गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

एक परीक्षा और एक इंटरव्यू, मिलेगी बैंक की नौकरी

बैंकों में नौकरी की तैयारी कर रहे युवाओं के लिये खुशखबरी है. अब बैंक में नौकरी के लिए सिर्फ एक ऑनलाइन परीक्षा और एक इंटरव्यू ही पास करना होगा. इसके अलावा जिन छात्रों के स्नातक में ६० प्रतिशत अंक नहीं हैं, वे भी बैंक में क्लर्क की नौकरी के लिए आवेदन कर सकेंगे.

हालांकि स्नातक में ६० फीसदी से कम अंक पाने वाले अभ्यर्थी सार्वजनिक बैंकों में अधिकारी नहीं बन पाएंगे. वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक बैंकों में अधिकारी और क्लर्क की भर्ती की नई योजना को मंजूरी दे दी है. जिसके तहत इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सनल सेलेक्शन (आईबीपीएस) द्वारा प्रस्तावित नई भर्ती योजना को वित्त मंत्रालय ने स्वीकार कर लिया है.

देश के सभी सार्वजनिक बैंकों के लिए योग्यता के मानक क्लर्क और अधिकारी के लिए एक समान होंगे. नई योजना में अधिकारी और क्लर्क दोनों की भर्ती के लिए आयु सीमा २०-२८ वर्ष तय की गई है. शैक्षणिक योग्यता क्लर्क कैडर के लिए किसी भी विषय में स्नातक या उसके समान और अधिकारी के लिए स्नातक में कम से कम ६० फीसदी अंक निर्धारित की गई है. उल्लेखनीय है कि अभी तक कई सार्वजनिक बैंकों की भर्ती परीक्षाएं और मानक अलग-अलग थे.

वित्त मंत्रालय के निर्देश के अनुसार सभी सार्वजनिक बैंकों के लिए कॉमन इंटरव्यू होगा, जिसे आईबीपीएस आयोजित करेगा. लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के अंकों को ८० और २० फीसदी के अनुपात में महत्व देते हुए मेरिट लिस्ट बनेगी. इसके अलावा वित्त मंत्रालय ने परीक्षा का शुल्क ४०० रुपये सभी सार्वजनिक बैंकों के लिए तय कर दिया है. वित्त मंत्रालय ने यह दिशा निर्देश सभी सार्वजनिक बैंकों के एचआर प्रमुखों और आईबीपीएस के साथ योजना की मंजूरी के बाद जारी किया है.
टॉप  स्कूलों पर पड़ सकती है मंदी की छाया

जिंदगी के अनुभव से मिले सबक अक्सर क्लासरूम के ज्ञान से बेहतर होते हैं। देश के बेस्ट बिजनेस स्कूल भी इसका अपवाद नहीं हो सकते। दुनिया भर में इकनॉमी की लड़खड़ाती हालत की वजह से आईआईएम और इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) से इस साल ग्रैजुएट होने वाले छात्रों को अपना करियर संभालने की बड़ी चुनौती सामने होगी। ऐसे में, इन छात्रों के लिए जिंदगी के अनुभव जैसे जुमले शायद ही खास राहत दे सकें। भर्तियों की हालत को लेकर आईआईएम के चार डायरेक्टरों, प्लेसमेंट सेल के दो स्टूडेंट हेड और रिक्रूटमेंट मैनेजरों से बात की। इन सभी का मानना है कि जब अगले महीने प्लेसमेंट सीजन शुरू होगा तो पहले के मुकाबले कम भर्तियां होगी और वेतन भी कम ऑफर किए जाएंगे। ऐसे में, टॉप बिजनेस स्कूल के छात्र खुद को बदतर हालात के लिए तैयार कर रहे हैं। कभी ड्रीम जॉब की हसरत रखने वाले ये छात्र अब अपनी आकांक्षाओं को थोड़ा कम कर रहे हैं।
आईआईएम कोलकाता के प्लेसमेंट चेयरमैन अमित धीमान को भी यह स्वीकार करने से परहेज नहीं है कि फाइनल प्लेसमेंट के लिए ३५० छात्रों को एक साथ बैठाना एक बड़ी चुनौती होगी। आईआईएम अहमदाबाद में अंतिम साल के २४ वर्षीय छात्र विशाल शर्मा कहते हैं, 'मैं यह जानना चाहता हूं कि आर्थिक सुस्ती का कितना असर हमारी प्लेसमेंट पर पड़ेगा।' इसी तरह, उनके सहपाठी आर श्रीधर भर्ती करने वाली कंपनियों का हाल जानने के लिए अपने संस्थान के पूर्व छात्रों से लगातार संपर्क बनाए हुए हैं। साल २०१२ में पास होने वाले छात्रों पर वैश्विक मंदी की गहरी छाया है। जब २००९ के आखिर में ये छात्र प्रबंधन संस्थानों की प्रवेश परीक्षा में बैठे थे, तो उस वक्त भी पूरी दुनिया एक साल पहले आई मंदी के प्रकोप से उबरने में जुटी थी। जब इन छात्रों ने जून २०१० में संस्थानों में कदम रखा तो भारत में उस वक्त रिकवरी की आहट आ चुकी थी। विडंबना यह है कि जब ये छात्र कुछ महीनों में अपनी पढ़ाई पूरी कर बाहर निकलेंगे, तो उनकी आशाओं पर पानी फिरता नजर आएगा। श्रीधर कहते हैं, 'जब हमने साल २०१० में आईआईएम अहमदाबाद में प्रवेश किया था तो यह साल २००८ की मंदी से उबरकर रिकवरी की रफ्तार पर था। लेकिन अब हम लोग कॉरपोरेट जगत में घुसने को तैयार हैं, लेकिन डबल डिप मंदी की आशंकाएं गहरा चुकी हैं। प्रो धीमान ने बताया, 'फाइनेंस से जुड़ी जॉब्स में खासी गिरावट देखने को मिल सकती है। हालांकि, हर सेक्टर में ऐसी हालत नहीं है। कंसल्टिंग कंपनियों के पास काफी ऑफर हैं। इसके अलावा आईटी, टेक्नोलॉजी में रोजगार के पर्याप्त अवसर हैं।'

आईआईएम कोझीकोड के डायरेक्टर देवाशीष चटर्जी भी इस बार जॉब ऑफरों को लेकर काफी सशंकित हैं। वह कहते हैं, 'हलांकि, एफएमसीजी कंपनियों ने कैंपस आने से हाथ नहीं खींचा है, लेकिन यह बात तय है कि वे भी पिछले साल के मुकाबले कम लोगों को लेंगे।' धीमान का तो यहां तक कहना है कि अगर कुछ लोगों की मानें तो ये कंपनियां सिर्फ कैंपस से अपना रिश्ता बेहतर बनाए रखने के लिए आएंगी।
प्लेसमेंट में पुराने आईआईटी पर भारी पड़े नए

आईआईटी के नए इंस्टीट्यूट पुराने पर भारी पड़ रहे हैं। इन नए संस्थानों में अभी प्लेसमेंट शुरू हुए कुछ साल ही हुए हैं, लेकिन रिक्रूटमेंट कंपनियां यहां से मोटे पैकेज पर ताबड़तोड़ हायरिंग कर रही हैं। रोपड़, पटना, हैदराबाद, भुवनेश्वर और गांधीनगर आईटीआईटी ने हायरिंग के मामले में पुराने इंस्टीट्यूट्स को पीछे छोड़ दिया है। माइक्रोसॉफ्ट, एमेजॉन और गूगल जैसी कंपनियां टैलेंट की तलाश में नए आईआईटी में जा रही हैं। यहां इस साल जो एवरेज सैलरी ऑफर की गई है, उसमें १५-२० फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहीं, मद्रास, रुड़की, खड़गपुर, बॉम्बे, दिल्ली और गुवाहाटी जैसे पुराने आईआईटी में फाइनल प्लेसमेंट ऑफर में सैलरी ५-१० फीसदी ही बढ़ी है। इस साल नए आईआईटी में ज्यादा कंपनियों की एंट्री हुई। यहां प्री-प्लेसमेंट ऑफर (पीपीओ) भी बढ़ा। इन संस्थानों में टॉप पैकेज में भी इजाफा हुआ है। मिसाल के लिए आईटी सर्विसेज कंपनी एपिक सिस्टम्स ने आईटीआईटी रोपड़ के दो स्टू़डेंट्स को १,०५,००० डॉलर (तकरीबन ५७ लाख रुपए) का पैकेज ऑफर किया है। पिछले साल इस इंस्टीट्यूट में सबसे ज्यादा ऑफर ८०,००० डॉलर ( तकरीबन ४३.६ लाख रुपए) का था।

नई आईआईटी की सफलता में पीपीओ पर काफी जोर दिया जाता है। इसी का असर रिक्रूटमेंट पर दिख रहा है। समर इंटर्नशिप में स्टूडेंट्स को बेस्ट परफॉर्मेंस देने के लिए बढ़ावा दिया जाता है। इससे यहां पीपीओ में शानदार बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल जहां आईआईटी रोपड़ और आईआईटी पटना में पीपीओ की संख्या १ थी, वहीं इस बार यह बढ़कर क्रमश: १० और ३ हो गया। 'पहले आओ, पहले पाओ' की रणनीति के तहत आईआईटी भुवनेश्वर, गांधीनगर, पटना और रोपड़ ने सितंबर के आखिर में ही अपना प्लेसमेंट शुरू कर दिया। आईआईटी रोपड़ में ट्रेनिंग और प्लेसमेंट ऑफिसर पी एस सिंह ने बताया, 'हमने काफी पहले से कंपनियों से संपर्क करना शुरू कर दिया था। लिहाजा, इस बार कैंपस में आने वाली कंपनियों की संख्या पिछले साल से ज्यादा रही।

पिछले साल जहां कैंपस में कुल २१ कंपनियां आई थीं, वहीं इस बार अब तक यह आंकड़ा ३० के पार पहुंच चुका है और इसमें और बढ़ोतरी की संभावना है।' आईआईटी गांधीनगर के स्टूडेंट कोऑर्डिनेटर्स ने कंपनियों के एचआर हेड से लगातार संपर्क बनाए रखा, ताकि कंपनियां इंस्टीट्यूट को नजरअंदाज न करें। इंस्टीट्यूट की यह कोशिश रंग लाई और इस बार कॉग्निजेंट और टीसीएस जैसी कंपनियां यहां आईं।

आईटी रोपड़ के स्टूडेंट्स को ११-१६ लाख का ऑफर मिला है। वहीं, आईटीआईटी गांधीनगर के स्टूडेंट्स को ९.५-९.९ लाख की रेंज में ऑफर मिले हैं। पिछले साल आईआईटी रोपड़ की एवरेज सैलरी ८.३२ लाख थी। इसी तरह, माइक्रोसॉफ्ट ने आईआईटी जोधपुर के ७ स्टूडेंट्स को १७ लाख का पैकेज ऑफर किया है। आईटीआईटी हैदराबाद के स्टूडेंट्स को एमेजॉन, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, क्वालकॉम जैसी कंपनियों से ऑफर मिले हैं।

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

स्नातक नहीं पैदल सिपाहियों की फौज होगी

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले आठ वर्षों में भारत में स्नातकों की संख्या अमरीकी स्नातकों से ज्यादा होगी ये बात उत्साहवर्धक लगती है लेकिन शिक्षाविद इस रुझान से इत्तेफाक नहीं रखते हैं ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनोमिक कोऑपरेशन एंड डेवेलपमेंट यानी ओईसीडी का कहना है कि साल 2020 तक स्नातकों की संख्या के हिसाब से चीन पहले भारत दूसरे और अमरीका तीसरे स्थान पर होगालेकिन भारत के मामले में विशेषज्ञ इसे महज संख्या बताते हैं जिसमें उनके मुताबिक गुणवत्ता नहीं होगी
आबादी का पहलू
जानेमाने शिक्षाविद अनिल सदगोपाल कहते हैं कि पूरी दुनिया की आबादी में अमरीका की आबादी का प्रतिशत लगभग साढ़े चार है जबकि भारत की आबादी सत्रह फीसद है इसलिए जाहिर है कि भारत में शिक्षा की स्थिति बेहतर होती है तो वो अमरीका से आगे निकल जाएगावे कहते हैं इस रिपोर्ट में संख्या की बात की गई है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता पर कुछ नहीं कहा गया है सदगोपाल सवाल उठाते हैंउच्च शिक्षा का मकसद क्या बेहतर समाज का निर्माण करना है या आप केवल वैश्विक बाजार और पूंजी के लिए पैदल सिपाहियों की फौज खड़ी कर रहे हैं पश्चिम के मुकाबले हम फिर पिछड़ेंगे संख्या हमारी ज्यादा हो सकती है लेकिन पश्चिम में जो शोध होगा वो हमसे कहीं आगे होगाभारत में स्नातकों की संख्या बढ़ने की वजह के बारे में पूछे जाने पर अनिल सदगोपाल कहते हैंश्श्गांव में खेती आधारित रोजगार को बड़ी तेजी से खत्म किया गया है वहां की आबादी लाचार होकर शहरों की ओर आई तो उनके बच्चों को भी कुछ करना होगा श्श्यही वजह है कि वो कैसी भी घटिया डिग्री क्यों न होए लेने की कोशिश करेंगेण् इंजीनियरिंग और मेडिकल के क्षेत्र में भी यही हाल हैण् इन लोगों के लिए तो नौकरी भी नहीं है
निजी कॉलेजों की दशा बताते हुए अनिल सदगोपाल कहते हैं कि यहां अब कोई कंपनी प्लेसमेंट के लिए भी नहीं आती है बच्चों से प्लेसमेंट के नाम पर फीस ली जाती है और कंपनियों से कहा जाता है कि वे आकर प्लेसमेंट का नाटक करें
एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक डॉक्टर जगमोहन सिंह राजपूत का कहना है कि भारत में सिर्फ स्नातकों की संख्या बढ़ने से बात नहीं बनने वाली हैवे कहते हैंए श्श्मेरे लिए इस बात का कोई महत्व नहीं होगा कि हम नंबर एक पर होंगे या नंबर दो परए हमें ये देखना होगा कि हमारे शोध की गुणवत्ता कैसी है हमारे कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का स्तर कैसा हैवे कहते हैं कि भारत में अब सब अपने लड़केलड़कियों को पढ़ा रहे हैं लेकिन बहुत से बच्चे थोड़ाबहुत पढ़लिखकर बैठ जाते हैं क्योंकि इस शिक्षा के साथ कौशल नहीं जुड़ा होता है जब तक शिक्षा के साथ कौशल नहीं होगा तब तक स्थिति सुधरने वाली नहीं है
शिक्षा.संबंधी नीति और इस नीति को बनाने वालों पर सवालिया निशान लगाते हुए वे कहते हैंश्श्जो लोग शिक्षा नीति बनाते हैं उनके बच्चे तो सरकारी स्कूल में कभी गए नहीं होते इन लोगों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़े होते तो सरकारी स्कूलों की हालत इतनी खराब नहीं होती
वे कहते हैं कि भारत के 70 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं जिन्हें अपेक्षित शिक्षा नहीं मिलती हैए अभी सिर्फ 30 प्रतिशत बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल रही है और यही बच्चे दुनियाभर में भारत का नाम रौशन कर रहे हैंवे कहते हैंए श्श्यदि भारत के 80 प्रतिशत बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाते तो देश की ज्ञान.सम्पदा दुनिया में सबसे ज्यादा होती

३५ हजार नौ·रियां

३५ हजार नौ·रियां
- आईटी ·ंपनी इन्फोसिस नई भर्तियां ·रने ·े लिए प्रतिबद्ध

देश ·ी प्रमुख आईटी ·ंपनी इन्फोसिस चालू वित्त वर्ष में 35,000 नई नियुक्तियों ·ी अपनी योजना पर ·ायम है। हालां·ि, ·ंपनी ने ·हा ·ि फिलहाल उस·ा वेतनवृद्धि ·ा ·ोई विचार नहीं है। इन्फोसिस ने अनिश्चित वैश्वि· आर्थि· वृद्धि ·े माहौल तथा वेतन बढ़ोतरी पर रो· ·े बीच नियुक्ति योजना ·ो आगे बढ़ाने ·ा फैसला ·िया है। ·ंपनी ·ा इरादा अपने बीपीओ परिचालन ·े लिए 13,000 भर्तियां ·रने ·ा है।
इन्फोसिस ·े मुख्य वित्त अधि·ारी वी बाला·ृष्णन ने गुरुवार ·ो ·ंपनी ·े तिमाही नतीजों ·ी घोषणा ·रते हुए ·हा ·ि इस साल हम 35,000 नए ·र्मचारी जोडऩे जा रहे हैं। उन्होंने बताया ·ि इनमें से 13,000 भर्तियां बीपीओ परिचालन ·े लिए ·ी जाएंगी।

वेतन वृद्धि पर ब्रे·
·ंपनी ने स्पष्ट ·िया है ·ि फिलहाल वह वेतनवृद्धि पर विचार नहीं ·र रही है। बाला·ृष्णन ने बताया ·ि ·ंपनी ने 20,000 ·र्मचारियों ·ो पदोन्नति दी है, जो पहली जुलाई से प्रभावी हो गई है। 30 जून त· ·ंपनी ·े ·र्मचारियों ·ी संख्या 1,51,151 थी। इन्फोसिस ·े मुख्य ·ार्य·ारी अधि·ारी और प्रबंध निदेश· एसडी शिब्बूलाल ने ·हा ·ि इस साल भी हम साल ·े मध्य में वेतनवृद्धि पर विचार ·र रहे हैं।

यूरोप में 45 लाख नौ·रियों पर खतरा
न्यूयॉर्·. यूरोप में लम्बे समय से जारी आर्थि· सुस्ती ·े ·ारण अगले चार साल में 45 लाख नौ·रियां जा स·ती हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ·ी रिपोर्ट ·े अनुसार, सं·ट ·े समाधान और ·र्मचारियों तथा उद्यमों ·ा विश्वास व समर्थन हासिल ·रने ·े लिए ·ोई ठोस नीति अपनाए बगैर यूरोप में सुधारों ·ो लागू ·रना ·ठिन होगा, जो क्षेत्र में स्थिरता एवं वि·ास ·े लिए बेहद आवश्य· है।

नौ·री बदलने ·ी फिरा· में
नई दिल्ली. अपनी ·ंपनी ·े प्रति निष्ठा ·े मामले में भारतीय ·र्मचारी पिछड़ रहे हैं। वैश्वि· प्रबंधन सलाह·ार हे ग्रुप ·े सर्वेक्षण ·े मुताबि· ·रीब 33 फीसदी ·र्मचारी दो साल से भी ·म में नौ·री बदलने ·ी योजना बना रहे हैं। वहीं यदि वैश्वि· स्तर पर बात ·ी जाए, तो पांच में से सिर्फ ए· ·र्मचारी नौ·री बदलने ·ी योजना बना रहा है। हे ग्रुप इंडिया ·े प्रबंध निदेश· गौरव लाहिरी ने ·हा, यह ·ाफी चिंताजन· है ·ि भारतीय ·ंपनियों में सिर्फ 40 फीसद ·र्मचारी ही ऐसे हैं, जो अगले पांच साल में अपने संगठन ·े प्रति निष्ठावन बने रहने ·ो तैयार हैं।

शनिवार, 7 जुलाई 2012

चार वर्षीय पाठ्यक्रम

कुछ लोगों का मानना है कि देश में स्नातक पाठ्यक्रम चार वर्षों का कर दिया जाना चाहिए, लेकिन जैसा कि हर नई बहस के साथ होता है इस चर्चा के बाद शिक्षकों और माता-पिता के बीच ऐसे कदम के फायदों को लेकर बहस मुबाहिसे की शुरुआत हो चुकी है। पहले मैं अपनी स्थिति स्पष्ट कर दूं। मुझे इस बात की तगड़ी अनुभूति होती है कि चार वर्षीय पाठ्यक्रम तीन वर्ष की पढ़ाई के मौजूदा पाठ्यक्रम से कई गुना बेहतर है। मैं यह भी स्पष्ट कर देता हूं कि मेरे विचार से चार वर्षीय पाठ्यक्रम को इस तरह नहीं देखा जाना चाहिए मानो बच्चों को अपने विशेषज्ञता वाले विषय में एक साल और पढ़ाई करनी पड़ेगी। मेरे खयाल से अतिरिक्त वर्ष बच्चों को यह तय करने का अवसर देगा कि वे आखिर क्या करना चाहते हैं। इसलिए मेरे लिए तो सही सवाल यह होगा कि क्या यह अतिरिक्त वर्ष बच्चों को उस समाज का उत्पादक सदस्य बनाने में मदद करेगा जिसमें उनको रहना है और अपना योगदान देना है।
बच्चों के किसी खास विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के पीछे मुख्य रूप से दो वजहें होती हैं: (अ) बड़ों का दबाव और माता-पिता का सुझाव या उनका आदेश (ब) उस विषय में दाखिला नहीं मिल पाना जिसमें उनके घर के बड़े अथवा उनके माता-पिता दाखिला दिलाना चाहते थे। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मेरे खयाल से १६ साल के एक बच्चे के लिए यह तय कर पाना थोड़ा मुश्किल है कि आखिर उसका करियर क्या हो?  इस उम्र के किसी बच्चे या बच्ची को कक्षा ११ में यह निर्णय लेना पड़ता है कि वह वाणिज्य की पढ़ाई करना चाहता है या विज्ञान की। अगर वह विज्ञान का चयन करता है तो दर्शन शास्त्र में पीएचडी की डिग्री ले सकता है लेकिन अगर वह वाणिज्य का चयन करता है तो यह काम मुश्किल होगा। शायद तब इसके लिए उसे विदेश जाकर किसी उच्च शिक्षा संस्थान में दाखिला लेना पड़े। इसी तरह, कक्षा ११ में मानवशास्त्र का चयन करने वाले किसी बच्चे के लिए बाद में भौतिकी की पढ़ाई कर पाना बेहद मुश्किल होगा। मैं यह मानने से इनकार करता हूं कि १६ साल का कोई बच्चा यह तय कर सकता है कि उसके लिए दर्शन शास्त्र और भौतिकी में से कौन सा विषय बेहतर होगा। अगर हम वाकई ऐसा सोचते हैं कि उस उम्र में बच्चे अपने करियर की दिशा निर्धारित कर पाने की क्षमता रखते हैं तो फिर उसी सोच के आधार पर हमें बच्चों को मतदान करने, विवाह करने, शराब पीने, वाहन चलाने और ऐसे ही तमाम दूसरे काम करने की अनुमति भी दे देनी चाहिए। अगर हम यह सब करने के इच्छुक नहीं है तो फिर पहले वाले पर इस कदर जोर कैसे दे सकते हैं?
मेर लिए चार साल के स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल किया गया एक अतिरिक्त वर्ष कुछ उन बातों के लिए होगा जिन्हें हम उस अतिरिक्त वर्ष में अंजाम दे सकते हैं। अगर यह चार वर्षीय पाठ्यक्रम मेरे नजरिये से तैयार किया जाए तो उसमें बच्चे मनचाहे विषयों में अध्ययन कर सकेंगे। उदाहरण के लिए वे भौतिकी और दर्शन, अर्थशास्त्र और कला आदि की साथ-साथ पढ़ाई कर सकेंगे। इन तमाम पाठ्यक्रमों में पढ़ाई के लिए शुरुआती स्तर पर विषय का थोड़ा ज्ञान तो आवश्यक है ही। निचले दर्जे के स्नातक पाठ्यक्रमों में पढ़ाई का स्तर उससे अधिक न होना जितना बच्चा कक्षा १० में पढ़कर निकलता है। एक वर्ष का अतिरिक्त समय बच्चों को अपनी पसंद और नापसंद तय करने का समय देगा। इस आधार पर वह यह बात ज्यादा बेहतर तरीके से तय कर पाएगा कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं? इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं, किसी बच्चे को भौतिकी में विशेषज्ञता इसलिए नहीं करनी चाहिए क्योंकि उसे पता ही नहीं है कि दर्शन क्या है। बल्कि उसे दर्शन की मूलभूत जानकारियां हासिल करने के बाद ही यह तय करना चाहिए कि वह भौतिकी पढऩा चाहता है अथवा नहीं। यहां दो स्पष्टीकरण देना उचित रहेगा। पहला, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि युवाओं में कम उम्र में अपने अनुकूल विषय का चयन करने की काबिलियत नहीं होती है। इसके बजाय मेंरा कहने का मतलब यह है कि अधिकांश बच्चे ऐसा इसलिए भी नहीं कर पाते क्योंकि कॉलेज में उनको जो विषय पढऩे के लिए मिलते हैं उनमें से अधिकांश विद्यालय स्तर पर होते ही नहीं हैं। दूसरी बात, कहने का तात्पर्य यह कि माता-पिता को ४ वर्षीय पाठ्यक्रम में भी बच्चों पर अपनी पसंद थोपनी नहीं चाहिए बल्कि उनको अपना नजरिया तय करने का मौका देना चाहिए।
उच्च शिक्षा का एक बहुत बड़ा लक्ष्य है बड़ी संख्या में ऐसे लोग तैयार करना जो सामाजिक समस्याएं हल करने में मददगार साबित हो सकें। इसलिए उनका प्रशिक्षण केवल किसी खास विषय में विशेषज्ञता कायम करने के लिए नहीं होता है बल्कि उसका संबंध उनके भीतर प्रेरणा के स्तर से भी होता है। हमारे समाज में सबके लिए बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करना एक ज्वलंत मुद्दा है। इसके लिए न केवल चिकित्सकीय विशेषज्ञता की आवश्यकता होगी बल्कि अस्पतालों के प्रबंधन और जन स्वास्थ्य आदि के जानकार लोगों की भी उतनी ही जरूरत होगी। बेहतर चिकित्सकीय उपकरण तैयार करने के लिए जहां इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की दरकार होगी वहीं इन्हें उचित मूल्य पर तैयार करने की खातिर अर्थशास्त्रियों और उद्यमियों की आवश्यकता होगी। ऐसे में जबकि किसी एक समस्या को हल करने के लिए सभी लोगों को एकसाथ मिलकर काम करना पड़े तो ऐसे में एक व्यक्ति की केवल एक विषय में विशेषज्ञता का विचार कोई बहुत अच्छा विचार नहीं है। हमारी मौजूदा तीन वर्षीय पाठ्यक्रम वाली व्यवस्था में किसी चिकित्सक को अर्थशास्त्र की कार्यप्रणाली के बारे में शायद ही कोई जानकारी हो। अर्थशास्त्रियों के साथ भी ठीक यही बात है।
लोग चार वर्षीय पाठ्यक्रम को लेकर जिस तरह सोच रहे हैं उससे मैं चिंतित हूं। याद रखिए, मेरा मुख्य लक्ष्य यह है कि छात्र अधिक सूचित होकर कोई निर्णय लें। मान लीजिए कल को कोई भौतिकीविद अचानक संगीत को अपनाना चाहे तो क्या होगा? या फिर कोई दर्शनशास्त्री भौतिकी के नियमों को समझने की इच्छा रखे तो? मुझे डर है कि जिस तरह से इन तमाम बातों पर चर्चा हो रही है वैसे तो हम चार वर्षीय पाठ्यक्रम के पीछे की मूल भावना को ही दरकिनार कर देंगे। कल्पना कीजिए आपके अंकल जो पेशे से वकील हैं उनका बेटा वकालत के अलावा कुछ और पढ़ रहा हो और आप भी अपने मां-बाप की तरह अर्थशास्त्र की पढ़ाई नहीं कर रहे हों तो यह बात सोचना कितना रोमांचित करता है। उसके लिए जरूरी है कि आप खुद यह निर्णय लें कि आप क्या पढऩा चाहते हैं। अपने माता-पिता पर यह निर्णय नहीं छोड़ें। इस काम में चार वर्ष का स्नातक पाठ्यक्रम आपकी मदद करेगा।
यूपी में लाख सिपाही पदों पर होगी भर्ती
सिपाही बनने  इच्छु युवाओं लिए खुशखबरी। उत्तर प्रदेश में जल्द ही लाख सिपाहियों भर्ती जाएगी। राज्य सरार ने ·नून व्यवस्था दुरुस्त ·रने ·े लिए पुलिस ·ो नया ·लेवर देने ·ा फैसला भी ·िया है।  प्रदेश में 35 हजार नए सिपाही हाल ही में थानों में तैनात ·िए गए हैं। ए· साल में अतिरिक्त ए· लाख सिपाही तैनात हो जाएंगे।