पर ·ायम है। हालां·ि, ·ंपनी ने ·हा ·ि फिलहाल उस·ा वेतनवृद्धि ·ा ·ोई विचार नहीं है। इन्फोसिस ने अनिश्चित वैश्वि· आर्थि· वृद्धि ·े माहौल तथा वेतन बढ़ोतरी पर रो· ·े बीच नियुक्ति योजना ·ो आगे बढ़ाने ·ा फैसला ·िया है। ·ंपनी ·ा इरादा अपने बीपीओ परिचालन ·े लिए 13,000 भर्तियां ·रने ·ा है।
इन्फोसिस ·े मुख्य वित्त अधि·ारी वी बाला·ृष्णन ने गुरुवार ·ो ·ंपनी ·े तिमाही नतीजों ·ी घोषणा ·रते हुए ·हा ·ि इस साल हम 35,000 नए ·र्मचारी जोडऩे जा रहे हैं। उन्होंने बताया ·ि इनमें से 13,000 भर्तियां बीपीओ परिचालन ·े लिए ·ी जाएंगी।

वेतन वृद्धि पर ब्रे·
·ंपनी ने स्पष्ट ·िया है ·ि फिलहाल वह वेतनवृद्धि पर विचार नहीं ·र रही है। बाला·ृष्णन ने बताया ·ि ·ंपनी ने 20,000 ·र्मचारियों ·ो पदोन्नति दी है, जो पहली जुलाई से प्रभावी हो गई है। 30 जून त· ·ंपनी ·े ·र्मचारियों ·ी संख्या 1,51,151 थी। इन्फोसिस ·े मुख्य ·ार्य·ारी अधि·ारी और प्रबंध निदेश· एसडी शिब्बूलाल ने ·हा ·ि इस साल भी हम साल ·े मध्य में वेतनवृद्धि पर विचार ·र रहे हैं।

यूरोप में 45 लाख नौ·रियों पर खतरा
न्यूयॉर्·. यूरोप में लम्बे समय से जारी आर्थि· सुस्ती ·े ·ारण अगले चार साल में 45 लाख नौ·रियां जा स·ती हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ·ी रिपोर्ट ·े अनुसार, सं·ट ·े समाधान और ·र्मचारियों तथा उद्यमों ·ा विश्वास व समर्थन हासिल ·रने ·े लिए ·ोई ठोस नीति अपनाए बगैर यूरोप में सुधारों ·ो लागू ·रना ·ठिन होगा, जो क्षेत्र में स्थिरता एवं वि·ास ·े लिए बेहद आवश्य· है।

नौ·री बदलने ·ी फिरा· में
नई दिल्ली. अपनी ·ंपनी ·े प्रति निष्ठा ·े मामले में भारतीय ·र्मचारी पिछड़ रहे हैं। वैश्वि· प्रबंधन सलाह·ार हे ग्रुप ·े सर्वेक्षण ·े मुताबि· ·रीब 33 फीसदी ·र्मचारी दो साल से भी ·म में नौ·री बदलने ·ी योजना बना रहे हैं। वहीं यदि वैश्वि· स्तर पर बात ·ी जाए, तो पांच में से सिर्फ ए· ·र्मचारी नौ·री बदलने ·ी योजना बना रहा है। हे ग्रुप इंडिया ·े प्रबंध निदेश· गौरव लाहिरी ने ·हा, यह ·ाफी चिंताजन· है ·ि भारतीय ·ंपनियों में सिर्फ 40 फीसद ·र्मचारी ही ऐसे हैं, जो अगले पांच साल में अपने संगठन ·े प्रति निष्ठावन बने रहने ·ो तैयार हैं।

शनिवार, 7 जुलाई 2012

चार वर्षीय पाठ्यक्रम

कुछ लोगों का मानना है कि देश में स्नातक पाठ्यक्रम चार वर्षों का कर दिया जाना चाहिए, लेकिन जैसा कि हर नई बहस के साथ होता है इस चर्चा के बाद शिक्षकों और माता-पिता के बीच ऐसे कदम के फायदों को लेकर बहस मुबाहिसे की शुरुआत हो चुकी है। पहले मैं अपनी स्थिति स्पष्ट कर दूं। मुझे इस बात की तगड़ी अनुभूति होती है कि चार वर्षीय पाठ्यक्रम तीन वर्ष की पढ़ाई के मौजूदा पाठ्यक्रम से कई गुना बेहतर है। मैं यह भी स्पष्ट कर देता हूं कि मेरे विचार से चार वर्षीय पाठ्यक्रम को इस तरह नहीं देखा जाना चाहिए मानो बच्चों को अपने विशेषज्ञता वाले विषय में एक साल और पढ़ाई करनी पड़ेगी। मेरे खयाल से अतिरिक्त वर्ष बच्चों को यह तय करने का अवसर देगा कि वे आखिर क्या करना चाहते हैं। इसलिए मेरे लिए तो सही सवाल यह होगा कि क्या यह अतिरिक्त वर्ष बच्चों को उस समाज का उत्पादक सदस्य बनाने में मदद करेगा जिसमें उनको रहना है और अपना योगदान देना है।
बच्चों के किसी खास विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के पीछे मुख्य रूप से दो वजहें होती हैं: (अ) बड़ों का दबाव और माता-पिता का सुझाव या उनका आदेश (ब) उस विषय में दाखिला नहीं मिल पाना जिसमें उनके घर के बड़े अथवा उनके माता-पिता दाखिला दिलाना चाहते थे। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मेरे खयाल से १६ साल के एक बच्चे के लिए यह तय कर पाना थोड़ा मुश्किल है कि आखिर उसका करियर क्या हो?  इस उम्र के किसी बच्चे या बच्ची को कक्षा ११ में यह निर्णय लेना पड़ता है कि वह वाणिज्य की पढ़ाई करना चाहता है या विज्ञान की। अगर वह विज्ञान का चयन करता है तो दर्शन शास्त्र में पीएचडी की डिग्री ले सकता है लेकिन अगर वह वाणिज्य का चयन करता है तो यह काम मुश्किल होगा। शायद तब इसके लिए उसे विदेश जाकर किसी उच्च शिक्षा संस्थान में दाखिला लेना पड़े। इसी तरह, कक्षा ११ में मानवशास्त्र का चयन करने वाले किसी बच्चे के लिए बाद में भौतिकी की पढ़ाई कर पाना बेहद मुश्किल होगा। मैं यह मानने से इनकार करता हूं कि १६ साल का कोई बच्चा यह तय कर सकता है कि उसके लिए दर्शन शास्त्र और भौतिकी में से कौन सा विषय बेहतर होगा। अगर हम वाकई ऐसा सोचते हैं कि उस उम्र में बच्चे अपने करियर की दिशा निर्धारित कर पाने की क्षमता रखते हैं तो फिर उसी सोच के आधार पर हमें बच्चों को मतदान करने, विवाह करने, शराब पीने, वाहन चलाने और ऐसे ही तमाम दूसरे काम करने की अनुमति भी दे देनी चाहिए। अगर हम यह सब करने के इच्छुक नहीं है तो फिर पहले वाले पर इस कदर जोर कैसे दे सकते हैं?
मेर लिए चार साल के स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल किया गया एक अतिरिक्त वर्ष कुछ उन बातों के लिए होगा जिन्हें हम उस अतिरिक्त वर्ष में अंजाम दे सकते हैं। अगर यह चार वर्षीय पाठ्यक्रम मेरे नजरिये से तैयार किया जाए तो उसमें बच्चे मनचाहे विषयों में अध्ययन कर सकेंगे। उदाहरण के लिए वे भौतिकी और दर्शन, अर्थशास्त्र और कला आदि की साथ-साथ पढ़ाई कर सकेंगे। इन तमाम पाठ्यक्रमों में पढ़ाई के लिए शुरुआती स्तर पर विषय का थोड़ा ज्ञान तो आवश्यक है ही। निचले दर्जे के स्नातक पाठ्यक्रमों में पढ़ाई का स्तर उससे अधिक न होना जितना बच्चा कक्षा १० में पढ़कर निकलता है। एक वर्ष का अतिरिक्त समय बच्चों को अपनी पसंद और नापसंद तय करने का समय देगा। इस आधार पर वह यह बात ज्यादा बेहतर तरीके से तय कर पाएगा कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं? इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं, किसी बच्चे को भौतिकी में विशेषज्ञता इसलिए नहीं करनी चाहिए क्योंकि उसे पता ही नहीं है कि दर्शन क्या है। बल्कि उसे दर्शन की मूलभूत जानकारियां हासिल करने के बाद ही यह तय करना चाहिए कि वह भौतिकी पढऩा चाहता है अथवा नहीं। यहां दो स्पष्टीकरण देना उचित रहेगा। पहला, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि युवाओं में कम उम्र में अपने अनुकूल विषय का चयन करने की काबिलियत नहीं होती है। इसके बजाय मेंरा कहने का मतलब यह है कि अधिकांश बच्चे ऐसा इसलिए भी नहीं कर पाते क्योंकि कॉलेज में उनको जो विषय पढऩे के लिए मिलते हैं उनमें से अधिकांश विद्यालय स्तर पर होते ही नहीं हैं। दूसरी बात, कहने का तात्पर्य यह कि माता-पिता को ४ वर्षीय पाठ्यक्रम में भी बच्चों पर अपनी पसंद थोपनी नहीं चाहिए बल्कि उनको अपना नजरिया तय करने का मौका देना चाहिए।
उच्च शिक्षा का एक बहुत बड़ा लक्ष्य है बड़ी संख्या में ऐसे लोग तैयार करना जो सामाजिक समस्याएं हल करने में मददगार साबित हो सकें। इसलिए उनका प्रशिक्षण केवल किसी खास विषय में विशेषज्ञता कायम करने के लिए नहीं होता है बल्कि उसका संबंध उनके भीतर प्रेरणा के स्तर से भी होता है। हमारे समाज में सबके लिए बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करना एक ज्वलंत मुद्दा है। इसके लिए न केवल चिकित्सकीय विशेषज्ञता की आवश्यकता होगी बल्कि अस्पतालों के प्रबंधन और जन स्वास्थ्य आदि के जानकार लोगों की भी उतनी ही जरूरत होगी। बेहतर चिकित्सकीय उपकरण तैयार करने के लिए जहां इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की दरकार होगी वहीं इन्हें उचित मूल्य पर तैयार करने की खातिर अर्थशास्त्रियों और उद्यमियों की आवश्यकता होगी। ऐसे में जबकि किसी एक समस्या को हल करने के लिए सभी लोगों को एकसाथ मिलकर काम करना पड़े तो ऐसे में एक व्यक्ति की केवल एक विषय में विशेषज्ञता का विचार कोई बहुत अच्छा विचार नहीं है। हमारी मौजूदा तीन वर्षीय पाठ्यक्रम वाली व्यवस्था में किसी चिकित्सक को अर्थशास्त्र की कार्यप्रणाली के बारे में शायद ही कोई जानकारी हो। अर्थशास्त्रियों के साथ भी ठीक यही बात है।
लोग चार वर्षीय पाठ्यक्रम को लेकर जिस तरह सोच रहे हैं उससे मैं चिंतित हूं। याद रखिए, मेरा मुख्य लक्ष्य यह है कि छात्र अधिक सूचित होकर कोई निर्णय लें। मान लीजिए कल को कोई भौतिकीविद अचानक संगीत को अपनाना चाहे तो क्या होगा? या फिर कोई दर्शनशास्त्री भौतिकी के नियमों को समझने की इच्छा रखे तो? मुझे डर है कि जिस तरह से इन तमाम बातों पर चर्चा हो रही है वैसे तो हम चार वर्षीय पाठ्यक्रम के पीछे की मूल भावना को ही दरकिनार कर देंगे। कल्पना कीजिए आपके अंकल जो पेशे से वकील हैं उनका बेटा वकालत के अलावा कुछ और पढ़ रहा हो और आप भी अपने मां-बाप की तरह अर्थशास्त्र की पढ़ाई नहीं कर रहे हों तो यह बात सोचना कितना रोमांचित करता है। उसके लिए जरूरी है कि आप खुद यह निर्णय लें कि आप क्या पढऩा चाहते हैं। अपने माता-पिता पर यह निर्णय नहीं छोड़ें। इस काम में चार वर्ष का स्नातक पाठ्यक्रम आपकी मदद करेगा।
यूपी में लाख सिपाही पदों पर होगी भर्ती
सिपाही बनने  इच्छु युवाओं लिए खुशखबरी। उत्तर प्रदेश में जल्द ही लाख सिपाहियों भर्ती जाएगी। राज्य सरार ने ·नून व्यवस्था दुरुस्त ·रने ·े लिए पुलिस ·ो नया ·लेवर देने ·ा फैसला भी ·िया है।  प्रदेश में 35 हजार नए सिपाही हाल ही में थानों में तैनात ·िए गए हैं। ए· साल में अतिरिक्त ए· लाख सिपाही तैनात हो जाएंगे।

मंगलवार, 8 मई 2012

रोजगार देने में भी एप्पल अव्वल

एप्पल कंपनी सिर्फ स्टीव जॉब्स के सपने और अपने उत्पाद की वजह से ही खास नहीं हैण् कंपनी का मानना है कि वह रोजगार मुहैया कराने के मामले में भी अन्य कंपनियों से आगे है गौरतलब है कि 1976 में एप्पल कंपनी की स्थापना हुई थी तब से लेकर अभी तक एप्पल कंप्यूटर 23430 नौकरियों का सृजन कर चुका है इतना ही नहीं एप्पल का दावा है कि उसकी मदद से या फिर अन्य तरीकों से अमेरिका में लगभग 514000 नौकरियां लोगों को मिली हैं इनमें से 304000 नौकरियां पुरानी अर्थव्यवस्था से जुड़ी थीं मसलन इंजीनियरिंग उत्पादन और परिवहन हालांकि बिजनेस विश्लेषकों का मानना है कि जहां एप्पल की वजह से नयी नौकरियों का सृजन हुआ है तो रोजगार के कुछ अवसर बंद भी हुए हैं उनके मुताबिक एप्पल के बाजार में आने से उसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को जो घाटा हुआए उस कारण उन्हें कई जगह खर्च में कटौती करनी पड़ी
इसका सीधा असर लोगों की नौकरियों पर पड़ा एप्पल के कारण मोटोरोला कोडक और हव्लेट्ट पाकर्ड जैसी कंपनियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा इसके बावजूद एप्पल का कहना है कि उसने नयी नौकरियों के सृजन में भी अहम भूमिका निभायी है एक आंकड़े के मुताबिक एप्पल में फिलहाल कार्यरत कर्मचारियों की संख्या लगभग 70000 है आने वाले समय में यह संख्या बढ़ने की उम्मीद भी जतायी गयी है

रविवार, 1 अप्रैल 2012

हर साल 50 लाख जॉब्स आधी सीटें खाली

पर्यटन ने युवाओं के लिए काम के बेशुमार मौके पैदा कर दिए हैं। वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म काउंसिल के अनुसार 2018 तक भारत दुनिया का सबसे सक्रिय टूरिस्ट स्पॉट होगा। लेकिन देश के शिक्षण संस्थान पर्यटन मार्केट की इस हलचल से हैं बेखबर। ज्यादातर कोर्स हैं पुराने और अप्रासंगिक। इनमें करीब आधी सीटें खाली हैं। युवाओं में इस सेक्टर में रोजगार के प्रति जागरूकता की कमी भी है।
रोजगार में टूरिज्म ने आईटी को पीछे छोड़ा
नई नौकरियों की संभावनाओं के लिहाज से पर्यटन उद्योग ने आईटी सेक्टर को पीछे छोड़ दिया है। केंद्रीय पर्यटन मंत्री सुबोध कांत सहाय ने कहा है कि अगले पांच साल में पर्यटन के क्षेत्र में ढाई करोड़ नए रोजगार आएंगे। यानी एक साल में 50 लाख। देश के कुल रोजगार में 75 फीसदी योगदान देने वाला यह सेक्टर अब प्राचीन स्मारकों पहाड़ों या नेशनल पार्को की परंपरागत दुनिया से बाहर मेडिकल टूरिज्मए ईको टूरिज्म रूरल वॉटर और एडवेंचर के नए क्षेत्रों में पांव पसार रहा है। इन क्षेत्रों में हर तरह के दक्ष कामगारों की मांग बढ़ रही है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 2004 के बाद पर्यटन में आई तेजी में इन्क्रेडिबल इंडिया जैसे कैम्पेन का भी बड़ा योगदान रहा। इस आकर्षक मार्केटिंग मुहिम के रचनाकारों में शामिल ष्ब्रांडिंग इंडिया के लेखक अमिताभ कांत बताते हैं ष्केरल 1990 के दशक के मध्य तक देश के पर्यटन नक्शे पर किसी हैसियत में नहीं था। सिर्फ मौलिक आइडियाज इन्फ्रास्ट्रक्चर और बेहतर मार्केटिंग के बूते आज देश में वह सबसे ऊपर है। बेकवॉटर और आयुर्वेद जैसे अछूते और नए क्षेत्रों में हमने काम किया। उद्यमियों ने रिसॉर्ट्स खोले। इन प्रयोगों ने केरल का नक्शा बदल दिया। इसका असर रोजगार पर पड़ा। विशेषज्ञों के मुताबिक सहाय ने जिस तरह के रोजगार का इशारा किया है उसमें ज्यादातर ऐसे हैं जिनमें बड़ी डिग्रियों की नहीं सीमित अवधि की ट्रेनिंग की जरूरत है। ये पर्यटकों के सीधे संपर्क में आने वाले कई तरह की सेवाओं के आसान अवसर हैं। इनमें ट्रांसपोर्ट फूड हेंडलूम हेंडीक्राट आदि शामिल हैं। दिल्ली में नौकरी डॉट कॉम के एक्जीक्यूटिव वायस चेयरमैन वी सुरेश का कहना है कि ज्यादातर जॉब्स असंगठित क्षेत्र के हैं। इस सेक्टर में डिग्रीधारियों के व्हाइट कॉलर जॉब्स सीमित हैं। लेकिन दोनों क्षेत्रों के मद्देनजर शिक्षण संस्थानों की तैयारी काफी पिछड़ी हुई है।
पर्यटन सेक्टर में सालाना वृद्धि 22 फीसदी की है। विस्तार नए नए क्षेत्रों में हो रहा है। उत्तराखंड में फाइव स्टार होटल्स की बजाए कॉटेज.इंडस्ट्री की जरूरत है जो स्थानीय लोगों को कमाई के बेशुमार अवसर देगी। उत्तरपूर्व में यह तरीका कामयाब भी रहा है। उत्तरप्रदेश में अस्सी फीसदी पर्यटकों का आकर्षण भले ही ताजमहल और वाराणसी हों लेकिन अब यहां के प्राचीन बौद्ध स्मारकों को अलग से उभारने की तैयारी है। चीन को छोड़कर एशिया के ज्यादातर देशों के मुकाबले भारत घरेलू व वैश्विक सैर.सपाटे का सबसे सक्रिय स्पॉट बन चुका है। 2008 में 50 हजार 730 करोड़ की कमाई 2010 में बढ़कर 64 हजार 889 करोड़ रुपए हो गई। 28 फीसदी का यह इजाफा आने वाले कल की बेहतर संभावनाओं का इशारा ही है।
देश में एक लाख सीटें ज्यादातर कोर्स पुराने
देश के 80 विश्वविद्यालयों और ढाई सौ कॉलेजों में पर्यटन से जुड़े दो सौ से ज्यादा कोर्सो में 20 हजार सीटें हैं। शिक्षा डॉट कॉम के मुताबिक निजी क्षेत्र के करीब एक हजार संस्थानों को मिलाकर सभी तरह के कोर्स व प्रोग्राम में सीटों की तादाद एक लाख से ऊपर है। अधिकतर कोर्स पुराने हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म के निदेशक मनोज दीक्षित कहते हैं ष्हॉस्पिटैलिटी ट्रेवल व टूरिज्म के कोर्सो की आधी सीटें तो खाली रहती हैं क्योंकि कोर्स स्किल बेस नहीं हैं। सीटें खाली होने के बारे में शिक्षा डॉट कॉम के हेड प्रकाश संगम का कहना है कि स्टुडेंट्स भी इस सेक्टर के बारे में जागरूक नहीं है। लखनऊ इंस्टीट्यूट में ही तीन कोर्सो में से एक बंद है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म एंड ट्रेवल मैनेजमेंट आईआईटीटीएम के चार शहरों में स्थित केंद्रों की आरक्षित सीटें शायद ही कभी भरी हों।
इसके ग्वालियर केंद्र से इंटरनेशनल बिजनेस कोर्स में पास मेरठ मूल के पीयूष चौधरी को हाल ही में थामस कुक कंपनी ने दस लाख के पैकेज पर चुना। क्लियर ट्रिप और वुडलैंड जैसी कंपनियों ने भी चार लाख रुपए के शुरुआती पैकेज पर प्लेसमेंट किया। ऐसे उदाहरण गिने.चुने ही हैं। बेंगलुरू स्थित एचआर कंपनी ष्माफोई रेनस्टेड के अध्यक्ष स्टाफिंग आदित्यनारायण मिश्रा कहते हैं ष्डिग्री लेकर निकल रहे ज्यादातर युवाओं की दक्षता पर्यटन मार्केट की जरूरतों से मेल नहीं खाती। उनकी प्रेक्टिकल नॉलेज का स्तर बेहद खराब पाया गया है। वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म कौंसिल के अनुसार 2009 से 2018 के बीच भारत दुनिया का सर्वाधिक सक्रिय टूरिस्ट डेस्टिनेशन होगा। लेकिन पर्यटन उद्योग में हो रहे तेज बदलावों से शिक्षण संस्थानों का कोई कनेक्ट ही नहीं है। वे बाजार की जरूरतों के हिसाब से बेखबर ही हैं। ज्यादातर कोर्स पुराने हैं। काउंसलर डॉ अमृता दास का कहना है कि ऑनलाइन ट्रेवल पोर्टल और डेस्टीनेशन मैनेजमेंट जैसे क्षेत्र कोर्स से अछूते होना आश्चर्यजनक है। जबकि ऑनलाइन ट्रेवल पोर्टल इस समय सबसे ज्यादा रोजगार देने में सक्षम है।
शिक्षा डॉट कॉम के हेड प्रकाश संगम का मानना है कि टूरिज्म सेक्टर के प्रति स्टुडेंट्स में पर्याप्त जागरूकता भी नहीं है। यही वजह है कि उनका रुझान इस तरफ कम रहा। पर्यटन सेक्टर में इस हलचल के चलते प्रधानमंत्री की नेशनल स्किल डेवलमेंट स्कीम की तर्ज पर सरकारी व निजी शिक्षण संस्थान डिग्री व सर्टिफिकेट के साथ अब दक्षता पर जोर देने लगे हैं। खासतौर से फंट्र लाइन जॉब्स में। हुनर से रोजगार इसी कड़ी का हिस्सा है। इसमें आठवीं.दसवीं पास युवाओं को होटल.हॉस्पेटलिटी में मार्केट की जरूरतों के मुताबिक ट्रेनिंग दी जाने लगी हैं। ताकि देश में राष्ट्रीय.अंतरराष्ट्रीय महत्व के 75 पर्यटन स्थलों से जुड़े बाकी स्थानों पर भी दक्ष कामगारों का नेटवर्क कायम हो। लखनऊ विवि ने इस पर फोकस किया और दो साल पहले 850 नए गाइड तैयार किए। देश में अपने तरह की यह पहली कोशिश थी। आईआईटीटीएम के प्रोफेसर निमित चौधरी बताते हैंए ष्दिल्ली आगरा या जयपुर में दिक्कत नहीं है। लेकिन खजुराहो के पास ओरछा जाइए तो समस्याएं हैं। अब शिक्षण संस्थान इसी कमी को पूरा कर रहे हैं। इसलिए यह कहना ठीक नहीं है कि संस्थान बाजार की जरूरतों से बेखबर हैं।

अमेरिका में दाखिले का गोरखधंधा

फर्जी तरीके से अमेरिका में दाखिले को रोकने के लिए नई शर्तें लागू कर दी गई है कॉलेज प्रशासन इससे तो खुश हैं लेकिन विदेशी छात्रों के फर्जीवाड़े को लेकर उनकी आशंकाएं अभी खत्म नहीं हुई हैं नए नियम के तहत दाखिले के लिए अमेरिका में सबसे प्रचलित टेस्ट एसएटी और एसीटी में बैठने वालों को अपनी तस्वीर के साथ रजिस्टर कराना जरूरी कर दिया गया है टेस्ट लेने वाले अधिकारियों को इन तस्वीरों के साथ छात्रों के पहचान पत्र का मेल कराने के लिए कहा जाएगा यह बदलाव पिछले साल न्यूयॉर्क के लांग आईलैंड में हुए फर्जीवाड़े के बाद शुरू किया गया अभियोजकों के मुताबिक तब दर्जनों छात्रों ने अपनी जगह किसी और को बिठा दिया उसके बदले में 3600 डॉलर तक वसूले गए अब एसएटी और एसीटी के लिए छात्रों की तस्वीरें और टेस्ट के नतीजे उनके हाई स्कूल में भेजे जाएंगे जिससे एक बार फिर उनकी पहचान की पुष्टि हो जाए
नेशनल एसोसिएशन फॉर कॉलेज एडमिशन काउंसिल में सार्वजनिक नीति के निदेशक डेविड हॉकिन ने नए नियमों को किराए पर टेस्ट देने वालों को रोकने की दिशा में अहम करार दिया है हालांकि कॉलेजों में दाखिले की जिम्मेदारी संभालने वाले अधिकारी अभी  संतुष्ट नहीं हैं उन्हें आशंका है कि उनके यहां विदेशों से नकली एडमिशन फॉर्म भेजे जा रहे हैं एक्ट परीक्षा में गणित विज्ञान अंग्रेजी पढ़ने और व्याकरण की परीक्षा ली जाती है साथ ही लिखने का वैकल्पिक सेक्शन भी होता है वहीं सैट ;एसएटी में पाठन लेखन और गणित का टेस्ट होता है अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय शिक्षा संस्थान के मुताबिक वहां पढ़ने जाने वाले छात्रों की संख्या 2010.11 में बढ़ कर सवा सात लाख तक पहुंच गई है चीन और भारत से जाने वाले छात्रों की संख्या बहुत ज्यादा है हालांकि अब सऊदी अरब वियतनाम और ईरान के छात्र भी तेजी से बढ़ रहे हैं आवेदन देखने वाले अधिकारियों का दावा है कि उन्हें लगातार ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि नकली आवेदनों की संख्या बढ़ रही है इनमें ऐसी चिट्ठियां जिन्हें पढ़ कर लगता ही नहीं कि वह किसी छात्र ने लिखी होगी
चीन में चीटिंग
अमेरिकी कॉलेजों को विदेशी मार्केटों के बारे में सलाह देने वाली जिंस चाइना कंपनी ने 2010 की रिपोर्ट की पुष्टि करते हुए कहा है कि चीन में गलत काम पहले से हो रहा है आधे से ज्यादा एप्लीकेशन्स नकली हैं इनकी निष्पक्ष जांच के लिए अधिकारी टॉफेल का स्कोर देखते हैं इसके बाद सैट और एक्ट का स्कोर देखते है यह परीक्षाएं अफगानिस्तान से भूटान तक और किरगिस्तान से यमन तक कई देशों में होती हैं लेकिन अक्सर स्कोर छात्र के व्यक्तित्व से मेल नहीं खाते पेपर पर छात्र बहुत योग्य दिखता है लेकिन जब वह कैंपस आता है तो समझ में आता है कि वह इंग्लिश बोल भी नहीं सकता ण्टॉफेल आयोजित करने वाली एजुकेशनल टेस्टिंग सर्विस छात्रों से कोई फोटो आईडी नहीं मांगती और आगे भी उसका ऐसा करने का इरादा नहीं है हालांकि हर उस छात्र का फोटो लिया जाता है जो परीक्षा में बैठता है अगर कोई छात्र एक से ज्यादा बार परीक्षा में बैठता है और उसके प्रदर्शन में बड़ा सुधार होता है तो हर टेस्ट की तस्वीर निकाल कर एक दूसरे से मिलाई जाती है जिससे कि फर्जीवाड़ा रोका जा सके हालांकि फिलहाल ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे कि पैसे लेकर किसी और की जगह परीक्षा देने वाले छात्र को पहली बार में ही पकड़ा जा सक
मुश्किल है मामला
ओरेगॉन यूनिवर्सिटी में दाखिला निदेशक ब्रायन हेनली कहते हैं ष्यह ऐसा मामला है जिसस हममें से ज्यादातर लोग जूझ रहे हैं लेकिन मुझे अब तक कोई बेहतरीन तरीका नजर नहीं आया है हेनली का कहना है कि उन्होंने इस साल टॉफेल टेस्ट में छात्रों के नंबरों में बड़ा सुधार देखा है उनका कहना है ष्शायद यह चीन में भाषा की अच्छी ट्रेनिंग की वजह से हुई हो या फिर गलत तरीके से  यह पता नहीं है कि अमेरिकी छात्रों में कितने ऐसे हैं जो दूसरे छात्रों से अपनी परीक्षा दिलाते हैं पिछले साल एसएटी के लिए रजिस्टर होने वाले 20 लाख छात्रों में से केवल 170 को पहचान की दिक्कतों की वजह से परीक्षा में नहीं बैठने दिया गया इसके अलावा 3500 दूसरे टेस्ट के नतीजे भी रद्द किए गए क्योंकि कई छात्रों ने मोबाइल फोन इस्तेमाल कर लिया जिस पर पाबंदी है